पॉजिटिव स्टोरी: इसलिए अमला रुइया को लोग 'जल देवी' पुकारते हैं

"आकार चैरिटेबल ट्रस्ट" के द्वारा बनाए जा रहे चेक डैम ने राजस्थान के कई इलाकों की सूरत बदल दी है. इस अभियान की शुरुआत 'अमला रुइया' ने की थी. यही कारण है कि इलाके के लोग उन्हें जल देवी के नाम से बुलाते हैं.

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अमला रुइया महिलाओं के बीच उनकी समस्याओं का समाधान करते हुए

देश का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान पानी के संकट से सबसे ज्यादा जूझता है. राजस्थान के 219 तहसीलों में पानी का गहरा संकट है. राज्य सरकार के मुताबिक इन जगहों पर कभी भी भूजल समाप्त हो सकता है. पानी के संकट का सबसे बुरा असर प्रदेश के किसानों पर पड़ता है, जहां की करीब दो तिहाई आबादी कृषि पर आश्रित है. पानी के संकट ने कई जगहों पर किसानों को खेतिहर मजदूर बनने पर मजबूर कर दिया है. 

15वीं शताब्दी में जैसलमेर में चेक डैम बनाने की शुरुआत हुई थी. इसी चेक डैम की वजह से जैसलमेर कभी पंजाब को गेहूं भेजा करता था.

लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. बीते कुछ समय से राजस्थान के कई इलाकों में किसानों को इस जल संकट से कम जूझना पड़ रहा है. उसकी वजह है "आकार चैरिटेबल ट्रस्ट" के द्वारा बनाए जा रहे चेक डैम.

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आकार चैरिटेबल ट्रस्ट ने राजस्थान के विभिन्न इलाकों में 400 से अधिक चेक डैम बनाए हैं. प्रतापगढ़, जोधुपर, नीम का थाना, दौसा, सीकर समेत अन्य जिलों में इन डैम की वजह से इलाके के किसानों को पानी के संकट से निजात मिली है.

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जानिए क्या है चेक डैम?

चेक डैम पानी की कमी को दूर करने लिए उपयोग में लाए जाने वाली बहुत पुरानी तकनीक है. इसे खड़ीन के नाम से भी जाना जाता है. चेक डैम बारिश के पानी को रोकता है. और जब ज्यादा बारिश होती है तो पानी भराव क्षेत्र में फैल जाता है. इससे जमीन में नमी आती है.

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कभी पंजाब को गेहूं भेजता था जैसलमेर

15वीं शताब्दी में जैसलमेर में चेक डैम बनाने की शुरुआत हुई थी. इसी चेक डैम की वजह से जैसलमेर कभी पंजाब को गेहूं भेजा करता था. एक चेक डैम लगभग एक किलोमीटर तक पानी रोकता है. इससे इन क्षेत्रों में काफी हद तक पानी की समस्या से राहत मिल पाएगी.

एक चैक डैम में 1 किलोमीटर तक पानी रोकने की क्षमता होती है

कैसे हुई शुरुआत? 
इस अभियान की शुरुआत 'अमला रुइया' ने की थी. यही कारण है कि इलाके के लोग उन्हें जल देवी के नाम से बुलाते हैं. वे बताती हैं, 'वह एक बार मारवाड़ के इलाके में थी, जहां पानी लाने गई महिलाओं के एक समूह से मिली. वह महिलाएं पानी लेने बावड़ी में उतरी थी. जब वे ऊपर आने लगीं तो मैंने एक महिला से एक मटका मांगा, जिसे मैं उसे कुछ सेकेंड भी नहीं उठा पायीं. तभी मुझे लगा कि मैं अपनी इन बहनों को ऐसा कैसे करने दे सकती हूं और तब मुझे यह चेक डैम बनाने का बीज मन ही मन पनपने लगा. जिसके बाद से ही इस अभियान की शुरुआत की गई.

जनभागीदारी का अनूठा मॉडल हैं ये चेक डैम

इन सभी चेक डैम के लिए 70 फीसदी राशि ट्रस्ट देता है. बाकी 30 फीसदी राशि ग्रामीण देते हैं. ग्रामीण ही इन चेक डैम का रखरखाव करते हैं. इन सभी चेक डैम ने इलाके के किसानों की तस्वीर बदल कर रख दी है. पानी का स्तर बढ़ने से उपज अच्छी हुई है. पहले जिन खेतों में पूरे साल में एक फसल होती थी, वहां अब दो-दो फसलें होने लगी हैं. महिलाओं को पानी लाने कई किलोमीटर दूर नहीं जाना पड़ता. आमदनी बढ़ने से बच्चों की शिक्षा पर भी किसान खर्च करने लगे हैं. लड़कियों की शिक्षा पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

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