Jodhpur: मेहरानगढ़ किले का आर्ट कन्वर्जन सेंटर, जहां 500 साल की ऐतिहासिक विरासत को वैज्ञानिक तरीके से किया जा रहा है संरक्षित

Jodhpur: राजस्थान में इन ऐतिहासिक इमारतों और महत्वपूर्ण दस्तावेजों के संरक्षण की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी. इसलिए जोधपुर में एक सुव्यवस्थित संरक्षण प्रयोगशाला बनाई गई है.

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Jodhpur: राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर अपने ऐतिहासिक किलों और महलों के साथ विश्व मानचित्र पर एक प्रमुख पर्यटन स्थल है. जोधपुर के पूर्व महाराजा गजसिंह की दूरदर्शी सोच से आज भी जोधपुर में ऐतिहासिक किलों, महलों और पौराणिक धरोहरों के साथ-साथ सैकड़ों वर्ष पूर्व किलों और महलों में लुप्त हो रही चित्रकारी, लघु चित्रकला और पूर्व के राजपत्रित दस्तावेजों और ऐतिहासिक धरोहरों के साथ-साथ पुराने अभिलेखों, पांडुलिपियों और पुरानी पेंटिंग्स और लुप्त हो रही वस्तुओं को संरक्षित करने का कार्य जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ किले में बने कला संरक्षण केंद्र में वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार किया जा रहा है. यह कार्य कई अनुभवी और प्रशिक्षित लोगों के जरिए बखूबी किया जा रहा है. जिससे आने वाली पीढ़ियां इन ऐतिहासिक धरोहरों से रू-ब-रू हो सकें.

लुप्त हो रही वस्तुओं को संरक्षित करने का कार्य

कंजर्वेशन की आवश्यकताओं लंबे समय से किया जा रहा था अनुभव

वर्तमान में जोधपुर की ऐतिहासिक धरोहरों की ओर देशी-विदेशी पर्यटक आकर्षित हो रहे हैं. राजस्थान में इन ऐतिहासिक इमारतों और महत्वपूर्ण दस्तावेजों के संरक्षण की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी. इसलिए जोधपुर में एक सुव्यवस्थित संरक्षण प्रयोगशाला बनाई गई है. यह कार्य महाराजा गजसिंह के सकारात्मक प्रयासों और कला के प्रति उनके प्रेम के कारण संभव हो पाया है. क्योंकि उन्होंने लुप्त हो रही प्राचीन कलाकृतियों को बचाने के लिए संरक्षण प्रयोगशाला की जरूरत को समझा था.

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प्राचीन कलाकृतियों को बचाने के लिए बनाई गई संरक्षण प्रयोगशाला

1996 में मेहरानगढ़ कलाकृति संरक्षण केंद्र हुई थी शुरुआत

महाराजा गजसिंह के प्रयासों से  इंटैक भारतीय संरक्षण संस्थान लखनऊ के डॉ. ओ.पी. अग्रवाल और मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के सहयोग से वर्ष 1996 में मेहरानगढ़ कलाकृति संरक्षण केंद्र की अनौपचारिक शुरुआत हुई थी. वर्तमान में यहां इस केंद्र के खुल जाने से यह कार्य और भी आसान हो गया है. वर्तमान में अन्य संरक्षण सुविधाएं जैसे लघु चित्रकला, शिलालेख, तैल चित्र, लकड़ी, धातु एवं अन्य सामग्रियों के संरक्षण की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए धीरे-धीरे केंद्र में इनके संरक्षण के लिए सभी प्रकार की व्यवस्थाएं उपलब्ध कराई गईं. और इसके साथ ही वर्तमान में यह केंद्र अब आधुनिक उपकरणों के साथ एक सुव्यवस्थित प्रयोगशाला के रूप में विद्यमान है. इसमें अनेक कलाकृतियों के संरक्षण के लिए कार्य किया जा रहा है.

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1996 में मेहरानगढ़ कलाकृति संरक्षण केंद्र हुई थी शुरुआत

अत्याधुनिक मशीनों और वैज्ञानिक तरीकों से किया जाता है संरक्षण

केंद्र में संरक्षण की सभी सुविधाएं मौजूद हैं.  संरक्षण का काम प्रशिक्षित संरक्षकों के जरिए अत्याधुनिक मशीनों और वैज्ञानिक तरीकों से किया जाता है. इसे खराब हो रही कलाकृतियों के लिए एक आधुनिक अस्पताल के रूप में समझा जा सकता है, जहां कलाकृतियों के खराब होने के कारणों की पहचान कर उनका इलाज किया जाता है. पूरी प्रक्रिया का विस्तृत ब्यौरा भी रखा जाता है. इस केंद्र में कलाकृतियों को बनाने की विधि, उनकी स्थिति, व्यवहार और खराब होने के प्रकार और उनके कारणों के बारे में प्रशिक्षकों द्वारा विस्तार से बताया जाता है.

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अत्याधुनिक मशीनों और वैज्ञानिक तरीकों से किया जाता है संरक्षण

जोधपुर महाराजा की दूरदर्शिता की सोच है मेहरानगढ़ कलाकृति संरक्षण केंद्र

ऐतिहासिक मेहरानगढ़ दुर्ग के महलों में स्थापित संरक्षण केंद्र में ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने का कार्य बड़ी कुशलता के साथ किया जाता है. मेहरानगढ़ कला संरक्षण केंद्र के प्रभारी एवं अन्य विशेषज्ञों के माध्यम से लैब में किए जा रहे कार्यों की जानकारी देते हुए बताया गया कि यह जोधपुर महाराजा की दूरदर्शिता की सोच है. इसीलिए यहां इन ऐतिहासिक धरोहरों को वैज्ञानिक तरीके से सहेजने एवं सुरक्षित रखने का कार्य किया जा रहा है. जो आने वाली पीढ़ी के लिए भी काफी उपयोगी साबित होगा. इसके जरिए वे भविष्य में ऐतिहासिक एवं दुर्लभ वस्तुओं के दीदार कर सकेंगे. संरक्षण केंद्र में 500 साल से अधिक पुरानी दुर्लभ पेंटिंग्स एवं लघु चित्रकलाओं, पांडुलिपियों के साथ ही कई राजपत्रों, पौराणिक दस्तावेजों को विशेष रसायनों एवं वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ उच्च उपकरणों से संरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है. संभवत: यह प्रदेश की पहली ऐसी लैब है जहां उच्च उपकरणों के माध्यम से यह कार्य किया जा रहा है.