जैसलमेर मरु महोत्सव के तीन विनर, जानें धीरज-भावना और कोमल ने जीता कौन सा खिताब

Maru Mahotsav 2025: पुरुष प्रतिभागी लम्बे चौड़े रौबीली दाड़ी और मूंछों के साथ राजस्थानी परिधानों से में प्रतिभागी मैदान मे डटे दिखें. वहीं मिस मूमल का खिताब पाने के लिये महिलाएं राजस्थानी परिधानों में लिपटी नजर आईं.

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मरु महोत्सव प्रतियोगिता में जीते हुए प्रतीभागी

Maru Mahotsav Competition: स्वर्णनगरी में सोमवार को विश्व विख्यात मरु महोत्सव की शुरुआत हुई. कला, संस्कृति, लोक-संगीत सहित राजस्थान के अनेक रंगों से जैसलमेर रंगा नजर आ रहा है. नगर आराध्य भगवान लक्ष्मीनाथ का आशीर्वाद लेने के बाद ऐतिहासिक गडीसर सरोवर से भव्य शोभायात्रा निकाली गई. शोभायात्रा में बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ-साथ राजस्थानी लोक कलाकारों ने अपनी शानदार प्रस्तुति दी. इस दौरान मरू महोत्सव की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिता मरूश्री और मिस मूमल, मूंछ श्री के मुकाबले सबसे अधिक रोचक रहे.

लम्बे चौड़े रौबीली दाड़ी और मूंछों के साथ राजस्थानी परिधानों से में प्रतिभागी मैदान मे डटे दिखें. वहीं मिस मूमल का खिताब पाने के लिये राजस्थानी परिधानों में लिपटी नजर आईं. मूंछ श्री प्रतियोगिता के जज व मूंछ किंग के नाम से प्रसिद्ध बीकानेर के गिरधर व्यास थे, जिनकी मूंछों की कुल लम्बाई 38 फिट से अधिक है.

राजस्थानी रंग में रंगे महिला और पुरूष प्रतिभागी

मिस्टर डेजर्ट प्रतियोगिता में निर्णायक मण्डल को भारी मश्कत करनी पड़ी. प्रतिभागियों की परम्परागत वेशभूषा, शारीरिक सौंदर्य, कद काठी, रोबीली मूंछों को बारीकी से अवलोकन किया. इस दौरान धीरज पुरोहित को मिस्टर डेजर्ट (मरुश्री)- 2025 खिताब के लिए चयन हुआ.

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मरु महोत्सव में अविवाहित युवतियों के लिए प्रतिष्ठापूर्ण मिस मूमल 2025 का खिताब कोमल सिद्ध ने जीता. मिस मूमल प्रतियोगिता में बालिकाओं ने पारम्परिक वेशभूषा और झिलमिलाते आभूषणों से सुसज्जित होकर मिस मूमल प्रतियोतिगता में भाग लेने के लिए शरीक हुई.

मरू महोत्सव में अपनी रोबदार मूंछों के बल बूते नर सिंह चौहान ने मूंछ श्री 2025 का खिताब अपने नाम किया. यह प्रतियोगिता गीनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुकी है. करणाराम भील की स्मृति में आयोजित की जाती है. राजस्थानी परम्परागत वेशभूषा में बांकीली मूंछों के जवानों ने अपनी मूंछों की प्रस्तुती दी.

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1988 में हुआ था पहला आयोजन

गौरतलब है कि वर्ष 1980 के बाद क्लासिक टूरिज्म के प्रेमी विदेशियों के पांव जैसलमेर में पड़ने शुरू हुए. इसके बाद पर्यटकों की आवक से मरुस्थलीय जिले की तस्वीर संवरने लगी. सरकारी तंत्र ने जल्द ही जैसलमेर के पर्यटन महत्व को भांप लिया और1988 में यहां डेजर्ट फेस्टिवल का पहला आयोजन हुआ था. 

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