Rajasthan News: राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथंभौर टाइगर रिजर्व (Ranthambhore Tiger Reserve) को बाघों की नर्सरी कहा जाता है, क्योंकि यहां बाघों के पर्यावास के लिए प्रचुर मात्रा में खाना, पानी और ग्रासलैंड है. रणथंभौर का जंगल भी बाघों के लिए मुफीद है, जिसके चलते यहां लगातार बाघों की संख्या बढ़ रही है, जो प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व को भी आबाद करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. इसी की बदौलत प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़कर 150 के पार पहुंच गई है. इनमें आधे से ज्यादा (80 बाघ) अकेले रणथंभौर में है.
शिफ्ट किए गए 24 टाइगर में से 13 की मौत
रणथंभौर की बदौलत ही प्रदेश का सरिस्का, जो कभी 'बाघ विहीन' हो चुका था, वो बाघों से आबाद हुआ. इसके साथ ही मुकुंदरा टाइगर हिल्स, रामगढ़ विषधारी, करौली-धौलपुर-कैलादेवी सेंचुरी भी बाघों की आबादी बड़ी है. रणथंभौर से अब तक प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व में 24 बाघ-बाघिन और शावकों की शिफ्टिंग की जा चुकी है. हालांकि वन विभाग की कमजोर मॉनिटरिंग और लापरवाही के चलते रणथंभौर से शिफ्ट किए गए 24 टाइगर में से 13 की अब तक मौत हो चुकी है, जो चिंता का विषय है.
अब तक सरिस्का भेजे गए 11 बाघ, 5 की मौत
रणथंभौर से प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व में बाघों की शिफ्टिंग का काम साल 2008 में उस वक्त शुरू हुआ जब अलवर का सरिस्का टाइगर रिजर्व पूरी तरह से 'बाघ विहीन' हो गया. तब रणथंभौर से दारा नामक एक बाघ को 2008 में पहली बार सरिस्का शिफ्ट किया गया. उसके बाद साल 2009 में रणथंभौर से एक साथ 5 बाघों को सरिस्का शिफ्ट किया गया. वहीं साल 2010 में रणथंभौर से 2 बाघों को सरिस्का भेजा गया. रणथंभौर से अब तक 11 बाघ सरिस्का भेजे जा चुके हैं. इनमें बाघ T1, T7, T12, T18, T44, T51, T52, T75 और T113 सहित अन्य टाइगर शामिल है. लेकिन सरकार की रणथंभौर से टाइगर शिफ्टिंग की योजना को उस वक्त बड़ा आघात लगा, जब सरिस्का भेजे गए 11 में से 5 बाघों की मौत हो गई. हालांकि इनमें से कुछ बाघों की मौत प्राकृतिक थी.
मुकुंदरा भेजे गए 5 टाइगर, ज्यादातर मर गए या गायब हो गए
रणथंभौर से अब तक 5 टाइगर कोटा के मुकुंदरा टाइगर हिल्स भेजे जा चुके हैं. अप्रैल 2018 में बाघ T91 को पहली बार मुकुंदरा भेजा गया. इसके बाद दिसंबर 2018 में ही बाघिन T106 को मुकुंदरा भेजा गया. उसके बाद बाघ T98 व बाघिन T2301 को मुकुंदरा शिफ्ट किया गया. आखिरी शिफ्टिंग 19 जून 2025 को रणथंभौर टाइगर रिजर्व में दहशत का पर्याय बन चुकी बाघिन RBT2507 कनकटी की हुई. लेकिन चिंताजनक बात यह है कि रणथंभौर से मुकुंदरा भेजे गए 5 टाइगर में से ज्यादातर टाइगर या तो मर गए या फिर गायब हो गए. मुकुंदरा में रणथंभौर से भेजे गए बाघ-बाघिनों की अकाल मौत ने वन विभाग की मॉनिटरिंग की खामियों की पोल खोलकर रख दी.
सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क भेजे गए 2 टाइगर, दोनों की मौत
रणथंभौर से उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में भी अब तक 2 बाघ भेजे जा चुके हैं, लेकिन उन दोनों बाघों की भी मौत हो चुकी है. रणथंभौर के सबसे खूंखार बाघ T24 उस्ताद की मौत उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में हुई. वहीं शिफ्टिंग के महज 24 घंटे बाद ही T104 की भी मौत बायोलॉजिकल पार्क में ही हो गई.
रामगढ़ विषधारी भेजे गए 3 में से 2 टाइगर की मौत
रणथंभौर से बूंदी के रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में अब तक 3 टाइगर भेजे गए हैं. सबसे पहले T112 व T119 को भेजा गया था. वहीं, हाल ही में T2508 को रामगढ़ भेजा गया है. रणथंभौर से रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व भेजे गए बाघों में से वहां भी दो की मौत हो गई.
हाल ही में रणथंभौर से एक नर शावक RBT2509 को कैलादेवी अभ्यारण शिफ्ट किया गया है.
बाघों के पर्यवास के लिए ग्रासलैंड डेवलप करने की जरूरत
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार और वन विभाग को अब रणथंभौर की तर्ज पर ही प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व में भी बाघों के पर्यवास के लिए ग्रासलैंड डेवलप करने के साथ ही उनके भोजन व पानी की व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए, ताकि बाघों को अच्छा पर्यवास मिल सके. साथ ही मुकुंदरा, रामगढ़, कैलादेवी सहित अन्य टाइगर रिजर्व में बसे गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया में तेजी लानी चाहिए, जिससे ना केवल मानव बाघ संघर्ष कम होगा, बल्कि बाघों को रहने के लिए अच्छा और पूरा आवास मिल सकेगा.
कॉरिडोर बनाने की ओर ध्यान दे सरकार
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार को रणथंभौर से जुड़े अन्य टाइगर रिजर्व को जोड़ने वाले कॉरिडोर पर भी ध्यान देने की जरूरत है. इन कॉरिडोर को डेवलप करने से बाघों का विचरण क्षेत्र बढ़ेगा और वे अपने आप रणथंभौर से मुकुंदरा, रामगढ़ और धौलपुर कैलादेवी करौली जा सकेंगे.
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