झालावाड़ स्कूल हादसे में अपने बच्चों को खोने वाली दो महिलाएं फिर बन सकेंगी मां, डॉक्टरों ने रिवर्स किया नसबंदी ऑपरेशन

झालावाड़ के पिपलौदी स्कूल हादसे में अपने बच्चे खोने वाली दो माताओं - राजूबाई और विनतीबाई - को डॉक्टरों ने नई उम्मीद दी है. 16 साल पहले हुई नसबंदी सर्जरी को सफलतापूर्वक रिवर्स कर दिया गया है.

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झालावाड़ स्कूल हादसे में बच्चे खोने वाली 2 माताओं को डॉक्टरों ने दी नई उम्मीद, नसबंदी ऑपरेशन हुआ 'रिवर्स'
NDTV Reporter

Rajasthan News: राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलौदी गांव में हुए उस भयानक स्कूल हादसे (Piplodi School Hadsa) को कोई नहीं भूल सकता, जिसमें 7 मासूमों ने अपनी जान गंवा दी थी. इसी हादसे ने राजूबाई और विनतीबाई नाम की दो माताओं की गोद सूनी कर दी थी. अपने बच्चों को खोने के बाद दोनों गहरे सदमे में थीं, उनके जीवन में जैसे अंधेरा छा गया था. लेकिन, अब उनके आंगन में फिर से खुशियों की रोशनी लौटने वाली है.

6 साल पहले करवाया था नसबंदी ऑपरेशन

इस दुख की घड़ी में, झालावाड़ के मेडिकल डिपार्टमेंट ने कमाल की संवेदनशीलता दिखाई. दोनों माताओं ने फिर से मां बनने की इच्छा जताई, लेकिन उनके सामने एक बड़ी चुनौती थी. दरअसल, राजूबाई ने 16 साल पहले और विनतीबाई ने 6 साल पहले परिवार नियोजन के तहत नसबंदी ऑपरेशन करवा लिया था. यानी, उनके लिए दोबारा मां बनना लगभग असंभव था. मगर, झालावाड़ के डॉक्टर मनोज और डॉक्टर राशिद की टीम ने हिम्मत दिखाई और इस जटिल चुनौती को स्वीकार किया.

10 साल बाद 'रिवर्स सर्जरी' का सफल ऑपरेशन

डॉक्टरों ने फैलोपियन ट्यूब को दोबारा खोलने का अत्यंत जटिल ऑपरेशन किया. यह कोई आसान सर्जरी नहीं थी. इसमें नसों को बारीकी से फिर से जोड़ना पड़ा. झालावाड़ जिला अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मनोज ने बताया कि ऑपरेशन पूरी तरह से सफल रहा. उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 10 सालों में यह पहला मौका है जब किसी महिला की नसबंदी के बाद इतनी सफलतापूर्वक 'रिवर्स सर्जरी' की गई है. दोनों महिलाएं अब स्वस्थ हैं और कुछ ही हफ्तों में सामान्य जीवन जी सकेंगी. डॉक्टरों के अनुसार, चिकित्सकीय दृष्टि से दोनों माताओं के लिए फिर से गर्भधारण करने की पूरी-पूरी संभावना है.

'यह मौका भगवान का दिया हुआ है'

इस खबर से पूरे पिपलौदी गांव में और दोनों परिवारों में खुशी का माहौल है. राजूबाई और विनतीबाई ने भावुक होकर कहा, 'बच्चों की कमी तो कभी पूरी नहीं हो सकती, लेकिन यह मौका भगवान की ओर से मिली एक नई उम्मीद जैसा है.' यह कहानी सिर्फ एक चिकित्सा उपलब्धि नहीं है, बल्कि मानवीय संवेदनशीलता, कड़ी मेहनत और नई उम्मीद की एक मिसाल है.

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