राजस्थान चुनावः भाजपा की पहली लिस्ट से वसुंधरा का नाम गायब, क्या राजे के साथ हो रही सियासत?

राजस्थान की हॉट सीटों में से झालरापाटन विधानसभा जहां से दो बार की मुख्यमंत्री एवं भाजपा की नेता वसुंधरा राजे चुनाव लड़ती हैं. लेकिन पहली लिस्ट में नाम न आने से प्रदेश की सियासत गरम हो गई है.

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राजस्थान में चुनाव की घोषणा के साथ ही प्रदेश का सियासी पारा चढ़ने लगा है. भाजपा ने इसी दौरान अपनी पहली सूची जारी कर दी है. बीजेपी की पहली सूची में कुल 41 प्रत्याशियों के नाम घोषित हुए, जिनमें पार्टी के सात सांसदों के नाम भी शामिल हैं. लेकिन राजस्थान की कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम पहली लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है. इससे राजनैतिक विशेषज्ञों ने अटकलें लगाना शुरू कर दिया है कि कहीं भाजपा राजे को साइडलाइन तो नहीं कर रही है. क्योंकि भाजपा की पहली लिस्ट में राजे के किसी करीबी का भी नाम नहीं है.

ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने अपनी सुरक्षित सीटों जिन पर सिर्फ एक ही उम्मीदवार का नाम था, उनके प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. झालावाड़ की झालरापाटन विधानसभा ही एक ऐसी सीट है, जहां वसुंधरा राजे सिंधिया के अलावा कोई और चेहरा या नाम बीजेपी का टिकट मांगने वालों की लिस्ट में नहीं है. ऐसे में राजे का नाम पहली सूची में नहीं आना कुछ और ही संकेत दे रहा है.

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झालरापाटन विधानसभा में राजे की स्थिति

राजस्थान की टॉप हॉट सीटों में से झालावाड़ की झालरापाटन विधानसभा शामिल हैं. यहां से वसुंधरा राजे चुनाव लड़ती हैं. यदि बात की जाए झालावाड़ जिले में तो यहां वसुंधरा राजे की बेहद मजबूत राजनीतिक विरासत और पकड़ है. राजे यहां से चुनाव लड़कर 5 बार सांसद और चार बार विधायक बनी हैं. अपने चार बार की कार्यकाल के दौरान ही राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रही हैं.

झालावाड़ जिले में बीजेपी के पर्याय के रूप में वसुंधरा राजे सिंधिया को देखा जाता है. यहां कहा जाता है कि राजे जिसके सिर पर हाथ रख दें वही चुनाव जीत जाए. राजे की खिलाफत और मुखालिफत करने का दुस्साहस अब तक कुछ ही लोग कर पाए हैं, जिनमें से ज्यादातर राजनीति से बाहर का रास्ता पकड़ कर निकल गए हैं.

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राजे और झालावाड़ दोनों आए एक-दूसरे को रास

वसुंधरा राजे सिंधिया वैसे तो झालावाड़ में आने से पहले धौलपुर से राजनीति में उतर चुकी थी, किंतु उनको धौलपुर की राजनीति रास नहीं आई. झालावाड़ क्षेत्र वसुंधरा के लिए बड़ा ही शानदार साबित हुआ. यहां की राजनीति करते-करते ही राजे प्रदेश के सबसे बड़े पद तक जा पहुंची. राजे ने यहां वर्ष 1989 में कदम रखा जब वह पहली बार सांसद चुनी गई, लेकिन उसके बाद दो बार मध्यावधि चुनाव हुए और वर्ष 2003 तक वसुंधरा राजे सिंधिया पांच बार सांसद बनी, अटल सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया था.

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राजे ने बदल दी झालावाड़ की तस्वीर

वर्ष 2003 में वसुंधरा राजे सिंधिया को राजस्थान की जिम्मेदारी सौंपी गई जिसके बाद उन्होंने राजस्थान में अपना परचम लहराया और वर्ष 2003 में राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया. यहीं से राजे ने झालावाड़ के विकास को गति देना शुरू किया. राजे के मुख्यमंत्री बनने से पहले झालावाड़ काफी पिछड़ा हुआ इलाका था.

यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां सिर्फ संकरी और टूटी सड़कें और आधारभूत संरचनाओं के नाम पर कुछ भी नहीं था, लेकिन राजे ने मुख्यमंत्री बनने के बाद झालावाड़ शहर को कई इमारतें व अच्छी सड़कें देने के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी कार्य किया. जिसको लेकर लोग उन्हें काफी पसंद करते हैं, हालांकि कई क्षेत्रों में झालावाड़ अभी भी पिछड़ा है और लोग उन क्षेत्रों में विकास चाहते हैं.

राजे को उनके ही क्षेत्र में घेरने की कोशिश

भाजपा द्वारा घोषित की गई पहली सूची में वसुंधरा राजे सिंधिया का नाम गायब होना हर किसी को आश्चर्यचकित कर रहा है. राजनीति के जानकार बताते हैं कि आला कमान ने आचार संहिता लग जाने तक राजे को चेहरा नहीं बनाया है. राजनीति के गलियारों में वसुंधरा राजे को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं.

किंतु झालावाड़ जिला और झालरापाटन विधानसभा राजे की बेहद मजबूत पकड़ वाला क्षेत्र है. यहां कुल नौ बार से राजे का विजय रथ लगातार दौड़ रहा है. जिसको रोक पाना बेहद मुश्किल काम है. ऐसा कहा जाता है कि यहां राजे को कड़ी चुनौती देने वाला कोई भी नहीं है क्योंकि राजे के सामने बड़े-बड़े दिग्गज अपनी किस्मत आजमा चुके हैं लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली.

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