Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजनीतिक धुरी भाजपा से शुरू होकर भाजपा पर खत्म होती है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार में वसुंधरा फैक्टर बड़ा मुद्दा था. यही वजह है कि बीजेपी आलाकमान पिछले चुनाव के बाद से ही वसुंधरा को राजस्थान की कमान सौंपने से बचती आई है.राजस्थान में दो बार मुख्यमंत्री बन चुकी वसुंधरा राजे का मजबूत पक्ष राजपूत वोटर है, लेकिन इस बार इसका काट ढूंढ लिया है और उसने महारानी के बदले में एक और महारानी का विकल्प ढूंढ निकाला है.
बीजेपी आलाकमान ने रामसमंद से बीजेपी सांसद दीया कुमारी को कद्दावर वसुंधरा राजे के समानांतर खड़ाकर राजस्थान के मजबूत राजपूत वोट बैंक को पार्टी से छिटकने नहीं देने का बड़ा दांव चला है. यह नजारा गत 24 सितंबर को राजधानी जयुपर के दादिया में हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में देखा गया, जब पार्टी आलाकमान ने प्रधानमंत्री के मंच पर राजससमंद सासंद दीया कुमारी को वसुंधरा राजे के आमने-सामने एक मंच पर बैठा दिया.
स्पष्ट है कि यह सब कुछ अचानक नहीं हुआ है. इसकी तैयारी काफी पहले शुरू हो चुकी थी और प्रधानमंत्री मोदी की जयपुर रैली से पहले इसको अमलीजामा पहनाया गया. प्रधानमंत्री मोदी की जयपुर रैली से पहले बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह के बीच हुई मैराथन मीटिंग के बाद इसे सुनिश्चित किया गया.
इसी मैराथन बैठक में पार्टी ने निर्णय कर लिया था कि वसुंधरा राजे के चेहरे पर चुनाव में नहीं उतरेगी. यही वजह थी कि पार्टी ने बिना सीएम चेहरे के आगामी विधानसभा चुनाव में उतरने की घोषणा करने में देर नहीं लगाई. हालांकि इस पर मुहर चुनावी चाणक्य माने जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लगाई.
पार्टी ने वसुंधरा की नाराजगी की काट ढूंढने के लिए दीया कुमारी को लेकर आई.राजपूत नेता दीया कुमारी को आगे करके पार्टी ने वसुंधरा का साफ संकेत दे दिया है कि वह राजपूत वोट बैंक खिसकने का जोखिम नहीं लेगी.चूंकि पार्टी वसुंधरा की नाराजगी भी नहीं चाहती है, इसलिए जयपुर जनसभा के मंच पर दोनों समान जगह दी गई,लेकिन भाषण किसी से भी नहीं करवाई.
वसुंधरा के सामने दीया कुमारी को लाने के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि क्या दीया कुमारी राजे की विकल्प बन सकती है. इन अटकलों को भी जल्द विराम लग गया जब प्रधानमंत्री मोदी ने जयपुर की जनसभा में यह ऐलान कर दिया कि पार्टी राजस्थान विधानसभा चुनाव कमल निशान पर लड़ेगी.हालांकि यह बात पार्टी पहले ही स्पष्ट कर चुकी थी,जब उसने आगामी राजस्थान विधानसभा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ने की कवायद शुरू दी थी.
राजस्थान की 60 सीटों पर राजपूत वोटरों का असर
गौरतलब है राजस्थान के 60 विधानसभा सीटों पर प्रदेश की 14 फीसदी राजपूत वोटरों का असर है. बीजेपी यह अच्छी तरह समझती है कि राजस्थान का चुनाव जीतने के लिए राजपूत वोटर बेहद अहम हैं और वह यह भी जानती है कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी पिछला चुनाव हार चुकी है.
राजपूतों ने ही दिया था 'मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं' का नारा
इसलिए वह उनके चेहरे में चुनाव में उतरने का जोखिम नहीं लेना चाहती है. वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव से पहले 'मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं' का नारा वोटर राजपूत समाज की ओर से दिया था. यह नारा आनंदपाल एनकाउंटर के बाद पश्चिमी राजस्थान के राजपूतों द्वारा दिया था.नतीज सब जानते हैं, पिछले चुनाव में राजस्थान में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया था.
माना जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान पुरानी गलती दोहराने के बिल्कुल मूड में नहीं है, और इसलिए पिछले चुनाव में हुई हार के बाद से ही पार्टी वसुंधरा को सीएम उम्मीदवार बताने से कतराती रही है.अब जब चुनाव 2023 विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आया, तो बीजेपी ने बिना सीएम चेहरे के ही चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया.
इससे पहले पार्टी आलाकमान ने वसुंधरा को परिवर्तन संकल्प यात्रा से भी दूर ही रखा. अब वसुंधरा की बढ़ी राजनीतिक सरगर्मियों के बाद पार्टी दीया कुमारी को आगे कर दिया है. इससे वसुंधरा की नाराजगी के बावजूद राजपूत वोटर्स के छिटकने की आशंका कम हो गई.
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