खाटूश्यामजी में छोटे बच्चों की चोटी काटकर बाबा को चढ़ाने की परंपरा, जानें क्या है धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

बाबा श्याम के प्रति गहरी आस्था रखने वाले भक्त इन सभी परंपराओं को पूरे दिल से निभाते हैं, क्योंकि उनके लिए यह सिर्फ एक रिवाज नहीं, बल्कि उनके और उनके परिवार के प्रति भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका है.

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खाटूश्यामजी: बच्चों के 'जात जड़ूले' की परंपरा, जानें क्या है धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

Rajasthan News: राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटूश्यामजी का दो दिवसीय मासिक मेला हाल ही में संपन्न हुआ. जलझूलनी एकादशी पर लगे इस मेले में देश भर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु बाबा श्याम के दर्शन के लिए पहुंचे. इस दौरान बाबा को खीर-चूरमा का भोग लगाया गया और कई भक्तों ने अपने छोटे बच्चों का मुंडन संस्कार भी कराया, जिसे स्थानीय भाषा में 'जात जड़ूला' या 'जात देना' कहते हैं.

मुंडन संस्कार हिंदू धर्म और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह किसी भी बच्चे के जीवन का पहला संस्कार माना जाता है. यह सिर्फ एक धार्मिक परंपरा ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं, जिन्हें आज के दौर में भी प्रासंगिक माना जाता है.

क्या है जात जड़ूला?

जात जड़ूला, जिसे आमतौर पर मुंडन संस्कार कहा जाता है, वह परंपरा है जिसमें बच्चे के जन्म के बाद उसके सिर के बाल पहली बार उतारे जाते हैं. राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में, यह मुंडन संस्कार कुल देवता या इष्ट देव के मंदिर में ही किया जाता है. खाटूश्यामजी में भी बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों का मुंडन कराने आते हैं, क्योंकि बाबा श्याम उनके कुलदेवता माने जाते हैं.

धार्मिक मान्यताएं

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बच्चों के जन्म के साथ आने वाले बाल पिछले जन्म के कर्मों और पापों से जुड़े होते हैं. मुंडन संस्कार से इन बालों को हटाकर बच्चे को नए और शुद्ध जीवन की शुरुआत कराई जाती है. यह भी माना जाता है कि मुंडन से बच्चे पर आने वाली सभी बलाएं और परेशानियां दूर हो जाती हैं, और भगवान उस बच्चे की रक्षा करते हैं. इन बालों को भगवान को अर्पित किया जाता है, जो एक तरह से समर्पण का प्रतीक है.

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वैज्ञानिक कारण भी हैं खास

धार्मिक आस्था के अलावा, वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने भी मुंडन संस्कार के कुछ फायदे बताए हैं. अजमेर के प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ, डॉ. एच.एस. धायल के अनुसार, जन्म के समय बच्चों के सिर की हड्डियां पूरी तरह से जुड़ी हुई नहीं होती हैं. वे बताती हैं कि 3 से 5 साल की उम्र तक सिर की हड्डियां एक-दूसरे से जुड़कर मजबूत होती हैं. डॉ. धायल का कहना है कि जब तक बच्चे के सिर की हड्डियां मजबूत न हो जाएं, तब तक जन्म से आए बाल सिर की सुरक्षा करते हैं. यही कारण है कि भारतीय परंपरा में मुंडन संस्कार आमतौर पर बच्चे की विषम वर्ष की आयु में किया जाता है, जैसे कि तीसरे, पांचवें या सातवें साल में. इस समय तक बच्चे का सिर मजबूत हो चुका होता है और मुंडन से कोई नुकसान नहीं होता. हालांकि, कुछ परिवारों में यह परंपरा जन्म के पहले साल में भी की जाती है.

दूल्हा-दुल्हन की पहली धोक भी खाटूश्यामजी में

जात जड़ूले की तरह ही, शादी के बाद दूल्हा और दुल्हन भी अपनी पहली धोक (जिसे राजस्थान में 'जात' देना कहते हैं) अपने कुल देवता के मंदिर में ही लगाते हैं. इस परंपरा के तहत, नवविवाहित जोड़े अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करने से पहले भगवान से आशीर्वाद लेते हैं. माना जाता है कि इससे उनका जीवन सुखमय और समृद्ध होता है.

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श्रद्धा या अंधविश्वास?

कुछ लोग इन परंपराओं को अंधविश्वास मान सकते हैं, लेकिन यह समझना जरूरी है कि भारतीय संस्कृति में कई प्रथाओं के पीछे धार्मिक आस्था के साथ-साथ वैज्ञानिक और सामाजिक कारण भी होते हैं. मुंडन संस्कार से बच्चों के सिर की सफाई बेहतर होती है और गर्मी से भी राहत मिलती है. बाबा श्याम के प्रति गहरी आस्था रखने वाले भक्त इन सभी परंपराओं को पूरे दिल से निभाते हैं, क्योंकि उनके लिए यह सिर्फ एक रिवाज नहीं, बल्कि उनके और उनके परिवार के प्रति भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका है.

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