Janmashtami 2024: जन्माष्टमी पर बंगाली फूलों से सजेगा बाबा श्याम का दरबार, महाआरती के बाद श्रद्धालु करेंगे दर्शन

Khatushyam News: रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के समय भक्तों के लिए बाबा श्याम के मंदिर के कपाट खोल दिए जाएंगे और विशेष महाआरती का आयोजन किया जाएगा.

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Janmashtami 2024: कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आज यानि सोमवार को कलयुग के देवता और कृष्ण के अवतार माने जाने वाले बाबा खाटू श्याम के दरबार में विशेष आयोजन किया जाएगा. सोमवार सुबह से ही खाटू नगरी में स्थित बाबा श्याम के दरबार में बाबा श्याम के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है. जन्माष्टमी के त्यौहार को देखते हुए मंदिर कमेटी की ओर से बाबा श्याम के दरबार को रंग-बिरंगे बंगाली फूलों और लाइटों से सजाया गया है. रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के समय भक्तों के लिए बाबा श्याम के मंदिर के कपाट खोल दिए जाएंगे और विशेष महाआरती का आयोजन किया जाएगा.

पंचामृत से अभिषेक कर श्रृंगार किया जाएगा

मंदिर कमेटी के अध्यक्ष प्रताप सिंह चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप खाटू श्याम जी की पूजा अर्चना के चलते बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा श्याम के दरबार में पहुंचेंगे. कृष्ण जन्माष्टमी के मद्देनजर खाटू श्याम मंदिर कमेटी की ओर से भी विशेष आयोजन किए जाएंगे. जन्माष्टमी के दिन बाबा श्याम के मंदिर के कपाट रात्रि साढ़े नौ बजे बंद कर दिए जाएंगे, जो रात 12 बजे भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय खोले जाएंगे. करीब ढाई घंटे तक बाबा खाटू श्याम के मंदिर के कपाट बंद रहेंगे. इस दौरान बाबा श्याम का पंचामृत से अभिषेक कर श्रृंगार किया जाएगा. उसके बाद मंदिर के कपाट खोले जाएंगे और विशेष आरती का आयोजन कर सभी श्रद्धालुओं को पंचामृत, पंजीरी व फलों का प्रसाद वितरित किया जाएगा. जन्माष्टमी के अवसर को देखते हुए श्याम मंदिर कमेटी की ओर से तैयारियां कर ली गई हैं.बाबा श्याम की नगरी में कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर श्रद्धालुओं द्वारा कई धार्मिक आयोजन भी किए जाएंगे.

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बर्बरीक ही है खाटूशयाम

खाटूश्याम का असली नाम बर्बरीक है, जो पांडव पुत्र भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र हैं. बर्बरीक बचपन से ही एक वीर और महान योद्धा थे, उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे. इसीलिए उन्हें तीन बाणधारी भी कहा जाता है. महाभारत युद्ध के दौरान बर्बरीक ने प्रतिज्ञा की थी कि युद्ध में जिसे भी वह हारता हुआ देखेंगे, वह उसका सहारा बनेंगे. इसीलिए उन्हें हारे का सहारा भी कहा जाता है. महाभारत युद्ध में पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपने दादा पांडवों की जीत के लिए ब्राह्मण वेश में आए भगवान श्री कृष्ण को स्वेच्छा से अपना सिर दान कर दिया था. बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था. इसीलिए आज बर्बरीक को बाबा खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है.
 

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