Maharana Pratap's Coronation: मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ का सोमवार, 25 नवंबर का पगड़ी दस्तूर कार्यक्रम होगा. इस शाही कार्यक्रम में देशभर से पूर्व राजघराने के सदस्य हिस्सा लेंगे. इस कार्यक्रम की चर्चा राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे देश में है. लेकिन जब मेवाड़ का जिक्र आता है तो वह महाराणा प्रताप के इतिहास के बिना अधूरा ही है. मुगल शासक अकबर के लिए महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को अधीन कर पाना सपने जैसा ही रहा. खास बात यह है कि महाराणा प्रताप का राजतिलक (Coronation) किसी शाही महल या दुर्ग में ना होकर, श्मशान में हुआ था. मध्यकालीन इतिहास में इसे अहम घटनाक्रम माना गया था.
जगमाल को प्रताप के पिता ने चुना था उत्तराधिकारी
इतिहासकार प्रो. शर्मा की किताब राष्ट्ररत्न महाराणा प्रताप के मुताबिक, 28 फरवरी 1572 ई. को महाराणा उदयसिंह का देहान्त हुआ. गोगुन्दा में बीमारी की अवस्था में निधन होने से पूर्व उदयसिंह ने रानी धीरकंवर के पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था. हालांकि इसकी सार्वजनिक रूप से घोषणा नहीं की गई थी, क्योंकि इस निर्णय की मुखालफत होने की आशंका थी. साथ ही राजवंशों में यह परम्परा भी रही है कि वरिष्ठ पुत्र या उत्तराधिकारी मृत शासक की दाह क्रिया में भाग नहीं लेता था. वह दाह क्रिया के बाद राज्य सिंहासन पर बैठता था, ताकि गद्दी खाली न रहे. जबकि प्रताप श्मशान में मौजूद थे और उदयसिंह के बेटे जगमाल राजमहल में ही थे. जगमाल की गैर-मौजूदगी की काफी व्यापक चर्चा रही.
प्रताप के मामा बोले- अकबर जैसा प्रबल शत्रु सिर पर, मेवाड़ उजड़ रहा है
महाराणा प्रताप पर सर्वप्रथम पीएचडी करने वाले इतिहासकार प्रो. चंद्रशेखर शर्मा के मुताबिक प्रताप के मामा मानसिंह सोनगरे मेवाड़ के उत्तराधिकारी के रूप में जगमाल को चुने जाने के पक्ष में नहीं थे. उन्होंने विरोध प्रकट किया.
प्रो. शर्मा के मुताबिक, चुण्डा के वंशज देवगढ़ के रावत सांगा ने सलूंबर के रावत कृष्णदास को कहा, "आप चुण्डा के पोते हैं, इसलिए उत्तराधिकार का निर्णय आपकी सहमति से होना चाहिए. अकबर जैसा प्रबल शत्रु सिर पर है. चित्तौड़ हाथ से निकल चुका है, मेवाड़ उजड़ रहा है, ऐसी स्थिति में यदि गृहकलह की अग्नि भड़क उठी तो फिर राज्य का सर्वनाश होना सुनिश्चित है."
फिर ऐसे हुआ प्रताप का राज्याभिषेक
दाह संस्कार के बाद सभी सामन्त और लोगों ने गोगुन्दा में श्मशान में स्थित महादेव बावड़ी की छतरी पर बैठाकर प्रताप को उदयसिंह का उत्तराधिकारी चुनते हुए तिलक कर दिया था. श्मशान में स्थित इसी महादेव बावड़ी को प्रताप की राजतिलक स्थली का सम्मान प्राप्त है. इस घटान के बाद सभी सामंतो ने महल में जाकर जगमाल को गद्दी से उतारकर प्रताप को बैठाया.
घटनाक्रम इतनी तीव्रता के साथ घटित हुआ कि उसका विरोध करने का साहस किसी में नहीं हुआ. यहां तक कि जगमाल भी विरोध नहीं कर सका. ग्वालियर के तत्कालीन राजा रामसिंह तंवर (रामशाह तोमर) ने जगमाल से कहा कि छोटे भाई होने के कारण आपकी बैठक राजगद्दी के सामने है. इतिहासकार प्रो. शर्मा की किताब राष्ट्ररत्न महाराणा प्रताप के मुताबिक इस ऐतिहासिक घटना को सामूहिक निर्णय की दृष्टि से भी अहम माना गया है. क्योंकि तब प्रजा की राय को समझते हुए मेवाड़ के हितैषी सामंतों ने प्रताप को अपना महाराणा चुना था. यह भी एक तरह का था जनमत था, जिसमें प्रजातंत्र की झलक नजर आई.
राजतिलक से नाराज जगमाल ने अकबर की अधीनता की थी स्वीकार
होली के त्यौहार के दिन 28 फरवरी 1572 ई. गुरुवार को गोगुन्दा में मेवाड़ की राजगद्दी पर महाराणा प्रताप को बैठाया गया. ठीक एक साल बाद प्रताप के कुम्भलगढ़ जाने पर वहां राज्याभिषेक का उत्सव मनाया गया. यह सामान्य समारोह नहीं था. महाराणा प्रताप के दरबार में मुख्य पंडित चक्रपाणि मिश्र के मुताबिक, प्रताप का यह राज्याभिषेक भव्य और रोचक था. इस पूरी घटना से नाराज जगमाल जहाजपुर की ओर चले गए, तब यह क्षेत्र मुगल शासन का हिस्सा था. वहां जाकर उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार कर दिया था.
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