Jodhpur: 93 साल पहले पुलिस करती थी आवारा कुत्तों की देखभाल, आज नगर निगम लाचार! जानिए क्या है पूरा मामला

Rajasthan News: सुप्रीम कोर्ट ने कुत्तों को सड़क से हटाने का आदेश जारी किया तो राजस्थान हाईकोर्ट ने भी राज्य के स्थानीय निकायों को इस संबंध में निर्देश जारी किए. जिसके बाद सोशल मीडिया पर इस विषय पर खूब चर्चा हो रही है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

Stray Dogs in Jodhpur: देश की राजधानी दिल्ली से लेकर राजस्थान के जोधपुर तक, इन दिनों हर जगह बस एक ही मुद्दा चर्चा में है- सड़कों पर आवारा कुत्तों का बढ़ता आतंक. सुप्रीम कोर्ट ने कुत्तों को सड़क से हटाने का आदेश जारी किया तो राजस्थान हाईकोर्ट ( Rajasthan High court) ने भी राज्य के स्थानीय निकायों को इस संबंध में निर्देश जारी किए. जिसके बाद सोशल मीडिया (Social media) पर इस विषय पर खूब चर्चा हो रही है. इसी कड़ी में सरकार से लेकर प्रशासन तक, सभी कुत्तों के बाड़ों (dog enclosures) के रखरखाव को लेकर काफी चिंतित हैं. जिसे लेकर वे इनकी हालिया तस्वीर जानने की कोशिश कर रहे हैं. इसी कड़ी में जोधपुर में नगर निगम ने सूरसागर स्थित कुत्तों के बाड़े का हाल जानने की कोशिश की.

जोधपुर का कुत्ताघर अब उपयोगी नहीं रहा

यह ब्लू सिटी के सूरसागर में संचालित है, लेकिन किसी काम का नहीं है. यह बाड़ा आजादी से पहले से शहर में है. उस समय मारवाड़ में कुत्तों का आश्रय स्थल मेड़तिया गेट पर हुआ करता था, जिसे बाद में जालिया बेरा में स्थानांतरित कर दिया गया. तब इसके प्रबंधन की जिम्मेदारी नगरपालिका के बजाय पुलिस विभाग को दे दी गई थी.जिसके अंतर्गत प्रत्येक अक्षर परिलक्षित होता है.

आजादी से पहले की व्यवस्था

दरअसल, मारवाड़ शासन के दौरान भी आवारा कुत्तों को लेकर चिंता उस समय के एक पत्र में झलकती है. इन्हें सड़कों पर घूमने से रोकने के लिए मेड़तिया गेट पर एक आश्रय स्थल बनाया गया था.

आज की नगर निगम की तरह उस समय की नगरपालिका भी शहर में कुत्तों से सुरक्षित माहौल देने में नाकाम रही थी. तब आवारा कुत्तों के आश्रय गृह का नियंत्रण और रखरखाव नगरपालिका से लेकर पुलिस विभाग को सौंप दिया गया था. जिसके बाद कुत्तों और उनके खान-पान की बेहतर निगरानी के लिए 1 मई 1933 को एक साल के लिए 25 रुपये प्रति माह के वेतन पर आश्रय गृहपाल का अस्थायी पद स्थापित किया गया. इसके बाद से आश्रय गृह की स्थिति में काफी सुधार हुआ और उनकी देखरेख में कुत्तों की अच्छी देखभाल होने लगी.

पुलिस ने मांगी थी वेतन वृद्धि

तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ने 8 जुलाई 1934 को जोधपुर सरकार के राज्य मंत्री (तत्कालीन कृषि मुख्यमंत्री) को लिखे एक पत्र में कहा था कि आश्रय गृह के वर्तमान सुचारू संचालन को जारी रखने के लिए आश्रय गृहपालक का पद स्थायी किया जाना आवश्यक है. इसके अतिरिक्त, चूंकि वर्तमान आवारा कुत्तों का आश्रय स्थल जालिया बेरा में स्थित है, जो शहर से एकांत और दूर स्थान है, इसलिए निम्न वर्ग के कर्मचारियों को वर्तमान कम वेतन पर अपने पदों पर बने रहने के लिए राजी करना कठिन हो गया है, इसलिए कुछ निम्नस्तरीय कर्मचारियों के वेतनमानों में संशोधन का सम्मानपूर्वक प्रस्ताव है.

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कुत्तों के लिए थे दो गाड़ीवान, महिला रसोइयां

आजादी से पहले कुत्तों की देखभाल के पूरे इंतजाम थे. लेकिन आज़ादी के बाद कुत्तों के बाड़ों की हालत बेहद खराब है. उस समय कुत्तों की देखभाल के लिए दो गाड़ीवान या भैंस पालक होते थे, जिनका वेतन 8 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह था, जिसे पुलिस विभाग ने बढ़ाकर 10 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह करने का प्रस्ताव रखा था. इसी तरह, दो महिला रसोइया भी नियुक्त की गईं, जिन्हें 8 रुपये प्रति माह वेतन मिलता था. उनके वेतन में 2 रुपये प्रति माह की वृद्धि करके उसे मानक स्तर पर रखने की सिफ़ारिश की गई थी.

तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक का लिखा लेटर
Photo Credit: NDTV

सोशल मीडिया पर  लोग सुना रहे है अपनी आप बीती

आज स्थिति बिल्कुल उलट है. आजादी के बाद से कुत्तों के बाड़े के हाल बदतर होते चले गए हैं। अब हाई कोर्ट के आदेश के बाद शहर के लोग बेसब्री से नगर निगम की कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं.लोग सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती और अपने मोहल्लों में आवारा कुत्तों की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं, लेकिन निगम की तरफ से कोई जवाब नहीं मिल रहा है.

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अब निगम से कार्रवाई का इंतजार 

चौपासनी हाउसिंग बोर्ड के निवासी अरविंद शर्मा ने बताया कि वे पिछले 8 महीनों से शिकायत कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है. उन्होंने अपनी आपबीती साझा करते हुए कहा कि उनके घर के पास कुत्तों की संख्या बहुत बढ़ गई है और एक दिन उन पर 4 कुत्तों ने हमला कर दिया था। अब उन्हें कार तक पहुंचने में भी डर लगता है.

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