Dholpur News: आज (7 सितंबर) से पितृपक्ष की शुरुआत के साथ ही धौलपुर के ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड समेत कई नदियों पर पितरों को तर्पण किया गया. आचार्य बृजेश शास्त्री ने बताया पितृ पक्ष के पहले दिन चंद्र ग्रहण भी लग रहा है, लेकिन ग्रहण का पितृ पक्ष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. उन्होंने बताया कि सुबह 11:57 बजे से ग्रहण शुरू होगा, उससे पहले पितरों को तर्पण कर सकते हैं और ब्राह्मणों को भोजन भी करा सकते हैं. श्राद्ध पक्ष का समापन 21 सितम्बर को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के साथ होगा. सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है. उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यता के मुताबिक पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान जैसे कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति प्राप्त होती ही है, साथ ही कर्ता को भी पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है.
रोहिणी मुहूर्त श्राद्ध कर्म के लिए होते हैं शुभ
आचार्य के मुताबिक, "विद्वान बताते हैं कि श्राद्ध या तर्पण करने से अनुरूप फल प्राप्त होते हैं. इसके अलावा रोहिणी मुहूर्त श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ माना जाता है. श्राद्ध करने के लिए मंत्रों का उच्चारण करें और पूजा के बाद जल से तर्पण करें. इसके बाद गाय, कुत्ते और कौवे के लिए भोजन निकालें. इन जीवों को भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण जरूर करें."
पितरों के आशीर्वाद से बना रहता है वैभव
बृजेश शास्त्री ने बताया सनातन धर्म में पितृपक्ष को कनागत भी कहा जाता है. राजा कर्ण ने कनागत की शुरुआत की थी. द्वापर युग से पितृपक्ष की परंपरा चली जा रही है. मान्यता है कि पितृ पक्ष की शुरुआत होते ही देवलोक से पूर्वज धरती पर आ जाते हैं, जिनको आस्था पूर्वक तर्पण किया जाता है. पितरों के आशीर्वाद से परिवार में सुख, समृद्धि और वैभव बना रहता है.
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