Lok Sabha Election-2024:रविंद्र सिंह भाटी ने साल 2019 में ABVP से जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के छात्रसंघ अध्यक्ष पद के लिए टिकट मांगा. ABVP ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत भी गए. इसके बाद 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में रविंद्र सिंह भाटी को भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. रविंद्र सिंह भाटी अभी बाड़मेर जिले के शिव विधानसभा से निर्दलीय विधायक हैं.
रविंद्र सिंह भाटी 2019 में पहली बार छात्रसंघ का चुनाव लड़े
रविंद्र सिंह भाटी बाड़मेर के दूधोड़ गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता रविंद्र गांव के सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं. कोई परिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि से नहीं हैं. 2019 में छात्रसंघ का निर्दलीय चुनाव जीतने पर पहली बार सुर्खियों में आए. राजस्थान के विधानसभा चुनाव 2023 में शिव विधानसभा से भाजपा से टिकट मांगा. भाजपा ने भाटी को टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़े गए. शिव विधानसभा पर मुकाबला चतुष्कोणीय हो गया. भाटी ने भाजपा के उम्मीदवार की जमानत जब्त करा दी. कांग्रेस के बागी उमीदवार फतेह खां दूसरे और कांग्रेस के उमीदवार छह बार के विधायक अमीन खां तीसरे स्थान पर रहे. भाजपा के प्रत्याशी स्वरूप सिंह चौथे नंबर पर रहे.
चुनाव जीतने के बाद रविंद्र सिंह भाटी भाजपा से नजदीकी करना चाहा
रविंद्र सिंह भाटी चुनाव जीतने के बाद भाजपा से नजदीकी करना चाहा. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मिलकर कुछ काम बताए, लेकिन भाजपा के बुरी हार से भाजपा ने भाटी को बहुत अधिक तवज्जो नहीं दी. अब रविंद्र सिंह भाटी भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों की नींद उड़ा दी है.
भाजपा और कांग्रेस ने जाट उम्मीदवार उतारा
इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही जाट उम्मीदवार को उतारा है. उम्मीदवार उतारने से बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट की राजपूत लॉबी भाजपा और कांग्रस दोनों से नाराज चल रही है. चूंकि रविंद्र सिंह भाटी राजपूत समाज से आते हैं, इसका सीधा फायदा उन्हें मिलेगा. वहीं, दो मुख्य पार्टियों के उम्मीदवार जाट समाज से हैं, ऐसे में जाट मतों का ध्रुवीकरण हो सकता है. बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय सीट पर सबसे अधिक वोट मूल ओबीसी की 23 जातियों के है, जो कुल मतदाताओं के लगभग 28-29% है, इसमें से एक बड़ा धड़ा रविंद्र भाटी के पक्ष में जा सकता है, क्योंकि शिव विधानसभा चुनाव में भी मूल ओबीसी और राजपूत वोटों के आधार पर ही रविंद्र चुनाव जीते थे.
1991 में पहली बार जाट उम्मीदवार यहां से जीता
इस सीट पर 40 साल तक वृद्धिचंद जैन के अलावा केवल राजपूत प्रत्याशी तनसिंह, कल्याण सिंह कालवी आदि चुनाव जीते. 1991 में पहली बार इस सीट से रामनिवास मिर्धा जाट प्रत्याशी जीता. इसके बाद से सीट को लेकर जाट-राजपूत अक्सर आमने सामने रहे. भैरोंसिंह शेखावत और जसवंतसिंह जैसे कद्दावर राजपूत नेताओं को यहां के मतदाताओं ने हार का मुंह भी दिखाया. इस बार भाजपा की ओर से केद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी और कांग्रेस की ओर से रालोपा से आए उमेदाराम बेनीवाल प्रत्याशी है, दोनों जाट हैं और इनका मुकाबला राजपूत रविंद्र सिंह भाटी से है. जाति से ऊपर उठ कर युवा रविंद्र के पीछे लामबंद नजर आ रहे हैं. कांग्रेस और भाजपा की अंदरूनी राजनीति भी रविंद्र के लिए मददगार साबित होती दिख रही है.
कांग्रेस नेता अमीन खां हो चुके बागी
विधानसभा चुनाव में अपनी हार का कारण बने बागी फतेह खान की लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में वापसी से नाराज कांग्रेस के वयोवृद्ध कद्दावर नेता अमीन खां बागी हो गए हैं. वे रालोपा से आए कांग्रेसी उमीदवार उम्मेदाराम बेनीवाल की खुले तौर पर कारसेवा करने पर उतारू हैं. अमीन खां का मुस्लिम मतों पर होल्ड माना जाता है. भाजपा कंगना रनौत को भी प्रचार के लिए लेकर आई. जानकारों का कहना है कि इसका कोई विशेष फायदा नहीं होगा. कांग्रेस में यह चुनाव हरीश चौधरी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है, क्योंकि जाट, अनुसूचित जाति और मुसलमान वोटों के कॉबिनेशन से जीतती रही. कांग्रेस के वोटों में अमीन खां के बागी रवैये से बड़ा डेंट लगने की आशंका है.
चुनाव जीतने पर सबसे बड़ा फायदा क्या
रविंद्र सिंह भाटी का प्रभाव पश्चिमी राजस्थान तक सीमित है. बाड़मेर-जैसलमेर और बालोतरा के प्रवासियों से मिलने और वोट मांगने के लिए गुजरात, महाराष्ट्र, बेंगलुरु और हैदराबाद भी रविंद्र सिंह भाटी गए. सोशल मीडिया पर रविंद्र सिंह भाटी के वीडियो खूब वायरल हो रहे हैं, यहां से मिली जीत उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सियासी पहचान दिलाने में कारगर हो सकती है.
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