गांव में फ्री में मिलेगी शहर जैसी लाइब्रेरी की सुविधा, जोधपुर जिला परिषद के CEO ने शुरू की अनूठी पहल

शहरी लाइब्रेरी की तर्ज पर ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले इन लाइब्रेरियों को विद्यार्थियों की जरूरत और उनके शिक्षा के अनुरूप हर सुविधाओं को ध्यान रखते हुए तैयार किया जा रहा है.

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तिंवरी में बनकर तैयार हुई लाइब्रेरी
NDTV Reporter

Rajasthan News: आईएएस अधिकारी धीरज कुमार सिंह ने जोधपुर में एक अनूठी पहल की है. उन्होंने जोधपुर के 20 ब्लॉक में अत्याधुनिका लाइब्रेरी तैयार करने का बीड़ा उठाया है. वह जोधपुर जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Jodhpur Zila Parishad CEO) है. धीरज कुमार सिंह की इस पहल से शहर की तर्ज पर जोधपुर के ग्रामीण इलाकों में लाइब्रेरी की सुविधा मिलेगी. ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले गरीब विद्यार्थी घर परिवार के पास रहकर ही पढ़ सकेंगे. 

तिंवरी में लाइब्रेरी बनकर तैयार

जोधपुर जिले के तिंवरी पंचायत स्तर पर अत्याधुनिक लाइब्रेरी बनकर तैयार भी हो चुकी है. जिसमें सुरक्षा की दृष्टि से हाई डेफिनेशन सीसीटीवी कैमरों से भी लैस किया गया है. लाइब्रेरी पूर्ण रूप से वाई-फाई से लैस होगी. सीईओ धीरज कुमार सिंह ने बताया कि शहरी क्षेत्र में प्राइवेट लाइब्रेरी या निजी रीडिंग रूम का चलन काफी है. जहां चाहे बच्चे किसी भी कंपटीशन की तैयारी कर रहे हो. दिल्ली हो, जयपुर हो या जोधपुर हो और बड़े शहरों में निजी लाइब्रेरी का चलन है. 

हर ब्लॉक में 6-6 पंचायत का चयन

उन्होंने कहा कि हमने इसी परिकल्पना के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में भी लाइब्रेरी व रीडिंग रूम बनाने का निर्णय लिया है. इसके तहत ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे अपने पंचायत स्तर पर ही बनी लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ सकेंगे. जोधपुर जिले में कुल 21 ब्लॉक हैं, जहां हर ब्लॉक में 6-6 पंचायत स्तरों पर इसका चयन किया है, जहां पर पढ़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक है. उन पंचायत का प्राथमिकता के साथ चयन किया है और 120 पंचायतों की लिस्टिंग हो चुकी है. स्थानों का भी हमने चयन कर लिया है.

धीरज कुमार सिंह ने बताया कि अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे गरीब परिवेश से आते हैं. कई ऐसे बच्चे होते हैं जिनके पास कंपीटीशन की तैयारी करने या पढ़ने के लिए पैसे भी नहीं होते. प्राइवेट लाइब्रेरी व रीडिंग रूम के लिए कम से कम 1 हजार से 15 सौ रुपये तक बच्चों को देना पड़ता है. हमारा उद्देश्य है कि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को पढ़ने के लिए शहर में न आना पड़े. अपने घर के पास ही पंचायत स्तर पर ही उनको एक रीडिंग स्पेस मिल पाए, जिससे कि उन पर आर्थिक बोझ भी ना पड़े. 

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