Election 2023: राजस्थान की टोंक विधानसभा सीट का 1993 से इतिहास रहा है कि जिस दल का विधायक इस सीट से चुना जाता है, प्रदेश में उसी दल की सरकार बनती है. शायद यही वजह है कि इस बार कांग्रेस और बीजेपी के अलावा एआईएमआईएम की निगाहें भी टोंक पर जा टीकी हैं. बीजेपी पहले ही दक्षिण दिल्ली से सांसद रमेश बिधूड़ी को टोंक जिले का चुनाव प्रभारी बनाकर मैदान में उतार चुकी है. जबकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी में राजस्थान एआईएमआईएम के महासचिव काशिफ जुबेरी को टोंक से टिकट देकर चुनाव लड़ाने की चर्चा तूल पकड़ रही है.
एक तीर ये दो शिकार की प्लानिंग
दोनों ही पार्टियों ने बेहद सोची समझी रणनीति के तहत एक तीर से दो शिकार करने के लिए इन नेताओं को ये जिम्मेदारी सौंपी है. क्योंकि 2 लाख 45 हजार मतदाओं वाली टोंक विधानसभा में सबसे ज्यादा गुर्जर और मुस्लिम वोटर्स हैं. एक तरफ विपक्षी दल गुर्जर-मुस्लिम वोटरों को सियासी संदेश देना चाह रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ सचिन पायलट के किले में सेंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं. कांग्रेस भले ही अभी तक टोंक में बिधूड़ी की चुनौती को नकार रही हो, लेकिन पायलट के लिए इस बार मुश्किलें कम नहीं होने वाली हैं. कुछ दिन पहले टोंक में जनता के बीच पायलट ने संकेत देते हुए कहा भी था कि इस बार सबकी नजर टोंक पर है. आपको इस बार मुझे पिछली बार से ज्यादा वोट देकर जिताना होगा.
जातिगत मतदाता से समझें गेम
बीजेपी और एआईएमआईएम की रणनीति को ओर बेहतर तरह से समझने के लिए हमें टोंक में जातिगत मतदाता के आंकड़ों पर नजर डालनी होगी. इसके अनुसार, टोंक में सबसे ज्यादा 61 से 63 हजार मुस्लिम मतदाता हैं. इसके बाद अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है, जो 45 से 46 हजार के बीच हैं. इसके बाद गुर्जर मतदाता आते हैं, जिनकी संख्या लगभग 34 से 36 हजार के बीच है. फिर माली मतदाता आते हैं, जिनकी संख्या लगभग 16 से 18 हजार के बीच है. टोंक में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या सिर्फ 14 से 15 हजार के बीच है. जबकि जाट मतदाता 12 से 13 हजार के करीब हैं. एसटी मतदाताओं की संख्या भी यहां 12 से 13 हजार के बीच है. वैश्य-महाजन मतदाओं की बात करें तो ये लगभग 10 हजार हैं. वहीं राजपूत मतदाता सिर्फ 5 हजार हैं. अन्य जातियों के लगभग 30 हजार वोटर भी हैं.
प्रमुख मुद्दे और जिताऊ उम्मीदवार
टोंक विधानसभा चुनाव में नगर परिषद और पंचायत समिति का भ्रष्टाचार, प्रमुख चुनावी मुद्दा बन सकता है. वहीं अवैध बजरी खनन ओर लीज धारक का माफिया राज भी एक मुद्दा बनेने की उम्मीद है. इन सबके अलावा बिजली, पानी, सड़क भी मुद्दे हैं. आजादी के बाद से अब तक रेल का नहीं आना भी बड़ा मुद्दा है. खुद सचिन पायलट अपने 2018 के चुनाव में इन मुद्दों पर वोट हासिल कर 54 हजार वोट की एतिहासिक जीत से विधायक बने थे. पर आज हालात बदले हैं और अगर कांग्रेस उन्हें टोंक से चुनाव लड़ाती है तो वह एक मजबूत प्रत्याशी तो हैं, लेकिन वर्तमान जातिगत समीकरणों को देखकर उनकी राह अब टोंक सीट पर 2018 की तरह आसान नहीं है. क्योंकि अब न तो वह मुख्यमंत्री का चेहरा हैं, और न ही प्रदेश अध्यक्ष. ऊपर से कांग्रेस की गुटबाजी और अब भाजपा का गुर्जर कार्ड. यही नहीं, अब पायलट को आचार संहिता के बाद न सिर्फ मुस्लिमों का, बल्कि उन्हें ग्रामीण क्षेत्रो में भी विरोध का सामना करना पड़ सकता है.