Rajasthan Election 2023: जिस जनता दल यूनाइटेड ने बांसवाड़ा जिले में दशकों तक राज किया उसका ही खत्म हो वजूद

परीसीमन के बाद पार्टी के विधायकों की संख्या और कम हो गई. 2008 के चुनाव में पार्टी कुशलगढ़ सीट ही बरकरार रख पाई और गत विधानसभा चुनाव में जनता दल के हाथ से कुशलगढ़ भी फिसल गया.

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मामा बालेश्वर दयाल का फाइल फोटो.

Assembly Elections 2023: मध्य प्रदेश और गुजरात से सटे बांसवाड़ा जिले में सामाजिक चिंतक और आदिवासियों के मसीहा माने जाने वाले मामा बालेश्वर दयाल (Mama Baleshwar Dayal) के अनुयायियों के दम पर दो दशक पहले तक तीन-तीन सीटों पर कब्जा जमाने वाला जनता दल का जिले में वजूद ही खत्म हो गया, जबकि इसी दल से निकले कई नेता कांग्रेस और भाजपा में कद्देवार नेता बन गए.

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ होने के बाद वर्तमान में मामाजी के कुछ अनुयायियों ने पार्टी की बागडोर संभाल रखी है, लेकिन जिन लोगों के बूते जनता दल की पहचान थी, उन्होंने अब नई पार्टी से जुड़ गए हैं. पिछले पांच विधानसभा चुनावों में कुशलगढ़, बागीदौरा और दानपुर में जनता दल का प्रभुत्व रहा. तीनों सीटों पर 1993 और 1998 में पार्टी प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की, लेकिन 2003 आते-आते जनता दल में टूटन शुरू हुई. प्रमुख कार्यकर्ताओं के दल-बदल करने का असर दानपुर विधानसभा सीट पर पड़ा, जहां जनता दल दूसरे स्थान पर रहा. परीसीमन के बाद पार्टी के विधायकों की संख्या और कम हो गई. 2008 के चुनाव में पार्टी कुशलगढ़ सीट ही बरकरार रख पाई और गत विधानसभा चुनाव में जनता दल के हाथ से कुशलगढ़ भी फिसल गया.

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10000 वोट का आंकड़ा भी नहीं छू पाया

पहले केंद्र स्तर पर शरद यादव और नीतिश कुमार जनता दल में रहे. कुछ समय पहले बिहार में सरकार बनाने के लिए नीतिश कुमार के भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का सहयोग लेने पर दोनों नेताओं में दूरियां बढ़ गई. इसका असर जिले में भी पड़ा. कुशलगढ़ से लगातार पांच चुनाव जीतने वाले फतेहसिंह समर्थकों के साथ शरद यादव के साथ चले गए. उन्हें राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुन लिया गया. जनता दल की पूर्व जिलाध्यक्ष मालती बहन, पूर्व विधायक भाणजी भाई अब फतेहसिंह के साथ हैं. 1998 से लेकर 2013 तक जिले में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, एनसीपी, बीजेएसएच, भारतीय युवा शक्ति, नेशनल पीपुल्स पार्टी, बहुजन संघर्ष दल, राष्ट्रीय जन पार्टी ने विभिन्न सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, लेकिन 2008 में सपा के धीरजमल (13699) के अलावा कोई भी दस हजार वोट के आंकड़े को नहीं छू पाया.

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किन कारणों से बिखर गया जनता दल?

जनता दल के बिखरने के प्रमुख कारण शहरी क्षेत्र में प्रभाव कम रहने तथा चुनाव-दर-चुनाव पार्टी के पदाधिकारियों का पाला बदलना रहा. 1998 में दानपुर से जनता दल के विधायक 2008 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े. जनता दल प्रत्याशी 20 हजार से अधिक वोट लाने में कामयाब तो रहे, लेकिन जीत दूर रही. जनता दल में बिखराव का लाभ 2008 में कांग्रेस को मिला. परिसीमन के बाद गढ़ी नई सीट बनने और बागीदौरा क्षेत्र की कुछ पंचायतों को इसमें शामिल करने से गणित बिगड़ा तो 2008 में यहां जनता दल दूसरे स्थान पर आ गया. 2003 में जनता दल से विधायक रहे जीतमल खांट ने 2013 में भाजपा का दामन थाम लिया तो जनता दल के वोटों में भी कमी आई. पार्टी की परम्परागत सीट कही जाने वाली कुशलगढ़ में भी भीमा भाई व समर्थकों ने साथ छोड़ा और भाजपा में चले गए तो 2013 में जनता दल का परम्परागत गढ़ ढह गया. पिछले चुनाव में जदयू को एक भी सीट नहीं मिल पाई.

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