कोटा के सिर नया कलंक, कोचिंग छात्रों को शिकार बना रहा ड्रग्स माफिया; NDTV स्टिंग में सामने आया सच

कोटा पुलिस ने हाल ही में ड्रग्स कारोबारियों के ख़िलाफ़ एक बड़ी कार्रवाई कर ऑपरेशन वज्र प्रहार चलाकर अलग-अलग स्थानों से 124 लोगों को गिरफ्तार किया है.

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Kota Coaching: राजस्थान का कोटा शहर शिक्षा नगरी के तौर पर अपनी अलग पहचान बना चुका है. लेकिन पिछले कुछ समय से कोटा को लगातार अपनी इस पहचान को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. कोटा की छवि पर पहले से ही छात्रों के आत्महत्या करने की घटनाओं से असर पड़ा है. इसे लेकर काफी चर्चा हुई और प्रयास किए गए लेकिन छात्रों की खुदकुशी का सिलसिला रुका नहीं है. इसके बाद इस साल कोटा से यह भी खबर आ रही है कि वहां छात्रों की संख्या लगातार घटती जा रही है और कोचिंग संस्थान और इसपर निर्भर लोगों में चिंता है. अब इसी बीच कोटा से एक और चिंताजनक ख़बर आई है कि वहां ड्रग्स माफिया सक्रिय है.

कोटा पुलिस ने हाल ही में ड्रग्स कारोबारियों के ख़िलाफ़ एक बड़ी कार्रवाई की है. पुलिस ने कोटा में अलग-अलग स्थानों से 124 लोगों को गिरफ्तार किया है. ये अपराधी कोटा में ड्रग्स, स्मैक, चरस, गांजा बेचते थे. कोटा में पढ़ने वाले बच्चे भी इनके आसान शिकार होते थे. बीते कुछ समय में ड्रग्स का धंधा करने वाले अपराधियों ने कोटा में खूब पांव पसारे थे. कोटा की पुलिस अधीक्षक अमृता दुहान ने बताया कि ऑपरेशन वज्र प्रहार के तहत विभिन्न थानों नें पुलिस ने कार्रवाई की.

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एसपी अमृता दुहान ने कहा, "हमने इस अभियान के तहत सुबह-सुबह ऐसी जगहों पर कार्रवाई की जहां से कोचिंग छात्रों को मादक पदार्थों की सप्लाई होती थी. हमने पहले भी ऐसी कार्रवाई की है और आगे भी करते रहेंगे."

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कोटा के छात्रों को कैसे लग रही नशे की लत

दरअसल घर से दूर रह कर बेहतर रिजल्ट के दबाव में रहने वाले बच्चे आसानी से इस रैकेट का शिकार हो जाते हैं. इस रैकेट का शिकार बने सूरज नाम के एक छात्र ने एनडीटीवी से अपनी आपबीती साझा की. सूरज ने बताया कि कोटा आने के कुछ महीने बाद ही वह ड्रग्स लेने लगे. सूरज ने बताया कि उनके होस्टल में कई सीनियर ड्रग्स लेते थे और उनसे दोस्ती के बाद वह  भी नशे की गिरफ्त में फंस गए.

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"मुझे मेरे दोस्तों ने कहा कि एक बार लेकर देखो. मैंने लिया और धीरे-धीरे मैं इसका आदी होने लगा, या ऐसा कहें कि उन्होंने मुझे बना दिया. ये लोग किसी के दोस्त नहीं हैं, ये रैकेट चलाते हैं."

सूरज ने कहा,"मुझे मेरे दोस्तों ने कहा कि एक बार लेकर देखो. मैंने लिया और धीरे-धीरे मैं इसका आदी होने लगा, या ऐसा कहें कि उन्होंने मुझे बना दिया. ये लोग किसी के दोस्त नहीं हैं, ये रैकेट चलाते हैं. उनका धंधा ही है कि नए बच्चों को लाकर इस जाल में फंसाएं और उनसे पैसे लेकर नशा कर पाएं. पैसे नहीं मिलने पर वो कुछ भी कर सकते हैं.”

सूरज की तरह कोटा में बड़ी संख्या में बच्चे नशे का शिकार हैं. दरअसल घर से दूर अकेले रहने वाले बच्चों पर मां-बाप की उम्मीदों का बोझ और कामयाबी का दबाव होता है जिससे वो अक्सर टूट जाते हैं. सिर्फ इस साल अब तक 14 बच्चों ने आत्महत्या कर ली. कुछ बच्चे कोटा से भाग गए. कई ड्रग्स के रैकेट की चपेट में आ गए.

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कितनी आसानी से मिलता है ड्रग्स

इन बच्चों को ड्रग्स कैसे मिलता है, इसकी पड़ताल  के लिए हमने दो अलग-अलग पैडलर को फोन किया. इनमें एक थोड़ा चौकन्ना था और आसानी से तैयार नहीं हुआ. लेकिन दूसरा पैडलर हमें आसानी से 5000 रुपये में 20 पुड़िया ड्रग देने को तैयार हो गया. हमने इन ड्रग पैडलर की लिस्ट कोटा पुलिस को सौंप दी.

हालांकि कोटा में छात्रों के आत्महत्या करने से लेकर उनके नशे के चंगुल में फंसने की असल वजह छात्रों पर पड़ने वाला दबाव है. बच्चों पर से यह दबाव खत्म करने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने कई दिशानिर्देश दिए थे. खासकर 16 साल से कम उम्र के बच्चों को कोचिंग में एडमिशन न देने जैसे निर्देश प्रमुखता से लागू करने थे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. इसी तरह होस्टल में भी सुरक्षा को ध्यान में रखकर कई तरह की व्यवस्थाओं के निर्देश दिए गए थे, लेकिन प्रशासन वह भी सुनिश्चित नहीं करा पाया है.

ऐसी घटनाओं के कारण लोगों ने अब बच्चों को कोटा भेजना कम कर दिया है. कोटा में विद्यार्थियों की संख्या घटने से चिंतित होकर कोटा के स्थानीय लोगों ने अपने स्तर पर कुछ प्रयास किए हैं लेकिन वह भी अब तक नाकाफी रहे हैं.

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