ऐसा कहा जाता है कि संघर्ष जितना बड़ा होता है जीत की खुशी भी उतनी ही बड़ी होती है. इस कहावत को प्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय (JNVS) के मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत दिव्यांग शिक्षिका डॉ. अर्पित कक्कड़ ने सिद्ध किया है.
डॉ. अर्पित कक्कड़ मनोविज्ञान विभाग में विद्यार्थी और उसके बाद शोधार्थी के रूप में जुड़ी रहीं, जिसके बाद वर्ष 2013 में कक्क्ड़ बतौर सहायक आचार्य के रूप नियुक्त हुईं. लेकिन दुर्भाग्य ऐसा रहा कि इतने लंबे अरसे बाद भी डॉ. अर्पिता कक्कड़ को जेएनवीयू के न्यू कैम्पस के लेंग्वेज विंग में प्रथम तल पर बने मनोविज्ञान विभाग को देखना भी नसीब नहीं हुआ. जहां वर्ष 2013 में उनका चयन सहायक आचार्य के रूप में हुआ था.
सोमवार को नवरात्रि के दूसरे दिन रैंप उद्घाटन के साथ ही डॉ. अर्पित कक्कड़ का स्वागत किया गया.
उसके बाद विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें ग्राउंड फ्लोर पर एक कक्ष आवंटित किया गया. जहां पर उन्हें आवंटित कक्षाएं लगती थीं. लेकिन पिछले कुछ समय से तत्कालीन विभागध्यक्ष प्रोफेसर लक्ष्मी नारायण बुनकर के सफल प्रयासों के बाद आखिरकार सोमवार को नवरात्रि के दूसरे दिन यह अवसर बना.
भावुक हुईं शिक्षिका
मनोविज्ञान विभाग में से सेवारत दिव्यांग शिक्षिका डॉ. अर्पित कक्कड़ के पहली बार अपने मनोविज्ञान विभाग में पहुंचने पर भावुक हो गईं. डॉ. अर्पित लंबे समय से चले आ रहे उनके इस संघर्ष की आखिरकार जीत हुई. विद्यार्थियों के साथ ही शिक्षकों ने भी केक कटवा कर उन्हें इस ऐतिहासिक क्षण के लिए बधाई भी दी.
ऐतिहासिक पल के साक्षी
मनोविज्ञान विभाग में डॉ.अर्पिता कक्कड़ ने जब रैंप निर्माण के बाद वहां पहला कदम रखा तब इस भावुक क्षण के साक्षी न सिर्फ विभाग में कार्यरत शिक्षक और विद्यार्थी रहे बल्कि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के एल श्रीवास्तव के साथ ही आर्ट्स विभाग के डीन प्रोफेसर कल्पना पुरोहित भी रही.
डॉ. अर्पित कक्कड़ के साथ कुलपति प्रोफेसर के एल श्रीवास्तव और आर्ट्स विभाग के डीन प्रोफेसर कल्पना पुरोहित सहित अन्य प्रोफ़ेसर मौजूद रहे
गहलोत रहे हैं इसी विवि के छात्र
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ ही केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी इसी प्रतिष्ठित जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भी रहे हैं. लेकिन दुर्भाग्य ऐसा रहा कि वर्तमान दौर में भी दिव्यांगों के लिए इस विश्वविद्यालय में कहीं भी रैंप नही है. इतने लंबे समय अंतराल के बाद आखिरकार अब व्यास विश्वविद्यालय का लैंग्वेज विंग दिव्यांग फ्रेंडली हुआ है, जिसका कारण भी दिव्यांग शिक्षिका का लम्बा संघर्ष है.