Rajasthan Politics: राजस्थान में हावी हुए स्थानीय मुद्दे, वसुंधरा की दूरी भी बनी फैक्टर? यहां समझें कम वोटिंग के सियासी मायने

Lok Sabha Elections 2024: राजस्थान में पहले चरण की 12 सीटों पर करीब 57.87% वोटिंग हुई, जो 2019 के मुकाबले 63.72% वोटिंग से करीब 6% कम है. इससे दोनों ही पार्टियों के नेता कम वोटिंग प्रतिशत से बेहद चिंतित हैं.

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राजस्थान में 2019 के मुकाबले 2024 के आम चुनाव में 6 प्रतिशत कम वोटिंग हुई है.

Rajasthan Lok Sabha Phase 1 Election: देश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के आंकड़े देखकर केवल यही लग रहा है कि ये उत्साह विहीन चुनाव है. ना कोई लहर, ना ही बदलाव के लिए उम्मीद. माहौल केवल और केवल मोबाइल स्क्रीन तक ही सीमित है. सड़कों पर तो खामोशी है. 2014 में बदलाव की बात थी तो 2019 में मोदी में उम्मीद थी. लोग मोदी को और समय देना चाहते थे. लिहाजा मजबूत बहुमत दिया. मगर, इस बार लोगों को लगता है कि मोदी को हराना मुश्किल है. इसलिए बीजेपी के कार्यकर्ता भी ज्यादा मेहनत नहीं कर रहे.

2019 में पुलवामा अटैक से माहौल बदल गया था. लेकिन इस बार राम मंदिर का असर खत्म हो गया है. लोगों को लगता है मंदिर तो बन चुका है, अब आगे क्या? धारा 370 पुरानी बात हो गयी और  CAA को लेकर माहौल नहीं बन पाया. जो बदलाव चाहते हैं उन्हें रास्ता और चेहरा समझ नहीं आ रहा. राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन लोगों को उम्मीद और भरोसा नहीं दे पा रहा है. इसलिए शायद ऐसे लोग भी वोट डालने नहीं निकले. खासतौर पर मुस्लिम बहुल इलाकों में भी बंपर वोटिंग नहीं होना, परिणाम को लेकर कई बड़े संकेत दे रहा है. राजस्थान में पहले चरण की 12 सीटों पर करीब 57.87% वोटिंग हुई, जो 2019 के मुकाबले 63.72% वोटिंग से करीब 6% कम है.

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पहले चरण में राष्ट्रीय मुद्दे गौण रहे

बीजेपी की सेफ मानी जाने वाली जयपुर शहर में सांगानेर, मालवीय नगर जैसे इलाकों में मतदान का कम होना चिंता का विषय है. फर्स्ट टाइम वोटर भी इस बार घरों से वोट करने नहीं निकल रहे हैं, जो बताता है कि युवा इस बार उदासीन है. राजस्थान पहले चरण में राष्ट्रीय मुद्दे गौण रहे हैं. अधिकांश सीटों पर व्यक्तियों और जातियों का चुनाव हुआ है. चूरू लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा कर माहौल को बदलने की कोशिश की, लेकिन यहां चुनावी मुद्दा केवल राहुल कस्वां वर्सेस राजेंद्र राठौड़ की सियासी जंग ही बना रहा. इसी तरीके से नागौर में जिसे 'जाटलैंड' कहा जाता है, यहां चुनाव कांग्रेस-भाजपा के बीच नहीं, बल्कि 2 कद्दावर जाट नेताओं- ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल की व्यक्तिगत सियासी जंग में तब्दील हो गया. वहीं गंगानगर जैसी सीट, जिसकी बहुत अधिक चर्चा नहीं हुई, वहां वोटिंग प्रतिशत में इजाफा भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है. वहीं धौलपुर करौली का मतदाता खामोश क्यों है? इस बात की गुत्थी को भी समझने की कवायद की जा रही है.

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वसुंधरा राजे की दूरी बड़ा फैक्टर

पीएम मोदी, अमित शाह और राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा ने कोशिश की कि चुनाव प्रचार अभियान को गति दी जाए. लेकिन इसके बावजूद ये चुनाव प्रचार पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले फीका दिखाई दिया. वसुंधरा राजे की चुनाव प्रचार से दूरी भी भाजपा के लिए एक बड़ा फैक्टर दिखाई दी है. कांग्रेस तो इस मामले में काफी पीछे रही. राष्ट्रीय नेताओं ने राजस्थान से दूरी बनाए रखी. स्टार प्रचारक नहीं आए. राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी के केवल एक एक दौरे ही हुए. राजस्थान की अधिकांश सीटों पर ही पायलट गहलोत और PCC चीफ डोटासरा कांग्रेस की तरफ से मोर्चा संभाले हुए दिखाई दिए. 

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दोनों ही पार्टियों के नेता चिंतित

ये अलग बात है कि राजस्थान में कम वोटिंग से ऊपरी तौर पर दोनों ही दल अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. लेकिन ये भी सच है कि दोनों ही पार्टियों के नेता कम वोटिंग प्रतिशत से बेहद चिंतित हैं. छह फीसदी के आसपास घटे वोटिंग प्रतिशत में किसका वोटर अधिक है? किसे कितना नुकसान हुआ है? इस बात का पता लगाने की कोशिश की जा रही है. यानी पहला चरण देख कर लग रहा है कि ये चुनाव शायद ऐसा मैच हो गया जिसका परिणाम पहले से पता हो तो फिर आखिरी ओवर का रोमांच खत्म हो जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस बार चुनाव परिणाम तमाम सर्वे के अनुकूल रहने वाला है या फिर देश कोई चौंकाने वाला जनमत देने जा रहा है?

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