Rajasthan: दिल्ली से शुरू पदयात्रा 550 KM दूरी तय कर जोधपुरिया पहुंची, रास्ते में हर गांव से जुड़ते हैं लोग; जानें इसकी खासियत

Rajasthan: भगवान देवनारायण के लीलाधर घोड़े की जयंती पर तीन दिवसीय मेले की शुरुआत शनिवार (7 सितंबर) से हो गई. मुख्य मेला रविवार (8 सितंबर) को है. हजारों पचरंगी ध्वज चढ़ाए जाएंगे. 

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Rajasthan: दिल्ली के लाल किले से निकली पचरंगी ध्वज पदयात्रा रविवार (8 सितंबर) को देवधाम जोधपुरिया पहुंची. ये यात्र बहुत ही अनूठी है. यह दिल्ली से झंडा निकलता है और देवधाम जोधपुरिया पहुंचते-पहुंचते डेढ़ हजार से अधिक झंडे हो जाते हैं. दिल्ली से 550 किलोमीटर की यात्रा तय करते हैं. 22 अगस्त को लाल किले के भैरवनाथ मंदिर से पदयात्रा की शुरुआत हुई थी. रास्ते कई जिलों, कस्बों और गांवों से होकर पदयात्रा गुजरी. शनिवार (7 सितंबर) को टोंक जिले के निवाई में पहुंची. परंपरा ऐसी है कि पदयात्रा के रास्ते में जितनी भी पंचायतें आती हैं, प्रत्येक से भगवान देवनारायण के मंदिर का एक झंडा और दर्जनों पदयात्री साथ में जुड़ रहते हैं.

लाखों की संख्या में पदयात्री हो जाते हैं 

जोधपुरिया आते-आते लाखों की संख्या में पदयात्री हो जाते हैं. हजारों की संख्या में झंडे हो जाते हैं. देवनारायण जोधपुरिया धाम गुर्जर समाज की आस्था के प्रमुख केंद्र है. सोमवार को भगवान देवनारायण के घोड़े लीलाधर की 1113वीं जयंती पर भादवे की छठ पर भरने वाले लक्खी मेले में हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ेगी. टोंक जिले के मासी बांध के तट पर जोधपुरिया देवनारायण मंदिर है, यहां घी के भंडार टैंकों में भरे हैं. वहां जलती अखंड ज्योति और यहां के घी को नेत्र ज्योति देने वाला बताया जाता है. 

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भगवान देवनारायण के लीलाधर घोड़े की जयंती पर तीन दिवसीय मेले की शुरुआत शनिवार से हो गई.

साल में दो लक्खी मेलों का होता है आयोजन

देश के हर कोने से निकली पद यात्राएं जोधपुरिया पंहुचती हैं. भोपा जी नृत्य करते हुए कांसे की थाली पर कमल का फूल बनाते हैं, जो आकर्षक का केंद्र है. तीन दिवसीय मेले का समापन सोमवार (9 सितंबर) को होगा. मंदिर में रोज तीन बार आरती होती है. सुबह 4 बजे फिर सुबह 11 बजे और शाम 7 बजे आरती होती है. 

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मंदिर में भरे हैं घी के भंडार तो बढ़ती है नेत्र ज्योति  

अखंड ज्योति के लिए घी के भंडार भरे हैं. भक्तों की मान्यता है कि भंडार के घी को आंखों में लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है. भगवान देवनारायण जी मंदिर के पुजारी, जिन्हें स्थानीय भाषा में भोपा जी कहा जाता है. वो नृत्य करते हुए एक थाली पर भगवान देवनारायण जी के जन्म और उनकी  बहादुरी की कहानी सुनाते हुए कांसे की थाली पर कमल का फूल बनाते हैं. फूल बनते ही भगवान देवनारायण के जयकारों से मंदिर गूंज उठता है. दोनों मेले भाद्र सप्तमी शुक्ल पक्ष (अगस्त-सितंबर के महीने में) और माघ सप्तमी कृष्ण पक्ष (जनवरी-फरवरी के महीने में) प्रतिवर्ष भरते हैं. 

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