Lalechi Mata Temple: पहाड़ चीर कर प्रकट हुई देवी! दो पहाड़ों के बीच बना है राजस्थान का ये मंदिर

पहाड़ों के बीच ललेची माता का विख्यात बना मंदिर है. सदियों पुराना यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. इस स्थान पर माता जी 3 प्रतिमाएं हैं. मान्यता के अनुसार यह प्रतिमाएं कुदरती रूप से प्रकट हुईं. जिसके बाद इनके तीन रूपों में पूजा की जाती है.

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पहाड़ों के बीच में बसा ललेची माता का मंदिर
बालोतरा:

पश्चिमी राजस्थान के बालोतरा जिले के समदड़ी कस्बे में पहाड़ों के बीच ललेची माता का विख्यात बना मंदिर है. सदियों पुराना यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. इस स्थान पर माता जी 3 प्रतिमाएं हैं. मान्यता के अनुसार यह प्रतिमाएं कुदरती रूप से प्रकट हुईं. जिसके बाद इनके तीन रूपों में पूजा की जाती है. तीनों ही प्राकृतिक प्रतिमाओं के अलग-अलग रूप हैं, बाल अवस्था, यौवन अवस्था एवं बुजुर्ग अवस्था. माना जाता है कि तीनों ही समयानुसार अपने रूप बदलती हैं.

पहाड़ के बीच गर्जना करते हुए प्रकट हुईं

माना जाता है कि करीब 800 साल पहले जालोर जिले के धुम्बड़ा से नौ देवियों में हुए विवाद के कारण वहां से नाराज होकर माता रवाना हुई. जो धुमड़ा से होते हुए गुफा के अंदर से समदड़ी में प्रकट हुई. एक पहाड़ के बीच से गर्जना करते हुए माता प्रकट हुई, जिससे पहाड़ के दो भाग हो गए. जब माता जी प्रकट हुई तब क्षेत्र सहित आसपास में जबरदस्त गर्जना हुई. उस गर्जना की ललकार के कारण इनका नाम ललेची माता पड़ा. आज भी वह सुरंग माता जी की प्रतिमा के पास से गुजरती हुई धुमड़ा तक पहुंचती है.

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सर्वधर्म का मंदिर

सर्वधर्म का मंदिर होने के कारण हर जाति वर्ग की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है. इस मंदिर में किसी भी प्रकार का कोई भी भेदभाव नहीं किया जाता है. छोटा बड़ा सभी वर्ग जाति का व्यक्ति आकर माताजी के दर्शन करता है, और मनोकामना मांगता है. वहीं ग्रामीणों की आस्था का केंद्र होने के कारण स्वेच्छा से हर पूर्णिमा को समदडी कस्बे का बाजार बंद रहता है और लोग माता जी के मंदिर पहुंचकर पूजा अर्चना करते हैं. मंदिर प्रांगण में नवरात्रों में 1992 से शुरू हुए गरबे का आयोजन हर वर्ष होता है. गरबे में मां काली का प्रवेश एवं ललिता पंचमी का विशेष महत्व है.

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राज पुरोहित होते है नियुक्त

पुजारी के तौर पर राज पुरोहितों को नियुक्त किया गया. तब से लेकर अब तक राजपुरोहित परिवार से ही माता जी की पूजा अर्चना करते हैं. हर वर्ष नवरात्रि के समय 9 दिनों तक माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है, और विशेष पूजा अर्चना की जाती है. वहीं हवन अष्टमी के दिन विद्वान पंडितों द्वारा मंत्रों उच्चारण के बाद यज्ञ किया जाता है.

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ललिता पंचमी और हवन अष्टमी को गरबा नृत्य में सैकड़ों की तादात में पहुंचते श्रद्धालु. माँ काली के प्रकट होने की झांकी होती है, जो अद्भुत होती है.

ललेची माता के नाम से बना गौशाला

कहा जाता है माता जी के प्रकट होने के समय हुई गर्जना से वहां मौजूद गौ वंश डरकर जहां तक भागे थे, वहाँ तक माताजी का ओरण व गौचर भूमि है. जहां से एक लकड़ी तक गांव का कोई ग्रामीण नहीं ले जाता है. गौवंश व अन्य पशुओं के विचरण के लिए वह जगह छोड़ रखी है. वही माता जी की नाम से गौशाला का भी निर्माण किया गया है, जिसका नाम श्री ललेची माता गौ सेवा समिति रखा गया है. जिसमें हजारों गोवंश है. उसकी देखरेख उसका संचालन गोविंदराम जी महाराज के शिष्य वर्तमान मंदिर कमिटी अध्यक्ष बगीची गादीपति नरसिंह दास जी महाराज करते हैं.

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