जिला अस्पताल की बड़ी लापरवाही, दो शवों की अदला-बदली... परिजनों ने कर दिया अंतिम संस्कार

हैरानी तब हुई जब अंतिम संस्कार होने के दो दिन बाद जीआरपी थाना पुलिस द्वारा परिजनों को सूचना दी गई कि उनके परिजन का पोस्टमार्टम करवाना है और वे अस्पताल पहुंचें. यह सुनते ही परिजन स्तब्ध रह गए.

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जीआरपी थाना प्रभारी

Rajasthan News: राजस्थान में जिला अस्पतालों की लापरवाही तो सामने आते ही रहती है. सरकार चाहे जितने भी सख्त निर्देश दे लेकिन अस्पताल के कामों में लगातार लापरवाही सामने आ ही जाती है. लेकिन अलवर जिला अस्पताल में सबसे बड़ी लापरवाही सामने आई है. जिससे अस्पताल प्रशासन की कार्यशैली पर सवालों के बड़े पहाड़ खड़े कर दिए हैं. यहां लापरवाही का ऐसा मामला उजागर हुआ है, जहां दो अलग-अलग थाना क्षेत्रों से लाए गए बुजुर्गों के शवों की अदला-बदली हो गई. इतना ही नहीं परिजनों को बदला हुआ शव भी थमा दिया गया.

बता दें उस शव का न केवल पोस्टमार्टम हुआ, बल्कि परिजनों ने उसका अंतिम संस्कार भी पूरा कर दिया.

पूरा घटनाक्रम उद्योग नगर थाना क्षेत्र से शुरू हुआ, जहां एक झोपड़ी से एक बुजुर्ग का शव मिला था और उसे जिला अस्पताल की मोर्चरी में रखवाया गया. इसी दौरान जीआरपी थाना क्षेत्र से एक ट्रेन के अंदर एक अन्य बुजुर्ग का शव मिला, जिसे भी मोर्चरी में लाकर रखा गया. पहचान के दौरान राजगढ़ थाना क्षेत्र के परिजन जिला अस्पताल पहुंचे और उन्होंने समझ लिया कि मिला हुआ शव उनका ही है. पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम करवाकर परिजनों को सौंप दिया, जिसके बाद मृतक का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया.

दो दिन बाद आया पोस्टमार्टम कराने की सूचना

हैरानी तब हुई जब अंतिम संस्कार होने के दो दिन बाद जीआरपी थाना पुलिस द्वारा परिजनों को सूचना दी गई कि उनके परिजन का पोस्टमार्टम करवाना है और वे अस्पताल पहुंचें. यह सुनते ही परिजन स्तब्ध रह गए. उन्हें समझ आ गया कि जिला अस्पताल ने उन्हें गलत शव थमा दिया था. सूचना मिलते ही परिजन हरिद्वार में चल रही अंतिम यात्रा की तैयारी छोड़कर तुरंत अलवर जिला अस्पताल पहुंचे. उद्योग नगर थाना प्रभारी भूपेंद्र सिंह ने बताया कि मृतक करीब 50–52 साल से अपने घर से बाहर रहकर काम करता था, इसलिए परिजन उसे स्पष्ट रूप से पहचान नहीं पाए. वहीं जीआरपी थाना प्रभारी अंजू महिंद्रा ने कहा कि हम नियमित प्रक्रिया के तहत 72 घंटे बाद पोस्टमार्टम करवाते हैं और परिजनों को सूचना भी दे दी गई थी.

परिजनों का आरोप है कि यह सीधी-सीधी अस्पताल प्रशासन की लापरवाही है. उन्होंने कहा कि अस्पताल को शव की उचित पहचान के बाद ही सौंपना चाहिए था, लेकिन जल्दबाजी और अनदेखी के कारण उन्हें गलत शव दे दिया गया. उनकी पीड़ा इस बात से और बढ़ गई कि उन्होंने जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया, उसमें गरीब परिवार का पैसा भी खर्च हो गया, अब वह नुकसान कौन भरेगा?

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फिलहाल परिजन जिला अस्पताल पहुंचकर अपने असली परिजन का शव लेने की प्रक्रिया में लगे हैं, जबकि पुलिस नए सिरे से पोस्टमार्टम करवाने में जुटी है. अस्पताल प्रशासन के लिए यह मामला गंभीर लापरवाही का द्योतक है, जिसका उत्तर पूरे जिले की जनता मांग रही है. प्रशासन अब क्या कदम उठाता है, यह आने वाला समय ही बताएगा.

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