Rajasthan Politics: राजस्थान में कल पहले चरण का मतदान, दांव पर लगी दो केंद्रीय मंत्री समेत इन दिग्गजों की साख

Lok Sabha Elections 2024: राजस्थान में पहले चरण की 12 लोकसभा सीटों पर मुकाबला बेहद कड़ा है. भाजपा-कांग्रेस के नेताओं ने जीत के लिए पूरी ताकत झोंकी है. चुनाव प्रचार में हर संभव हथकंडे अपनाने की कोशिश की है. क्योंकि इन सीटों के नेता जानते हैं जीत से वंचित रहने पर आने वाले दिनों में सियासी करियर पर संकट मंडरा सकता है. राजनीतिक भविष्य दाँव पर लग सकता है.

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Rajasthan News: राजस्थान में लोकसभा चुनाव के पहले चरण की 12 सीटों के लिए कल होने वाले मतदान (Lok Sabha Election 2024 Phase 1 Voting) के लिए केंद्र के दो मंत्रियों सहित कई दिग्गज नेताओं की साख दांव पर लगी हुई है. खासतौर पर बीकानेर, अलवर, दौसा, नागौर, चूरू और जयपुर सीट पर केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के कई बड़े नेता चुनावी मैदान में हैं.  

बीकानेर में अर्जुन राम मेघवाल

राजस्थान की हॉट सीटों में से एक बीकानेर सीट से केंद्र सरकार में कानून मंत्री मंत्री अर्जुन राम मेघवाल चुनाव लड़ रहे हैं. एससी सीट बीकानेर से उनके सामने कांग्रेस ने गहलोत सरकार में केबिनेट मंत्री रहे गोविंद राम मेघवाल को चुनावी मैदान में उतारा है. तीसरी बार सांसद का चुनाव लड़ रहे अर्जुन राम मेघवाल मोदी मैजिक के सहारे नैया पार होने की उम्मीद कर रहें है. जबकि गोविंद राम मेघवाल ने बेरोजगारी-महंगाई जैसे मुद्दों के सहारे चुनाव को दिलचस्प बनाने की पूरी कोशिश की है. लोकसभा के लिहाज से बीकानेर सीट भाजपा के लिए अनुकूल मानी जाती है, लेकिन इसके बाद भी तीसरी बार चुनावी मैदान में उतरे पूर्व आईएएस अधिकारी अर्जुन लाल मेघवाल का फैटिक फेक्टर बड़ी परेशानी बना हुआ है.

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अलवर से भूपेंद्र यादव मैदान में

राजस्थान की चर्चित सीटों में अलवर सीट की भी खूब चर्चा हो रही है. मोदी के करीबी रहे राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र यादव पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस ने उनके सामने लोकल युवा नेता ललित यादव को टिकट दिया है. यादव बहुल सीट पर यहां मुकाबला रोचक हो गया है. अमित शाह ने भूपेन्द्र यादव की जीत के लिए पूरी ताकत लगाई है.

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चूरू से राहुल कस्वां पर दांव

इसके अलावा चूरू लोकसभा सीट पर भाजपा की ओर से पैराओल्मियन देवेंद्र झाझडिया चुनाव लड़ रहें है. लेकिन उनका मुकाबला भाजपा के दो बार सांसद रहे और इस बार कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे राहुल कस्वां से है. खास बात ये है कि तारानगर सीट से विधायक का चुनाव हारने के बाद भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ का सियासी भविष्य इस सीट के चुनाव परिणाम पर निर्भर करेगा. देवेंद्र झाझडिया की टिकट की पैरवी करने वाले राठौड़ अगर ये सीट हारते हैं तो उनके राजनीतिक करियर पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं. इस सीट पर मुकाबला इतना कड़ा है कि पीएम मोदी सभा कर वोट की अपील करनी पड़ी है.

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ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल

इन सीटों के अलावा चर्चा जाट लैंड की सबसे प्रमुख सीट कही जाने वाली नागौर के चुनाव की चर्चा भी दिल्ली तक है. इंडिया गठबंधन में आरएलपी के हनुमान बैनीवाल और कभी कांग्रेसी रहे मिर्धा परिवार की तीसरी पीढ़ी की नेता ज्योति मिर्धा भाजपा की टिकट से चुनाव लड़ रही है. दोनों नेता 2019 के चुनाव में भी आपने सामने थे लेकिन तब ज्योति कांग्रेस से और हनुमान का एनडीए गठबंधन का हिस्सा थे. हनुमान ने वो चुनाव जीता था. इस सीट पर जातिगत समीकरण सबसे अधिक हावी हैं। इस सीट का परिणाम हनुमान बैनीवाल और ज्योति मिर्धा का सियासी भविष्य तय करेगा.

किरोड़ी लाल की प्रतिष्ठा दांव पर

पूर्वी राजस्थान की दौसा ऐसी सीट है जहां भाजपा के उम्मीदवार कन्हैया लाल मीणा से कहीं अधिक राजस्थान सरकार के मंत्री किरोड़ी लाल मीणा की प्रतिष्ठा दांव पर है. इस सीट पर चार बार के विधायक भाजपा के कन्हैया लाल का मुक़ाबला कांग्रेस के पूर्व मंत्री रहे मुरारीलाल मीणा से हैं. मीणा वर्तमान में विधायक भी हैं. किरोड़ी लाल मीणा अपने चुनाव प्रचार के दौरान चुनाव नहीं जीतने पर मंत्री पद तक छोड़ने की बात कह चुके हैं. इसी तरह से झुंझुनूं सीट से ओला परिवार की साख भी जुड़ी हुई है. इस सीट से वर्तमान में कांग्रेस के विधायक बृजेन्द्र ओला चुनावी मैदान में हैं, जबकि भाजपा ने विधायक का चुनाव हार चुके शुभकरण चौधरी पर दांव खेला है. झुंझुनू सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है.

दांव पर लगा है राजनीतिक भविष्य

इसके अलावा राजधानी जयपुर का चुनाव भी पहले चरण में है. भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले जयपुर में मुकाबला गहलोत सरकार में मंत्री रहे प्रताप सिंह और भाजपा की मंजु शर्मा के बीच है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस सीट पर टिकट बदला है. मंजु शर्मा मोदी के नाम के सहारे वोट मांगे हैं तो प्रताप सिंह अपना राजनीतिक वजूद बचाने की लड़ाई लड़ते हुए दिखाई दिये हैं. इस सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पहले चरण की इन सीटों पर मुक़ाबला बेहद कड़ा है. भाजपा कांग्रेस के नेताओं ने जीत के लिए पूरी ताकत झोंकी है. चुनाव प्रचार में हर संभव हथकंडे अपनाने की कोशिश की है. क्योंकि इन सीटों के नेता जानते हैं जीत से वंचित रहने पर आने वाले दिनों में सियासी करियर पर संकट मंडरा सकता है. राजनीतिक भविष्य दाँव पर लग सकता है.