Dungarpur News: राज्य सरकार और स्थानीय नेता प्रदेश के आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले के विकास का बखान करते हैं, लेकिन आज भी जिले के लोग मूलभूत आवश्यकताओं के लिए मोहताज हैं. मामला जिले में उच्च शिक्षा से जुड़ा है. कॉलेजों में शैक्षणिक सत्र शुरू होने वाला है. लेकिन डूंगरपुर जिले के सरकारी कॉलेजों में सालों से व्याख्याताओं के पद खाली पड़े होने के कारण यहां उच्च शिक्षा की स्थिति दयनीय हो गई है और यहां के युवाओं का उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना सिर्फ सपना ही नजर आने लगा है.
81 पदों में से मात्र 15 व्याख्याता
डूंगरपुर जिले में सबसे बड़ा श्री भोगीलाल पंड्या राजकीय महाविद्यालय है. जो सिर्फ नाम का सरकारी महाविद्यालय है. इस महाविद्यालय में व्याख्याताओं के पद लंबे समय से रिक्त हैं. महाविद्यालय में स्वीकृत 81 पदों में से मात्र 15 व्याख्याता ही कार्यरत हैं तथा शेष पद सालों से खाली हैं. 15 में से 2 व्याख्याता डेपुटेशन पर हैं. पिछले सत्र में विद्यार्थियों ने किसी तरह अस्थाई व्याख्याताओं के भरोसे अपना साल पूरा किया, लेकिन अब कुछ ही दिनों बाद महाविद्यालय का शैक्षणिक सत्र शुरू होने वाला है. ऐसे में यदि शीघ्र ही महाविद्यालय व्याख्याताओं की नियुक्ति नहीं की गई तो यहां प्रवेश लेने वाले पुराने और नए विद्यार्थियों को अध्ययन और अध्यापन कार्य में परेशानी का सामना करना पड़ेगा.
अन्य सरकारी कॉलेजों के भी यही हाल
वीर बाला काली बाई कन्या राजकीय महाविद्यालय सहित शहर के अन्य सरकारी कॉलेजों की स्थिति भी जिले के श्री भोगीलाल पंड्या राजकीय महाविद्यालय जैसी ही है. वीर बाला काली बाई कन्या राजकीय महाविद्यालय में 22 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 11 व्याख्याता कार्यरत हैं. इसी तरह सीमलवाड़ा कॉलेज में 15 व्याख्याताओं के मुकाबले 6 पद रिक्त हैं. सागवाड़ा कॉलेज में कॉलेज प्राचार्य, उप प्राचार्य के साथ ही व्याख्याताओं के पद रिक्त पड़े हैं. इसके अलावा साबला, गलियाकोट, देवल राजकीय कॉलेजों में व्याख्याताओं के पद रिक्त होने के साथ ही स्वयं के भवनऔर संसाधन का अभाव है. जिसके कारण यहां भी विद्यार्थियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
सरकार और प्रशासन ने साधी चु्प्पी
बहरहाल, डूंगरपुर जिले के सरकारी कॉलेजों की हालत बेहद दयनीय है. ऐसा नहीं है कि छात्र संगठनों और कॉलेज प्रशासन ने टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ को भरने के लिए प्रयास नहीं किए हैं. सभी ने कई बार सरकार और प्रशासन से गुहार लगाई है, लेकिन हालात जस के तस हैं. ऐसे में एक ही सवाल उठता है कि इन हालातों में राज्य के आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले के युवा उच्च शिक्षा कैसे हासिल कर पाएंगे?