Rajasthan Assembly Election 2023: क्या कल्याणकारी योजनाओं से राजस्थान में राज का रिवाज बदलने में सफल होंगे गहलोत?

गहलोत सरकार ने प्रदेश में कल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं. हालांकि विपक्षी भाजपा कांग्रेस सरकार पर रेवड़ियां बांटने का आरोप लगाती रही है.इस बार के चुनाव में योजनाओं की अहम भूमिका रह सकती है.

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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (फाइल फोटो )
JAIPUR:

राजस्थान में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है. 23 नवंबर को प्रदेश में चुनाव होंगे. सभी दल चुनाव के रण में कूद गए हैं. कांग्रेस सरकार अपनी योजनाओं के दम पर मैदान में है. गहलोत सरकार ने राजस्थान के नागरिकों के लिए 25 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा और शहरी रोजगार योजना के क्रियान्वयन के साथ राज्य में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) बहाल की है.

वहीं, चुनाव आचार संहिता लगने से ठीक पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य में 'जातिगत सर्वेक्षण' की भी घोषणा कर दी. अब सवाल यह है कि क्या गहलोत सरकार की उक्त योजनाएं कांग्रेस को एक बार फिर सत्ता की कुंजी दिला पाएंगी?  राज्य में 23 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस की ताकत, कमजोरी, अवसरों के साथ-साथ कुछ चुनौतियां भी हैं. 

यह गहलोत सरकार की ताकत

राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत का यह तीसरा कार्यकाल है. उनके जनता से सीधे जुड़ाव, आम लोगों तक पहुंचने के व्यवस्थित कार्यक्रम और एक के बाद एक योजनाएं लागू करने को कांग्रेस के लिए 'प्लस प्वाइंट' माना जा रहा है. दूसरी तरफ राज्य में दरकिनार किए जाने के बावजूद पूर्व उप मुख्यमंत्री पायलट का करिश्मा अब भी मायने रखता है. उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोगों, खासकर युवाओं की भीड़ उमड़ती है और यह पार्टी के हित में हो सकता है.

राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं की लंबी सूची है. इनमें 25 लाख रुपए का चिकित्सा बीमा, शहरी क्षेत्रों के लिए मनरेगा जैसी रोजगार योजना, उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के लिए 500 रुपए में रसोई गैस सिलेंडर और महिलाओं के लिए ‘स्मार्टफोन' तथा पेंशन शामिल हैं.

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पांच साल गहलोत और पायलट के बीच खींचतान से नुकसान 

वर्तमान सरकार के लगभग पूरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री गहलोत और सचिन पायलट के बीच अंदरूनी कलह के किस्से जारी रहे. कई बार उनकी आपसी खींचतान खुलकर भी सामने आई. सवाल यह है कि जिस तरह दोनों नेताओं के बीच इस समय गतिरोध नहीं दिखाई दे रहा है, क्या वह पार्टी को पहले हो चुके नुकसान की भरपाई कर पाएगा?

मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत का यह तीसरा कार्यकाल है. उनके जनता से सीधे जुड़ाव, आम लोगों तक पहुंचने के व्यवस्थित कार्यक्रम और एक के बाद एक योजनाएं लागू करने को कांग्रेस के लिए 'प्लस प्वाइंट' माना जा रहा है. दूसरी तरफ राज्य में दरकिनार किए जाने के बावजूद पूर्व उप मुख्यमंत्री पायलट का करिश्मा अब भी मायने रखता है.

राज्य इकाई के पदाधिकारियों और जिलाध्यक्षों को विगत जुलाई में नियुक्त किया गया था और उन्हें चुनाव से पहले तैयार होने के लिए बहुत कम समय मिला है. इसके अलावा पार्टी ‘पेपर लीक' सहित भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना भी कर रही है. प्रदेश में कथित 'लाल डायरी' विवाद भी कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है. राज्य के एक पूर्व मंत्री ने दावा किया है कि इस डायरी में सरकार की वित्तीय अनियमितिताओं का ब्यौरा है.

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कांग्रेस के लिए अवसर साबित होगी OPS स्कीम 

पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली को राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए फायदे के रूप में देखा जा रहा है. इस निर्णय से लगभग सात लाख कर्मचारियों और उनके परिवारों को लाभ होने का दावा किया जा रहा है. राज्य में विपक्षी भाजपा की प्रदेश इकाई के भीतर कथित खींचतान को भी कांग्रेस अपने लिए लाभ के रूप में देख रही है. खासतौर पर यदि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक चुनाव प्रचार में जोर-शोर से नहीं लगते तो कांग्रेस को फायदा होने के आसार हैं.

कांग्रेस पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा बना सकती है. पार्टी केंद्र पर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने का वादा नहीं निभाने का आरोप लगा रही है.

कांग्रेस के लिए सत्ता विरोधी लहर की चुनौती भी कम नहीं

कांग्रेस के लिए राज्य में सत्ता विरोधी लहर की चुनौती भी कम नहीं है. राज्य में 1993 में भाजपा की सरकार बनने के बाद का इतिहास कहता है क‍ि उसके बाद के विधानसभा चुनावों में एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा को सत्ता की बागडोर मिलती रही है. यानी कोई भी पार्टी बीते इतने सालों में लगातार दो बार सरकार नहीं बना पाई.

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वोटों के लिए 'तुष्टीकरण' का आरोप लगाती रही है विपक्ष

भाजपा सत्तारूढ़ दल पर वोटों के लिए 'तुष्टीकरण' का आरोप लगाती रही है. इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) द्वारा कुछ सीटों पर उम्मीदवार खड़े करना भी कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है. दूसरी तरफ, नवगठित भारतीय आदिवासी पार्टी उसके लिए कुछ आदिवासी बहुल इलाकों में परेशानी बन सकती है.

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