Jodhpur News: 19 साल पुराने डांगियावास हत्या काण्ड के सभी आरोपी बरी, SC ने कहा- पुलिस सबूत नहीं जुटा पाई 

19 साल पहले डांगियावास में एक शख़्स की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संबधित थाने की जांच को खारिज कर दिया है. जिसके बाद मामले में आरोपी बनाये गए सभी लोग बरी हो गए हैं.

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Rajasthan: जोधपुर कमिश्नरेट के डांगियावास थाने में 19 साल पहले हुई हत्या के मामले में पुलिस की तफ्तीश पर ट्रायल कोर्ट से दोषी ठहराए गए आरोपी पहले हाईकोर्ट से बरी हुए तो अब सुप्रीम कोर्ट से. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया और भंवर सिंह, हेमलता और नरपत चौधरी को बरी करने के राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा.

जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बरी करने के फैसले की पुष्टि करते हुए निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष का मामला एक "बनावटी कहानी" पर आधारित था और प्रस्तुत साक्ष्य अपर्याप्त, अस्वीकार्य और अविश्वसनीय थे. राजस्थान उच्च न्यायालय ने "अभियोजन पक्ष के मामले में साक्ष्यों की कमी और स्पष्ट कमियों" का हवाला देते हुए उन्हें बरी कर दिया. 

नृशंस हत्या की गई थी

दरअसल, 23 जनवरी, 2006 को मृतक के बेटे नवनीत शर्मा ने अपने पिता सुरेश शर्मा की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. रिपोर्ट में उनके पिता और अन्य व्यक्तियों के बीच चल रहे जमीनी विवाद का ज़िक्र था. उसी दिन बाद में, जाजीवाल गहलोतान और जाजीवाल भाटियान गांवों के बीच एक शव मिला, जिसकी पहचान नवनीत शर्मा ने अपने पिता के रूप में की. मृतक के हाथ लोहे के तार से बंधे थे, पैर कपड़े से बंध थे, और पहचान मिटाने के लिए उसका चेहरा कुचला हुआ प्रतीत हो रहा था.

डांगियावास थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 201 के तहत एफआईआर दर्ज की गई. मेडिकल बोर्ड द्वारा किए गए पोस्टमार्टम परीक्षण में शरीर पर लगभग 20 चोटों के निशान पाए गए और निष्कर्ष निकाला गया कि मौत का कारण "मृत्यु से पहले गला घोंटना" था. जाँच के बाद, पुलिस ने भंवर सिंह, हेमलता और नरपत चौधरी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया. 

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परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर हुई थी सजा 

निचली अदालत ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्त को दोषी ठहराया. अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि अभियुक्तों ने अलग-अलग उद्देश्यों से सुरेश शर्मा की हत्या की साजिश रची थी. प्रतिवादी हेमलता और उसके पति नरपत चौधरी के लिए, मृतक के उनके घर बार-बार आने से उनकी परेशानी को कारण बताया गया. प्रतिवादी भंवर सिंह के लिए, कारण सायरी देवी के साथ एक ज़मीनी विवाद बताया गया, जिसमें मृतक ने उसका पक्ष लिया था और कथित तौर पर भंवर सिंह को धमकी दी थी.

अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि अभियुक्तों ने उत्तर प्रदेश से पेशेवर हत्यारों को बुलाया और 22 जनवरी, 2006 की शाम को मृतक को हेमलता के घर फुसलाकर ले गए और गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी. इसके बाद, कथित तौर पर, उन्होंने शव को नरपत चौधरी की मारुति वैन में डालकर सड़क किनारे छोड़ दिया.

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सर्वोच्च अदालत ने की सबूतों की गहन जांच

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सबूतों की "गहन जांच" की और पाया कि बरी करने के लिए हाई कोर्ट का तर्क सही और न्यायोचित है. अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसका "दृढ़ मत है कि उच्च न्यायालय द्वारा हुकुम सिंह और धर्मेंद्र सिंह की गवाही को खारिज करना पूरी तरह से उचित था, क्योंकि उनका आचरण संदिग्ध था. 

अदालत ने कहा, "जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि चुन्नी का ब्लड ग्रुप मृतक सुरेश के ब्लड ग्रुप के समान है, तब तक मानव रक्त के धब्बों के साथ भी उसकी बरामदगी अप्रासंगिक होगी." अदालत ने "उच्च न्यायालय द्वारा निकाले गए इस निष्कर्ष पर पूरी मुहर लगाई कि चुन्नी की बरामदगी मनगढ़ंत थी."

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