Diwali Special: दीपावली पर गुर्जर समाज की अनोखी परम्परा, लक्ष्मी पूजन से पहले करते हैं यह काम!

दीपावली पर गुर्जर समाज की छांट भरने की परम्परा है,जिसमें गुर्जर समाज के लोग अपने पूर्वजों को याद करने और उनके तर्पण के लिए अपने अपने शहरों और कस्बो में जलाशयों पर पंहुचते हैं, उनको भोग लगाते हैं.

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छांट भरते गुर्जर समाज के लोग

भारत विभिन्न संस्कृतियों और रीति रिवाजों का वह देश है, जंहां कदम-कदम पर भाषा, बोलियां और रिवाज बदल जाते हैं. दीपावली पर गुर्जर समाज की छांट भरने की परम्परा है, जिसमें गुर्जर समाज के लोग अपने पूर्वजो को याद करने उनको तर्पण करने को अपने अपने शहरों और कस्बो में जलाशयों पर पंहुचते हैं, उनको भोग लगाते हैं. यही नहीं, आज के दिन इस परम्परा का हिस्सा बनने के लिए जन्मा नवजात भी पंहुचाता है, चाहे वह कितना भी छोटा ही क्यों न हो.

लक्ष्मी पूजन से पहले करते हैं तर्पण

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन और एक दूसरे को बधाइयां देने से पहले गुर्जर की परपम्परा रही है कि वह अपने पूर्वजों को याद करने के लिए तर्पण करता है. यानी कि गुर्जर समाज श्राद पक्ष में श्राद नही मनाता है और दीपावली के दिन ही गोत्र, परिवार, मोहल्ले के साथ सामूहिक तर्पण करता है. 

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तालाब में होती है छांट भरने की परंपरा

इसके लिए नदी, तालाब, जलाशयों पर परिवार के पुरुष, युवा और बच्चे पंहुचते हैं. घर से बनाकर लाई गई खीर, रोठ आदि का अग्नि में भोग लगाकर घास की एक बेल अर्थात लंबी लडी बनाकर उसे पकड़कर जलाशय के जल में पंहुचकर करते हैं. तर्पण और दीपावली के इस पर्व पर टोंक जिला मुख्यालय पर चतुर्भुज तालाब सहित बनास नदी में तर्पण कर गुर्जर समाज के लोगों ने समाज की छांट भरने की परंपरा का निर्वहन किया.

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गांव, शहर में हुआ परम्परा का निर्वहन

गुर्जर समाज के लोगों ने अपने पूर्वजों पित्रों को याद करने उनको तर्पण करने के लिए अग्नि पर धूप लगाकर याद किया. उन्होंने पूर्वजों की शांति के लिए ईश्वर से कामना किए. आज के दिन जिले में महुआ, हथोना, छानबांस सूर्या, घास, बम्बोर, मेहंदवास, हरचन्देडा, अमीनपुरा सहित कई गांवों में जहां गुर्जरों की आबादी है वहां पहुंचकर पुर्वजो को याद करने की परंपरा का निर्वहन किया गया.

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इस रस्म में बच्चे भी शामिल होते हैं

दीपावली पर जब गुर्जर समाज के बुजुर्ग, युवा और बच्चे अपने पित्रों अर्थात पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए उन्हें तर्पण करते हैं, भोग लगाते हैं तो यह भी परंपरा गुर्जर समाज में है कि घर का छोटे से छोटा बच्चा भी इसे छांट भरने के आयोजन में वहां पहुंचता है,अब चाहे उसकी उम्र 1 या 2 दिन ही क्यों न हो इसके पीछे बुजुर्गों का तर्क भी यही है कि परम्पराओं के निर्वहन के लिए नींव भी मजबूत होनी चाहिए तो पूर्वजों के आशीर्वाद से ही हम हैं.

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