नेत्रहीन पति-पत्नी की कहानी सुन रह जाएंगे हैरान, अंधा शिकारी के नाम से मशहूर; मछली पकड़ने में हैं माहिर

Kota Blind Couple: नेत्रहीन होने के बाद भी चतुर्भुज की खास बात यह है कि वह मछली पकड़ने में भी माहिर हैं. साथ ही वह खेतों में रातभर रखवाली करते हैं.

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नेत्रहीन दंपति की तस्वीर

Rajasthan Blind Husband Wife: आंखों के बिना जिंदगी कितनी अंधेरी हो सकती है, इसका अहसास वे ही कर सकते हैं, जिन्होंने इस अंधकार को करीब से जिया है. लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपनी कमियों को अपनी ताकत बना लेते हैं और दूसरों के लिए मिसाल कायम कर देते हैं. कोटा के मंडाना के पास राणक्या खेड़ी गांव में रहने वाले नेत्रहीन दंपति चतुर्भुज और मनभर बाई की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

अंधियारे से लड़कर बनाई नई राह

चतुर्भुज ने महज 15 साल की उम्र में एक बीमारी के कारण अपनी आंखों की रोशनी खो दी. उनकी पत्नी मनभर बाई भी नेत्रहीन हैं. इसके बाद भी इस दंपति ने कभी अपनी कमजोरी को जिंदगी पर हावी नहीं होने दिया. दोनों ने मिलकर संघर्षों का सामना किया और आज भी पूरी मेहनत से अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं.

खेतों की रखवाली और मजदूरी से चल रहा परिवार  

चतुर्भुज नेत्रहीन होने के बावजूद खेतों की रखवाली का काम करते हैं. ग्रामीणों के अनुसार, चतुर्भुज को गांव की गलियों और खेतों की पहचान इस कदर है कि देखने वाले भी हैरान रह जाते हैं. वहीं मनभर बाई मजदूरी कर परिवार की आर्थिक स्थिति में योगदान देती हैं.  

मछली पकड़ना है इनकी कला  

चतुर्भुज की खास बात यह है कि वह मछली पकड़ने में भी माहिर हैं. उनके हुनर और साहस की चर्चा पूरे गांव में होती है. अंधेरे में भी उनका आत्मविश्वास इतना मजबूत है कि वे खेतों में रातभर रखवाली करते हैं. गांव के लोग उन्हें "अंधा शिकारी" और "अंधा सुरक्षाकर्मी" कहकर पुकारते हैं.   

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इतनी मुसीबतों के बावजूद इस दंपति ने कभी अपनी परिस्थितियों को अपने सपनों पर हावी नहीं होने दिया. चतुर्भुज और मनभर बाई ने साबित किया है कि असली रोशनी आंखों में नहीं, बल्कि इंसान के हौसले में होती है. उनका संघर्ष और स्वाभिमान, आज गांव ही नहीं, पूरे इलाके में मिसाल बन गया है.  

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