10 हजार KM का सफर तय कर यूरोप से जैसलमेर क्यों आते हैं ये परिंदे ? कैसे याद रखते हैं इतना लंबा रास्ता 

थार का रेगिस्तान पक्षियों के लिए एक अनुकूल आवास बन रहा है. इसके कई कारण हो सकते हैं,जिनमें से एक जलवायु परिवर्तन है.जलवायु परिवर्तन के कारण रेगिस्तान में तापमान में कमी आई है, जिससे यहां रहने के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बन रहा है. जिससे पक्षियों के लिए भोजन और पानी की उपलब्धता बढ़ रही है. 

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Jaisalmer : थार का रेगिस्तान पक्षियों के लिए एक अनुकूल आवास बन रहा है. इसके कई कारण हैं जिनमें से एक जलवायु परिवर्तन है. जलवायु परिवर्तन के कारण रेगिस्तान में तापमान में कमी आई है, जिससे यहां रहने के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बन रहा है. जिससे पक्षियों के लिए भोजन और पानी की उपलब्धता बढ़ रही है. 

10 हजार से अधिक किलोमीटर की यात्रा

इसी का परिणाम है कि वन्यजीव और पक्षी बाहुल्य लाठी क्षेत्र में प्रवासी पक्षी यूरोपियन रोलर नजर आए. दक्षिण-पश्चिम यूरोप से करीब 10 हजार से अधिक किलोमीटर की यात्रा के बीच इस पक्षी ने लाठी क्षेत्र के धोलिया गांव के पास जंगल में डेरा डाला. ये अफ्रीका के दक्षिणी भाग में सर्दियों के मौसम में रहने जा रहे हैं. पक्षी प्रेमी राधेश्याम विश्नोई ने सोमवार को इन पक्षियों को धोलिया गांव के पास बर्ड वाचिंग के दौरान देखा.

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कैसे याद रखते हैं रास्ता ?

उन्होंने बताया कि यह पक्षी यूरोप और एशिया से सर्दी के मौसम में अफ्रीका के दक्षिण इलाकों में जाते हैं. इसी यात्रा के दौरान ये रास्ते में भोजन के लिए रुकते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ये तारों को देखकर, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र, सूर्य की स्थिति या फिर दिमाग के नक्शे से अपना प्रवास करते हैं. पक्षी प्रेमी राधेश्याम विश्नोई ने बताया कि इस प्रवासी पक्षी को हिंदी में कश्मीरी नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम कोरेसियस गेरूलस है. इसका प्रजनन क्षेत्र यूरोप और एशिया के कुछ भागों में है. इसलिए इसे इस नाम से भी पुकारा जाता है.

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मंजिल अफ्रीका बीच में रुकते हैं जैसलमेर 

वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर और वन्यजीवी प्रेमी राधेश्याम विश्नोई ने बताया कि यह एक संकटग्रस्त प्रजाति है. इनकी संख्या शिकार करने, कीटनाशकों के प्रयोग और जंगलों की कमी के कारण कम हो रही है. विश्नोई ने बताया कि इन प्रवासी पक्षियों को पिछले सालों से धोलिया और आसपास के क्षेत्र में देखा जा रहा है. इन पक्षियों का प्रवास लगभग नवंबर तक अफ्रीका में चलता रहेगा. ये वहां अप्रैल-मई तक रुककर पुन: अपने प्रजनन क्षेत्रों की ओर लौट जाते हैं.

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जैसलमेर में बदले माहौल की वजह से आते हैं यहां 

आपको बता दें कि शुष्क कहे जाने वाले रेतीले थारों के बीच बसे जैसलमेर में जलवायु परिवर्तन कें चलते वातावरण में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. जैसलमेर में दिनों दिन पक्षी प्रेमियों और पक्षियों पर शोध करने वालो के लिए एक नई डेस्टिनेशन बन रहा है. थार का रेगिस्तान एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है और यह पक्षियों और अन्य जानवरों के लिए महफूज ठिकाना बन गया है. यही कारण है कि यहां दुलर्भ प्रजातियों के पशु,पक्षी इत्यादि नजर आते रहते है.