Rajasthan: काली म‍िट्टी में प्‍याज की खेती से मालामाल हो रहे झालावाड़ के क‍िसान, जानें क‍ितना होता है मुनाफा 

Rajasthan: झालावाड़ अब तक सोयाबीन और संतरे की खेती के लिए जाना जाता था, अब प्याज की पैदावार के लिए भी जाना जाने लगा है. पिछले कुछ वर्षों में जिले में प्याज की जबरदस्‍त खेती होने लगी है.

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Rajasthan: राजस्‍थान के झालावाड़ में प्‍याज की बंपर पैदावार होने लगी है. अभी तक कानपुर सह‍ित अन्‍य इलाकों से प्‍याज झालावाड़ में ब‍िकने के ल‍िए आता था. अब उल्टे झालावाड़ का प्याज कानपुर जा रहा है.  इसके अतिरिक्त जयपुर दिल्ली और अन्य कई बड़े शहरों में यहां से प्याज पहुंच रहा है. काश्तकार कहते हैं कि प्याज का उत्पादन करने में उन्हें ज्यादा फायदा मिलता है, ज्यादातर किसान अब सोयाबीन से मुंह मोड़ते जा रहे हैं, क्योंकि खर्च और मेहनत दोनों ही फसलों में बराबर लगती है, लेकिन मुनाफा प्याज में ज्यादा होता है. 

अलवर पद्धत‍ि से करते हैं प्‍याज की खेती 

झालावाड़ जिला मुख्यालय के आसपास तीतरी, तीतर वासा, मांडा, श्यामपुरा और झूमकी सहित दर्जनों ऐसे गांव हैं, जहां पर 100% किसान प्याज की खेती करते हैं. झालावाड़ में इन दिनों कुछ नौजवान और शिक्षित किसान अलवर पद्धति का उपयोग करके प्याज की खेती कर रहे हैं.  

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रेतीली जमीन में अलवर पद्धत‍ि कामयाब होती है 

झालरापाटन के क‍िसान गजानंद का कहना है कि अलवर पद्धति से प्याज की खेती रेतीली जमीन में कामयाब होती है, झालावाड़ में क्योंकि काली मिट्टी का क्षेत्र है, ऐसे में यहां अलवर पद्धति बहुत ज्यादा कामयाब नहीं है, और उसमें बारिश की अनियमितता से होने वाले नुकसानों का खतरा ज्यादा रहता है. किसान बताते हैं कि यदि पिछली बरसात में पानी ज्यादा पड़ जाए तो अलवर पद्धति पूरी तरह फेल हो जाती है.  

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गजानंद प्‍याज की खेती करते हैं.

क्‍या है अलवर पद्धत‍ि 

तीसरी के क‍िसान व‍िकास नागर ने बताया क‍ि अलवर पद्धति में बरसात के अंतिम दिनों में प्याज का बीज डालकर उसके पौधे बनाए जाते हैं, और जब उसमें छोटी-छोटी प्याज की गांठे निकल आती हैं, तब उनको निकाल कर भंडार में रख लिया जाता है, उसके बाद जब बरसात खत्म होती है, और प्याज की बुवाई का सीजन आता है तब सीधे उन गांठों को दोबारा से खेत में रोफ दिया जाता है, जो समय से पहले तैयार हो जाती हैं. इनके आकार और वजन में भी अच्छी होती हैं, किसानों के समय की बचत होती है मुनाफा भी अच्छा होता है.  

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तीसरी के क‍िसान व‍िकास नागर प्‍याज की खेती करके अच्‍छा मुनाफा कमाते हैं.

परंपरागत पद्धत‍ि से प्‍याज की खेती कैसे होती है 

परंपरागत पद्धति में प्याज को बीज छिड़क कर छोटी क्यारियों में उगाया जाता है, और पौधे बनने के बाद पूरे खेत में क्यारियां बनाकर शिफ्ट किया जाता है. लगातार उसकी देखभाल की जाती है और प्याज के पूरे आकार ले लेने तक इंतजार किया जाता है. प्याज के पूरी तरह पक जाने पर उसको निकाला जाता है. उसकी कटाई करके बेच दिया जाता है.  हालांकि, इस पद्धति में अलवर के मुकाबले समय थोड़ा ज्यादा लगता है. लेकिन, किसान कहते हैं कि यह पद्धति काली मिट्टी में प्याज की खेती करने के लिए ज्यादा बढ़िया है. 

तीतरवासा के किसान विक्रम सिंह बताते हैं कि इन दोनों प्याज बाहर भी भेजा जा रहा है.

इस वर्ष भाव भी मिल रहे हैं अच्छे 

तीतरवासा के किसान विक्रम सिंह बताते हैं कि इन दोनों प्याज बाहर भी भेजा जा रहा है, जिसके चलते बाजार में अच्छे भाव मिल रहे हैं किसानों को प्याज का बड़ा कारोबार करने वाले व्यापारियों द्वारा 32 से ₹35 किलो का भाव दिया जा रहा है जिसके चलते किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा है.  प्याज की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि प्याज की खेती करने में 60 से ₹70000 प्रति बीघा का खर्चा लगता है और 20 से ₹30000 प्रति बीघा की बचत हो जाती है.  जबकि सोयाबीन एवं अन्य फसले करने पर यह बचत तीन से चार हजार प्रति बीघा ही रह जाती है, ऐसे में अब प्याज की खेती किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है.