Rajasthan: जन्माष्टमी के अगले दिन भरता है मेला, 625 साल पुराने गोगाजी के इस मंदिर में देखने मिलती है अनूठी मिसाल

Kotputli news: गोगाजी सभी जाति और धर्म के लोगों का आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि यहां सभी की मनोकामना पूरी होती है.

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Narehda Kotputli Janmashtami:  नारेहड़ा (कोटपूतली) में जन्माष्टमी के अगले दिन सामाजिक समरसता की मिसाल देखने को मिल रही है. 625 साल पहले पुराने गोगाजी मंदिर के मेले में विभिन्न समुदाय के लोगों में सामाजिक समरसता और आस्था का केंद्र बना हुआ है. इसकी खासियत यह है कि मंदिर के प्रति हर जाति व धर्म के लोगों में गहरी आस्था है. श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन नवमी और दशमी को गोगाजी मंदिर पर मेला भरता है. इस दिन व रात्रि को सत्संग व जागरण होता है, जिसमें गायक प्रस्तुति देते हैं. दो दिन तक चलने वाले इस मेले में एक बड़ा ढोल रखा जाता है, जिसे श्रद्धालु बजाकर गोगाजी के चरणों में उपस्थिति दर्ज कराते हैं.

श्रद्धालु छत्र-चद्दर चढ़ाकर मांगते हैं मन्नत

मेले के एक दिन पहले श्रीकृष्ण व गोगाजी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में स्थानीय व आसपास के ग्रामीण मसाल जलाकर रात्रि जागरण करते हैं. दूसरे दिन गोगा नवमी को हर घर में मिट्टी के गोगाजी की मूर्ति की पूजा कर हलवे व पूड़ी का भोग लगाते हैं. श्रद्धालु गोगाजी को छत्र व चद्दर चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं.

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पुजारी पप्पू खान ने बताया गोगाजी सभी जाति और धर्म के लोगों का आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि यहां सभी की मनोकामना पूरी होती है. यहां मंदिर स्थापना से ही गोगाजी महाराज की ज्योत जल रही है.

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ये है मंदिर का इतिहास

गोगाजी सर्पों के देवता व गो रक्षक थे. वर्ष 1395 में नाहर सिंह ने नारहेड़ा गांव को बसाया था. बताया जाता है कि नाहर सिंह की सातवीं पीढ़ी में लक्ष्मीदास पैदा हुए, जिन्होंने अपनी मनोकामना पूरी होने पर गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) में गोगाजी के दर्शन करने के बाद वापसी में उन्होंने वहां की ईट लाकर इस स्थान पर स्थापित कर दी. तभी से मंदिर की स्थापना के उपलक्ष्य में गोगाजी महाराज का प्रतिवर्ष मेला भरता आ रहा है.

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महिलाएं मंदिर में बांधती है रक्षा सूत्र

महिलाएं मंदिर में रक्षा सूत्र अर्पित करती हैं. इस दिन मंदिर को रोशनी से विशेष रूप से सजाया जाता है. मेले में लगने वाले विभिन्न स्टॉल पर आसपास के गांव से आने वाले बच्चे व महिलाएं सामान की खरीददारी करते हैं.

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