Major Shaitan Singh: भारतीय सेना के इतिहास में 18 नवंबर का दिन स्वर्णाक्षरों में अंकित एक दिवस है. इस दिन 1962 में मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों ने लद्दाख की बर्फीली चोटी पर स्थित रेजांगला (Rezang La) चौकी पर अदम्य साहस का परिचय देते हुए चीन की लंबी-चौड़ी सेना से लड़ाई की थी. भारतीय जवानों ने तब चीन के 1300 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. भारत के भी 114 जवान शहीद हो गए थे. रेजांगला पोस्ट पर 18 नवंबर 1962 की हुई वह लड़ाई भारतीय सेना के साथ-साथ राजस्थान के इतिहास का भी एक गौरवपूर्ण अध्याय है. भारतीय सेना की जिस 123 कुमाऊँ रेजिमेंट ने चीनी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे, उस टुकड़ी की अगुआई राजस्थान की माटी के सपूत मेजर शैतान सिंह कर रहे थे. उस लड़ाई में अदम्य वीरता का परिचय देते हुए अपने प्राण न्योछावर करने वाले जोधपुर के बनासर गांव के सपूत मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत भारतीय सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र देकर सम्मानित किया गया था.
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने मेजर शैतान सिंह की वीरता को याद करते हुए सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि दी है और लिखा है - "1962 के भारत-चीन युद्ध में अदम्य शौर्य एवं अतुलनीय साहस का प्रदर्शन करने वाले राजस्थान के वीर सपूत, परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह जी के बलिदान दिवस पर उन्हें भावपूर्ण नमन. मातृभूमि की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व बलिदान कर देने वाले वीर सपूत की गौरव गाथा सदैव हम सभी को राष्ट्र आराधना हेतु प्रेरित करती रहेगी."
रेजांगला पर तैनात मेजर शैतान सिंह की टुकड़ी
मेजर शैतान सिंह कुमाऊँ रेजिमेंट के साथ थे जो अपनी वीरता के लिए विख्यात है. 1962 में भारत-चीन की लड़ाई के दौरान कुमाऊँ रेजिमेंट को लद्दाख के चुशुल सेक्टर को चीनी सेना के हमले से बचाने का दायित्व दिया गया था.
इसकी एक टुकड़ी की अगुआई मेजर शैतान सिंह कर रहे थे. यह टुकड़ी 5000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बर्फ़ीली चोटी रेज़ांग ला रेजांगला की रक्षा पर तैनात थी जो रणनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण जगह थी.
18 नवंबर की सुबह हुआ हमला
रेज़ांग ला पर कड़ाके की ठंड के बीच तड़के चीनी सेना ने हमला कर दिया और भारतीय सैनिक अपनी जगहों पर छिप कर मुस्तैद हो गए. सुबह 5 बजे जैसे ही थोड़ी रोशनी हुई, भारतीय सैनिकों ने जवाबी हमला बोल दिया. वो चट्टानों और लाशों को कवच बना कर हमले करते रहे. चीन की सेना बहुत बड़ी थी और मेजर शैतान सिंह की टुकड़ी में सिर्फ 120 जवान थे.
लेकिन इसके बाद भी भारतीय सेनिक डटे रहे. मेजर शैतान सिंह गोलियों की बौछार के बीच जगह-जगह जाकर अपने सैनिकों का नेतृत्व करते रहे. लेकिन उन्हें गोलियां लग गई थीं और उनका काफी खून बह चुका था. उनकी हालत देख उनके दो साथी उन्हें उठाकर सुरक्षित जगह ले जा रहे थे. लेकिन इसी बीच चीनी सैनिकों ने उन पर मशीन गन से हमला कर दिया. मेजर ने अपने साथियों से कहा वह उन्हें छोड़ कर चले जाएं. लेकिन सैनिकों ने उन्हें एक पत्थर के पीछे छिपा दिया. बाद में इसी जगह पर उनका पार्थिव शरीर मिला.
परमवीर चक्र
भारतीय सैनिकों के इस पराक्रम के आगे चीनी सेना को भी झुकना पड़ा और अंततः 21 नवंबर को उसने सीजफायर का ऐलान कर दिया. इस युद्ध लड़ते हुए 120 में से 114 सैनिक शहीद हो गए थे. इस मुश्किल लड़ाई में मेजर शैतान सिंह की वीरता को सम्मान देते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1963 में उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया था.
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