"अगर युद्ध हुआ तो पाकिस्तान 4 दिन तक नहीं टिक पाएगा", रिटायर्ड कैप्टन बोले- इस बार पाक को कोई बचा नहीं पाएगा

India Pakistan war: रिटायर्ड कैप्टन बजरंग डूडी ने खिलाफ 1965 और 1971 में दोनों युद्ध में हिस्सा लिया. उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का किस्सा साझा किया.

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रिटायर्ड कैप्टन बजरंग डूडी

Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान बौखला गया है. सीमा पार से लगातार गोलाबारी जारी है. भारत भी पाकिस्तान को सरहद पार माकूल जवाब दे रहा है. रिटायर्ड कैप्टन बजरंग डूडी ने 1971 के युद्ध का किस्सा साझा करते हुए कहा कि अगर युद्ध हुआ तो 4 दिन तक पाकिस्तान नहीं टिक पाएगा. भारत के धैर्य और सैन्य ताकत ने हर बार पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर किया है. चाहे रणनीति हो, सैन्य बल हो या अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, भारत हर मोर्चे पर पाकिस्तानी साज़िशों को नाकाम करता आया है और इस बार भी करेगा. 85 वर्षीय रिटायर्ड कैप्टन का मानना है कि इस बार युद्ध में पाकिस्तान को कोई बचा नहीं पाएगा. भारत पूरी तरह से सक्षम है. 

18 साल की उम्र में सेना में हुए थे भर्ती

बजंरग डूडी 1958 में राजपूताना राइफल्स में 18 वर्ष की उम्र में बतौर हवलदार सेना में भर्ती हुए थे. उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1971 में दोनों युद्ध में हिस्सा लिया. साल 1962 में वह रिजर्व पार्टी में थे. 1971 के युद्ध के दौरान वह नसीराबाद में मोटर प्लाटून के पद पर थे.

तत्कालीन अधिकारियों के आदेश पर गाड़ियां भर कर जोधपुर पहुंचे, जहां से उन्हें जैसलमेर जाने का आदेश मिला. उस वक्त दुनिया को पता ही नहीं था कि भारत की पाकिस्तान से लड़ाई होगी या नहीं.

4 दिसंबर को इस्लामगढ़ जाने का मिला था आदेश

डूडी बताते हैं, "रामगढ़ में 10 से 12 दिन फिर घंटियाली मंदिर 6 दिन और उसके बाद किशनगढ़ गए. 4 दिसंबर की शाम को आदेश मिला कि अब जरूरत आ गई है. उनका प्लाटून किशनगढ़ से पाकिस्तान के इस्लामगढ़ के लिए रवाना हो गयी. तभी बॉर्डर पर साथी कंपनी के कमांडर हवलदार दयानंद उनके साथ थे. बॉर्डर से इस्लामगढ़ 20 किलोमीटर ही दूर था. ज़ब इस्लामगढ़ से चंद किलोमीटर दूर ही थे, तभी पाकिस्तान सेना की पेट्रोलिंग यूनिट ने फायरिंग कर दी और उनके साथी कमांडर दयानंद पर करीब 25 राउंड की हुई."

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बिना गोली चलाए इस्लामगढ़ किला पर जमा लिया था कब्जा

डूडी आगे बताते हैं कि प्लाटून में उस वक़्त अधिकारियों सहित 830 जवान थे. इस्लामगढ़ किला नजदीक आते ही हुंकार भरी तो पाकिस्तान सेना के जवान थर-थर कांपने लगे और बिना गोली चलाए ही हथियार-राशन का अपना सारा सामान मौके पर छोड़ फरार हो गए. भारतीय सेना ने अपने अदम्य साहस और शौर्य के बल पर 5 दिसंबर की सुबह इस्लामगढ़ किला पर कब्जा कर लिया था. रिटायर्ड कैप्टन के मुताबिक, दिन भर वहां रुकने के बाद शाम को आदेश मिलते ही एक डेल्टा कंपनी को छोड़कर सभी किशनगढ़ की तरफ आ गए, उस वक़्त पाकिस्तानी सेना ने लोंगेवाला पर हमला कर दिया था.

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