नीमराना (कोटपूतली) के गूगलकोटा गांव में आयोजित एक विवाह समारोह ने दहेज प्रथा के खिलाफ मजबूत संदेश दिया. यहां दूल्हे पक्ष ने विदाई के समय परंपरा के अनुसार दिए जा रहे 11 लाख रुपये दहेज स्वरूप लेने से साफ इनकार कर दिया. दूल्हे के परिवार ने केवल सम्मान के प्रतीक रूप में एक चांदी का सिक्का और नारियल स्वीकार कर विदाई की रस्म पूरी की.
करण सिंंह से हुआ रिश्ता
गूगलकोटा गांव की भांजी रेणुका कंवर की शादी मंडावरा (अजमेर) निवासी करण सिंह राठौड़ से हुई. करण सिंह बारात लेकर गांव पहुंचे, जहां विवाह पूरे रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ. रेणुका कंवर ने अपने ननिहाल में रहते हुए मामा पवन सिंह, दिनेश सिंह, महेश सिंह और नाना रामेश्वर सिंह के संरक्षण में शिक्षा प्राप्त की.
मूक बधिकर बच्चों को पढ़ाते हैं
उन्होंने बीकॉम तक की पढ़ाई पूरी की है. दूल्हा करण सिंह राठौड़ वर्तमान में निवाई, जिला टोंक में मूक-बधिर बच्चों को पढ़ाने का कार्य कर रहे हैं. उनके पिता संजय सिंह राठौड़ अजमेर के एक निजी कॉलेज में कार्यरत हैं. विदाई के समय जब दुल्हन पक्ष ने परंपरा अनुसार 11 लाख रुपये देने का प्रयास किया, तो दूल्हे के पिता संजय सिंह राठौड़ और परिजनों ने दहेज लेने से इनकार करते हुए पूरी राशि लौटा दी.
दहेज लेने से किया इनकार
इस अवसर पर दूल्हे करण सिंह राठौड़ ने कहा कि उन्हें दहेज की कोई आवश्यकता नहीं है. उनके लिए एक पढ़ी-लिखी और समझदार जीवनसाथी मिलना ही सबसे बड़ा दहेज है. वहीं दुल्हन रेणुका कंवर ने कहा कि ससुराल पक्ष की यह पहल सराहनीय है और इससे समाज में दहेज प्रथा के खिलाफ सकारात्मक बदलाव आएगा. इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में चर्चा का माहौल है. ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने इस पहल की खुले दिल से सराहना की और इसे समाज के लिए प्रेरणादायक बताया.
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