ग्रीनको एनर्जी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से शाहबाद में 4 लाख पेड़ों पर संकट, लोगों ने चिपको आंदोलन की दी चेतावनी

शाहबाद क्षेत्र के इस जंगल में वर्तमान में भी 500 से भी अधिक औषधीय जड़ी बूटियों देखी जा सकती है. यह वह औषधियां हैं जो आयुर्वेद के साथ साथ एलोपैथिक दवाओं के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं जिन पर अब नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है. 

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Rajasthan News: बारां जिला मुख्यालय से लगभग 80 से 100 किलो मीटर की दूरी पर शाहबाद क्षेत्र में ग्रीनको एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा हाईड्रो पावर प्लांट स्थापित किया जाना प्रस्तावित है. इस पावर प्लांट को लेकर शाहबाद तहसील क्षेत्र के सघन जंगल की लगभग 400 हेक्टेयर जमीन पर लगे प्राकृतिक जंगल में स्थित वर्षों पुराने लाखों पेड़ों को काटा जाएगा. केन्द्र सरकार ने कंपनी को 1 लाख 19 हजार 759 बड़े पेड़ों को काटने की अनुमति भी दे दी. इस बीच वृक्षों की कटाई का विरोध कर रहे पर्यावरण प्रेमियों की बात को समझकर स्वत: संज्ञान लेकर हाईकोर्ट ने वृक्षों की कटाई पर रोक लगा दी.

पेड़ों की वास्तविक संख्या के लिए सर्वे की मांग

वहीं एनजीटी ने भी पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी. शाहबाद घाटी संरक्षण समिति बारां द्वारा भी जिला कलक्टर को ज्ञापन सौंपा गया है. जिसमें हरे भरे वृक्षों की कटाई को रोकने की मांग की गई है. ज्ञापन में समिति ने कहा कि पहले वन विभाग के तात्कालिक अधिकारियों द्वारा पेड़ों की संख्या जो बताई गई है, उसमें वास्तविक आंकड़े छुपाकर कटाई किए जाने वाले पेड़ों की संख्या एक चौथाई से भी कम बताई गई है, जबकि इस क्षेत्र में लगभग चार लाख से भी अधिक पेड़ों की कटाई होने की संभावना जताई गई है. समिति ने पेड़ों की वास्तविक आंकड़े के लिए दोबारा सर्वे करवाने की मांग की.

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समिति ने आरोप लगाया है कि वन विभाग के अधिकारियों द्वारा मिली भगत कर तथ्य छुपाए गए हैं. वृक्षों की कटाई को रोकने को लेकर चिपको आन्दोलन का रुख अख्तियार करने की भी चेतावनी दी गई है. प्राचीन काल से ही आयुर्वेद चिकित्सा में जड़ी बूटियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और शाहबाद क्षेत्र के इस जंगल में वर्तमान में भी 500 से भी अधिक औषधीय जड़ी बूटियों देखी जा सकती है. यह वह औषधियां हैं जो आयुर्वेद के साथ साथ एलोपैथिक दवाओं के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं जिन पर अब नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है. 

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आदिवासी क्षेत्र के लोगों की आजीविका पर संकट

हाईड्रो पावर प्लांट स्थापित करने के लिए काटे जाने वाले पेड़ों के कटने से आदिवासी क्षेत्र के लोगों की आजीविका का भी नुकसान होगा, क्योंकि इस जंगल में तेंदू फल और तेंदूपत्ता, देशी आंवला, चार (चिरोंजी), लिसौड़ा, अर्जुन के पेड़ों की तादाद हजारों की संख्या में है. जिनसे तेंदूपत्ता प्राप्त होता है जो बीड़ी बनाने के काम आता है और तेंदू फल जो खाने में उपयोग होता है साथ ही देशी आंवला जो औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है. वहीं चिरोंजी जो ड्राई फ्रूट्स श्रेणी में शामिल है. आदिवासी लोग इनको जंगल से एकत्रित कर बाज़ार में लाते हैं और बेचकर अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं.  

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प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को वन विभाग द्वारा भूमि उपलब्ध करवाए जाने और वन क्षेत्र की कटाई होने से जंगली जानवर तो पूर्णतया लुप्त हो ही जाएंगे. साथ सीमावर्ती मध्यप्रदेश के रिजर्व कन्जर्वेशन कूनो महज 10 से 15 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां से समय-समय पर वन्य जीव अभयारण्य से सीमा पार कर इस जंगल में प्रवेश कर जाते हैं. जिसमें एक दो बार तो दक्षिण अफ्रीका के जंगलों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से विशेष प्रजाति के चीते कूनो अभ्यारण में लाए गये हैं. उनमें से एक-दो बार तो अफ्रीकी चीते भी इस जंगल में देखे गए थे, जिनको वन विभाग द्वारा वापस कूनो अभ्यारण पहुंचाया गया था. ऐसे में जंगल के कटने से उनके जीवन पर भी संकट पैदा हो जाएगा.