बीकानेर के भांडाशाह जैन मन्दिर में बदली गई ध्वजा, देशी घी से भरी गई थी सदियों पुराने इस मंदिर की नींव

जैन श्वेतांबर खरतरगच्छ संघ के आचार्य और बीकानेर के मुनि सम्यक रत्न सागर और साध्वीवृन्द के सानिध्य में ध्वजाएं बदली गईं. यह मंदिर जैन धर्म के 5वें तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ को समर्पित है. चतुर्विद संघ की साक्षी में भक्ति संगीत के साथ भगवान का अभिषेक किया गया.

Advertisement
Read Time: 3 mins

Bikaner Jain Temple: बीकानेर के भांडाशाह जैन मन्दिर में स्नात्र पूजा के साथ ध्वजा बदली गई. मंदिर के 108 फीट ऊंचे शिखर पर अहमदाबाद से ध्वजा लाकर चढ़ाई गई. जैन श्वेतांबर खरतरगच्छ संघ के आचार्य और बीकानेर (Bikaner) के मुनि सम्यक रत्न सागर और साध्वीवृन्द के सानिध्य में ध्वजाएं बदली गईं. यह मंदिर जैन धर्म के 5वें तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ को समर्पित है. चतुर्विद संघ की साक्षी में भक्ति संगीत के साथ भगवान का अभिषेक किया गया. इस मौके पर मुनिवृन्द और साध्वीवृन्द के साथ ही भक्तों ने मंत्रोच्चारण और भक्ति गीतों के साथ पूजा करवाई और ध्वजाओं का शुद्धिकरण करवा कर उन्हें स्थापित करवाया.

व्यापारी भांडाशाह ने करवाया था निर्माण

बीकानेर का यह प्रसिद्ध जैन मंदिर सदियों पुराना है. जिसका निर्माण व्यापारी भांडाशाह ने करवाया था. मंदिर निर्माण का कार्य 1468 में शुरू हुआ, जिसे भांडाशाह की पुत्री ने 1541 में पूरा करवाया था. जैन धर्म से जुड़े पांचवें तीर्थकर भगवान सुमतिनाथ को समर्पित इस मंदिर का निर्माण भांडाशाह ने करवाया था. इसी के चलते स्थानीय लोग इसे भांडाशाह जैन मंदिर के नाम से जानते हैं. लगभग 108 फुट ऊंचे इस तीन मंजिला मंदिर में लाल और पीले पत्थरों का प्रयोग किया गया है. भगवान सुमतिनाथ मूल वेदी पर विराजमान हैं और साथ ही मंदिर में उकेरे गए चित्र-कलाकृतियां भी काफी अद्भुत है. इस मंदिर को देखने के लिए लोग देश-विदेश से यहां पर पहुंचते हैं.

Advertisement

मंदिर निर्माण की कहानी भी है दिलचस्प

राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी बीकानेर की लक्ष्मीनाथ जी की घाटी में स्थित इस मन्दिर के निर्माण के पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है. एक बार सेठ लूणकरण जैन के पास एक जैन मुनि आए. उन्होंने लूणकरण की सेवा से प्रसन्न हो कर उन्हें एक पारस पत्थर और एक गाय आशीर्वाद स्वरूप दी. उसके बाद वे तीर्थ यात्रा पर चले गए. जब वे वापिस आए तो उन्होंने देखा कि जाते समय वे सेठ लूणकरण एक कमरे में रह रहे थे, अब वहां महल बन गया है. उन्होंने उस पारस पत्थर को वापिस मंगवाया, जब उसे इधर-उधर लगा कर देखा तो हर चीज सोने में बदल गई. ये देख उन्होंने पारस पत्थर वापिस मांगा तो लूणकरण ने देने से इनकार कर दिया. इस बात से क्रोधित होकर जैन धर्म गुरु ने उन्हें श्राप दे दिया कि तुम्हारा वंश आगे नहीं बढ़ेगा. ये सुनकर सेठ लूणकरण व्यथित हो गए और माफी मांगने लगे. 

Advertisement

50 डिग्री तापमान में यहां होता है घी का रिसाव

जैन मुनि ने कहा कि गाय के मुंह का झाग जहां गिरे, वहीं मन्दिर बनवा देना. सेठ लूणकरण ने ऐसा ही किया. उस जगह यह मंदिर बन गया. उसी दौरान एक बार शाम के समय जल रहे घी के दीपक में एक मक्खी गिर गई. सेठ लूणकरण ने उसे निकाल कर अपनी जूती पर रगड़ दिया. ये देख कर मन्दिर बनाने वाले राजमिस्त्री को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने सोचा कि सेठ बहुत कंजूस है. जब नींव भरने का समय आया तो उन्होंने सेठ से कहा कि यहां की जमीन में बजरी है, इसलिए मन्दिर की नींव शुद्ध देशी घी से भरनी पड़ेगी. ये सुन कर उन्होंने तुरन्त 40 हजार किलो घी मंगवाया और नींव भरवाई. ये देख कर जो राजमिस्त्री थे, वो बड़े शर्मिन्दा हुए और उन्होंने माफी मांगी. ऐसी मान्यता है कि आज भी 50 डिग्री के आसपास तापमान होने पर यहां से घी का रिसाव होता है.

Advertisement
Topics mentioned in this article