"परियों का बाग" में मावलियान माता से विराजते है मां दुर्गा के 7 स्वरूप, दर्शन के लिए उमड़ती है भारी भीड़

Rajasthan News: जयपुर के आमेर किले के पास अरावली की तलहटी में स्थित ऐसा ही एक अद्भुत स्थान है- श्याम बाग, जिसे 'परियों का बाग' भी कहा जाता है. यहां स्थित मावलियान माता का प्राचीन मंदिर इसे आस्था का केंद्र भी बनाता है.

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मावलियान माता का प्राचीन मंदिर

Mavliyan Mata: राजस्थान अपने ऐतिहासिक किलों और महलों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यहां के बाग-बगीचे भी अपनी सुंदरता और समृद्ध इतिहास के लिए जाने जाते हैं. जयपुर के आमेर किले के पास अरावली की तलहटी में स्थित ऐसा ही एक अद्भुत स्थान है- श्याम बाग, जिसे 'परियों का बाग' भी कहा जाता है. यह बाग न केवल अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां स्थित मावलियान माता का प्राचीन मंदिर इसे आस्था का केंद्र भी बनाता है.

मावलियान माता का 16वीं शताब्दी का प्राचीन मंदिर

इसी बाग में 16वीं शताब्दी का एक प्राचीन मावलियान माता का मंदिर भी स्थित है, जो देवस्थान विभाग के अधीन है. पुजारी अभिषेक शर्मा बताते हैं कि यहां मां दुर्गा के सात स्वरूपों के दर्शन होते हैं, जिनमें बीजासन माता भी शामिल हैं. यह मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि यहां मुस्लिम समाज के लोग भी अपनी मन्नतें मांगने आते हैं, जिस कारण इसे 'परियों का बाग' भी कहते हैं.

राजा मान सिंह ने पुत्र की याद में बनवाया था यह बाग

वरिष्ठ पर्यटक गाइड महेश कुमार शर्मा के अनुसार, इस सुंदर श्याम बाग का निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मान सिंह प्रथम ने अपने पुत्र श्याम सिंह की याद में करवाया था. लगभग 17वीं शताब्दी में बनकर तैयार हुआ यह बाग, अपने नाम 'श्याम' से ही इस भावुक कहानी को बयां करता है. बाग में लगे घने फलदार और छायादार पेड़ इसे हमेशा ठंडी छांव में रखते हैं. चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा यह बाग मिश्रित शैली की वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है.

जात देने आते हैं बच्चे और नव विवाहित जोड़े

इस मंदिर में बच्चों और नव विवाहित जोड़ों का आना एक पुरानी परंपरा है। देशभर से लोग अपने बच्चों का 'जात जडूला' (मुंडन) कराने और नव विवाहित जोड़े शादी के बाद धोक देने आते हैं. पुजारी के अनुसार, साल में 365 दिनों में से लगभग 45 दिन यहां मेला लगता है, जबकि चैत्र और शारदीय नवरात्रि में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.

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मुंह झूठा करने की अनोखी परंपरा

स्थानीय निवासी विनोद कुमार शर्मा बताते हैं कि वैशाख, माघ और भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक 15-15 दिन के मेले लगते हैं. लोग यहां मन्नतें पूरी होने पर 'मुंह झूठा' करने आते हैं. भक्त अपने साथ घर से भोजन लेकर आते हैं और बाग में बैठकर खाते हैं. यह एक अनोखी परंपरा है. मंदिर में रोजाना मावे की गुझिया और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है. दर्शन के लिए मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 5 बजे से 7 बजे तक खुला रहता है, जबकि नवरात्रि में सुबह 6 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक दर्शन किए जा सकते हैं.

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Report By: Rohan Sharma

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