जैसलमेर बस हादसे में एक परिवार के 3 लोग जिंदा जले, तीन गंभीर झुलसे; बच्चों को ढूंढते रहे पीर मोहम्मद

दादा सोहराब खान अपनी लाठी पकड़े कुर्सी पर बैठे हैं. एकटक दरवाजे की तरफ झांक रहे हैं. उन्हें अब भी उम्मीद है कि बच्चे आएंगे.

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Rajasthan News: जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर मंगलवार को हुए निजी बस के अग्निकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया. इस भयावह बस हादसे में कुल 21 लोगों की मौत हुई है. इनमें से 19 लोगों की बस में जलकर मौके पर ही मौत हो गई थी. वहीं, एक व्यक्ति युनूस की मौत अस्पताल ले जाते वक्त और एक बच्चे युनूस की इलाज के दौरान मौत हो गई. पीर मोहम्मद के घर पर अब केवल मातम का माहौल है. कल जहां 3 पोते-पोती, दादा की आंखों के सामने आंगन में खेल रहे थे. वहां, अब सन्नाटा है.

बच्चे के आने की उम्मीद में बैठे दादा

दादा सोहराब खान अपनी लाठी पकड़े कुर्सी पर बैठे हैं. एकटक दरवाजे की तरफ झांक रहे हैं. उन्हें अब भी उम्मीद है कि बच्चे आएंगे. उन्हें अभी भी बताया नहीं गया है कि तीसरे पोते युनूस की मौत हो गई है. पीर मोहम्मद अपनी पत्नी इमामत के साथ युनूस को जैसलमेर अस्पताल दिखाने गया था. साथ में, इमामत की बहन और युनूस के भाई बहन हसीना (10 साल) और इरफान (5 साल) भी गए थे.

युनूस को दिखाकर वापस अपने गांव बम्बरों की ढाणी लौट रहे थे. उनका गांव जैसलमेर से 30 किलोमीटर दूर है और जहां हादसा हुआ, वहां से करीब 10 किलोमीटर. सोहराब खान ने बताया कि हादसे के बाद पीर मोहम्मद ने फोन कर कहा था कि बस में आग लग गई है. दोनों बच्चों को ढूंढ रहा हूं, मिल नहीं रहे. युनूस के आग लग गई है. मैं और इमामत भी जल गए हैं. हमें जोधपुर अस्पताल ले जा रहे हैं. इसके बाद कोई बात नहीं हुई. 

घर में अब मातम का माहौल

घर में अब मातम का माहौल है. आस पड़ोस के लोग परिवार के साथ बैठे हैं. पीर मोहम्मद के दोनों भाई उसके पास अस्पताल है. उन्होंने बताया है कि तीनों लगभग 50 से 70% जल चुके हैं. हालत नाजुक है. वहीं, इस हादसे में हुसैन की भी मौत हो गई. उनके घर में केवल वे ही कमाने वाले थे. 4 - 5 बकरियां, एक झोपडी यही उनकी संपत्ति थी. खेतों में मजदूरी का काम करते थे. पत्नी मानसिक रूप से बीमार है, वह अब विधवा हो गई है.

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एक 19 साल का लड़का है, वो भी कम समझदार है. मजदूरी करता है. अब मां बेटे दोनों अकेले हैं. घर में मातम का माहौल है. महिलाएं उनकी पत्नी को सम्भाल रही है. पार्थिव देह घर आ गई है. सगे संबंधी जनाजा लेकर गए हैं. उनके ही परिवार के शेरखान ने बताया कि अपने परिवार में जन्में बच्चे से मिलने जैसलमेर गए थे. वापस अपने गांव जावंध जूनी लौट रहे थे. उनका गांव जैसलमेर से 50 किलोमीटर दूर है. रास्ते में ये हादसा हो गया. रात को साढ़े दस बजे उन्हें बता दिया था कि उनकी मौत हो गई है. हालांकि वे जैसलमेर ले जाते वक्त ठीक थे. अब परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है. सरकार से मिल रही सहायता को लेकर वे नाराज है.

एक घंटे बाद हाई एंबुलेंस और दमकल

उसी बस के पीछे उनके एक परिचित यारे खान आ रहे थे, उन्होंने बताया कि बहुत तेज आग लगी थी. इसके बाद लोगों ने शीशा तोड़ने की कोशिश भी की, लगभग 1 घंटे बाद एंबुलेंस और दमकल आई. हालांकि उस वक्त तक सेना के जवानों ने मदद की. अगर आर्मी के जवान ना होते तो ये लोग भी नहीं बच पाते. उन्होंने बताया हुसैन आग लगने के बाद खुद चल कर एम्बुलेंस में बैठे थे. इसके बाद उन्हें पहले जैसलमेर ले गए, फिर वहां से जोधपुर ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई. अगर समय रहते इलाज मिल जाता तो शायद उन्हें बचाया जा सकता था.

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