Jalore News: राजस्थान के जालोर जिले के भाद्राजून कस्बे में स्थित एक अनूठी ऐतिहासिक धरोहर 'दिल' के आकार की बावड़ी आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है. कभी ग्रामीणों की प्यास बुझाने वाली यह बावड़ी अब कचरे और गंदगी का ढेर बन चुकी है और उचित रख-रखाव के अभाव में लगातार खराब होती जा रही है.
कभी थी पेयजल का मुख्य स्रोत, अब गंदगी का घर
भाद्राजून की यह प्राचीन बावड़ी कभी गांव के लोगों के लिए पीने के पानी का मुख्य जरिया थी. खास बात यह है कि इसमें आज भी सालभर पानी बना रहता है, लेकिन सफाई न होने के कारण यह पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है. स्थानीय लोग बताते हैं कि जब पानी की जरूरत होती है, तो उन्हें दुर्गंध और गंदगी का सामना करना पड़ता है. महाशिवरात्रि जैसे पावन पर्वों पर तो श्रद्धालुओं को और भी परेशानी होती है.
पानी में जमा गंदगी का ढेर
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वादे हुए पर पूरे नहीं
बताया जाता है कि 10 जुलाई 2021 को आहोर पंचायत समिति ने इस बावड़ी की मरम्मत और सौंदर्यीकरण की योजना बनाई थी. इसमें जर्जर दीवारों को ठीक करना, पानी के रिसाव को रोकना, ऊपरी हिस्से की रंगाई-पुताई और नहर से कचरा साफ करना शामिल था. 'जलशक्ति अभियान' के दौरान केंद्रीय टीम ने भी इसका निरीक्षण किया था, जिससे लोगों में उम्मीद जगी थी कि अब इस धरोहर का कायाकल्प होगा. लेकिन, दुर्भाग्य से ये सारी योजनाएं कागजों पर ही रह गईं और काम अधूरा रह गया.
प्रशासन की अनदेखी, जनता पर भारी
इस साल अच्छी बारिश के कारण बावड़ी पूरी तरह से लबालब भर गई है, लेकिन दीवारों से पानी का रिसाव होने से यह व्यर्थ बह रहा है. ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन से सफाई और मरम्मत की गुहार लगाई, यहां तक कि खुद भी मिलकर सफाई अभियान चलाए, पर कोई स्थायी समाधान नहीं निकला.
दिल वाली बावड़ी
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प्रधानमंत्री मोदी ने भी किया था जिक्र, फिर भी अंधेरे में डूबी
दिलचस्प बात यह है कि यह राजस्थान की एकमात्र दिल के आकार की बावड़ी है, जिसका जिक्र खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में किया था. इस विशेष आकार के कारण यह बावड़ी देशी-विदेशी पर्यटकों को भी खूब आकर्षित करती है. दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं, लेकिन शाम होते ही यहां अंधेरा छा जाता है, क्योंकि रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है. पूर्व सरपंच द्वारा लगाए गए कुछ पौधे भी देखभाल के अभाव में सूख चुके हैं.
ग्रामीणों की यादों में जिंदा है इतिहास
भाद्राजून की इस बावड़ी के चारों ओर विशाल पीपल के पेड़ हैं, जहां पुराने समय में महिलाएं पानी भरकर कुछ देर आराम करती थीं. रियासतकाल की यह धरोहर आज भी ग्रामीणों की यादों में जीवित है, जो इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है.
जिले की अन्य बावड़ियों का भी बुरा हाल
सिर्फ भाद्राजून की बावड़ी ही नहीं, जालौर जिले में थावला गांव, जसवंतपुरा के फेदानी गांव सहित कई अन्य प्राचीन बावड़ियां भी हैं, जो कभी महत्वपूर्ण जलस्रोत हुआ करती थीं. ये बावड़ियां आज भी पानी उपलब्ध करा सकती हैं, लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते ये भी धीरे-धीरे खंडहर में बदल रही हैं.
'तकनीकी निरीक्षण के बाद होगा काम'
इस बारे में जब ग्राम प्रशासक सुरेंद्र मीणा से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि ग्राम पंचायत द्वारा पहले भी कुछ बजट स्वीकृत कर कार्य करवाए गए थे, लेकिन अभी बहुत काम बाकी है. उन्होंने आश्वासन दिया कि तकनीकी अधिकारियों द्वारा निरीक्षण के बाद आधुनिक तकनीक का उपयोग करके मरम्मत का प्रयास किया जाएगा.
जरूरत है जल संरक्षण और विरासत बचाने की
भाद्राजून की यह 'दिल' बावड़ी सिर्फ पानी का एक स्रोत नहीं, बल्कि जालौर के इतिहास और संस्कृति का जीता-जागता प्रमाण है. यह समय की मांग है कि सरकार और स्थानीय समाज मिलकर इस अनमोल धरोहर को बचाएं. जल संरक्षण के लिए तो यह बावड़ी महत्वपूर्ण है ही, साथ ही हमारी ऐतिहासिक विरासत को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाना भी हमारी जिम्मेदारी है.
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