Bhairava Ashtami 2025: 600 साल पुराने भैरू बाबा मंदिर का अद्भुत रहस्य, जाने कैसे रातों रात हुई चमत्कारी मूर्ति की स्थापना

Kaal kala bhairav Temple Mystery: रींगस स्थित भैरू बाबा मंदिर का इतिहास लगभग 600 साल पुराना है.गुर्जर समाज के लोग भैरू बाबा की पूजा करते है.

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रींगस स्थित भैरू बाबा मंदिर का इतिहास

kaal Bhairav Ashtami 2025:  देशभर में प्रसिद्ध रींगस स्थित भैरू बाबा मंदिर का इतिहास लगभग 600 साल पुराना है.  गुर्जर समाज के लोग भैरू बाबा की पूजा करते है. मान्यता है 600 साल पहले उनकी पूजा की गई एक मूर्ति की स्थापना यहां हुई, जिसके बाद से आज तक इसकी पूजा निरंतर की जा रही है.  

कैसे हुई मूर्ति की स्थापना

कहा जाता है कि गुर्जर समाज के लोग मंडोर (जोधपुर) में रहा करते थे और भैरू बाबा के रूप में एक पत्थर की मूर्ति की पूजा करते थे. एक दिन गाय चराते हुए वे यात्रा करते हुए जयपुर के बनाड़, दूदू के पालू गांव होते हुए रींगस पहुंचे. वहां उन्होंने तालाब के किनारे रात्रि विश्राम के लिए मूर्ति को जमीन पर रख दिया और जब सुबह उन्होंने मूर्ति को उठाने का प्रयास किया तो वह हिली तक नहीं, ऐसा लग रहा था जैसे मूर्ति वहीं स्थापित हो.

रिंगस से शुरु की थी प्रायश्चित की यात्रा

 इसके बाद आकाशवाणी हुई जिसमें कहा गया कि मैंने एक ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित करने के लिए इसी स्थान से पृथ्वी पर अपनी यात्रा प्रारंभ की थी, अब मैं यहीं निवास करूंगा. इसके बाद उस मूर्ति को पूरे विधि-विधान के साथ उस स्थान पर स्थापित कर दिया गया. और उसे भैरू बाबा के रुप में पूजा जाने लगा. और आज यह मंदिर भैरू बाबा रींगस के नाम से प्रदेशभर में जाना जाता है.

क्यों लगा था भैरु बाबा पर ब्रह्म हत्या का श्राप

मंदिर समिति के पदाधिकारियों के अनुसार, भैरू बाबा भगवान शिव के पांचवें रुद्र के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे. एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव की निंदा करने के लिए ब्रह्मा जी के पांचवें मुख से भैरव रुद्र अवतार के रूप में उत्पन्न हुए थे. और उन्होंने अपने नाखूनों से ब्रह्मा जी का पांचवां मुख काटकर धड़ से अलग कर दिया था. इसके कारण उन्हें ब्रह्महत्या का श्राप मिला. इस मोक्ष के लिए उन्होंने तीनों लोकों की यात्रा की, जिसकी शुरुआत पृथ्वी पर रिंगस से हुई. 

शमशान की भस्म से मूर्ति ने लिया विशाल रूप

मंदिर के पुजारी परिवार के अनुसार, भैरव बाबा का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन हुआ था. मंदिर के चारों ओर श्मशान घाट है. जैसे-जैसे हवा में उड़ती हुई राख मूर्ति पर जमती गई, समय के साथ उसका आकार बढ़ता गया. आज मंदिर चारदीवारी से घिरा हुआ है, लेकिन बाबा की मूर्ति की दिव्य चमक अभी भी बरकरार है.

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1669 ईस्वी में बनी सती माता की छतरी

मंदिर के सामने सती माता की ऐतिहासिक छतरी है, जिसका निर्माण 1669 ईस्वी में हुआ था. मंदिर का निर्माण उससे करीब 200 वर्ष पहले का माना जाता है. 2013 में हुए जीर्णोद्धार के दौरान छतरी की मरम्मत की गई, जिससे पुरानी शिलापट्टिका भीतर दब गई.

 भैरवाष्टमी पर होंगे भव्य समारोह 

 आज यानी 12 नवंबर को भैरव अष्टमी के दिन दिनभर धार्मिक कार्यक्रमों की मंदिर परिसर में धूम रहेगी. पुजारी हरीश गुर्जर और शंकरलाल गुर्जर ने बताया कि सुबह 31 किलो दूध से अभिषेक और कोलकाता के फूलों से विशेष सजावट की गई.  संध्या के समय आतिशबाज़ी के बीच 101 किलो मावे का केक काटकर भैरू बाबा का जन्मदिन मनाया जाएगा. साथ ही भैरू बाबा की पवित्र जोहड़ी की महाआरती की जाएगी. इसके अलावा युवा विकास मंचके जरिए मंदिर परिसर में 7100 दीपक जलाकर भव्य दीपोत्सव मनाया जाएगा.

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