Rajasthan News: झुंझुनूं जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर स्थित बांसियाल गांव एक बार फिर इतिहास की नई परतें उजागर कर रहा है. यहां लगभग साढ़े चार हजार (4500) वर्ष पुरानी सभ्यता के प्रामाणिक प्रमाण मिले हैं. हाल ही में हुए उत्खनन में लाइम पाउडर से बनी दीवारें, तांबे की रिंग, हड्डी से बने औजार, आभूषण, सेमी-प्रेशियस स्टोन के मनके, और लाल रंग वाले मृद्भांड बरामद हुए हैं. ये अवशेष इस क्षेत्र में एक उन्नत और संगठित जीवन शैली के मौजूद होने का संकेत देते हैं.
हड़प्पा सभ्यता से व्यापारिक संबंध के संकेत
बांसियाल क्षेत्र में पिछले लगभग चार वर्षों से व्यापक सर्वेक्षण चल रहा था. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की अनुमति के बाद अक्टूबर 2025 में उत्खनन कार्य शुरू किया गया. यह अनुसंधान परियोजना राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के कई स्थलों के संयुक्त अध्ययन का हिस्सा है. पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार बांसियाल का यह स्थल ताम्र-पाषाणिक संस्कृति से जुड़ा हुआ है. इस क्षेत्र के निवासियों के हड़प्पा सभ्यता से व्यापारिक संबंध होने के भी संकेत मिले हैं.
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह स्थल प्रारंभिक अंतर-सांस्कृतिक संपर्कों का प्रमुख केंद्र रहा होगा, जिसे गणेश्वर सभ्यता की कड़ी के रूप में भी देखा जा रहा है.
घरेलू संरचनाओं के स्पष्ट प्रमाण
शोधकर्ता डॉ. ईशा प्रसाद और डॉ. श्वेता सिन्हा देशपांडे ने बताया कि बांसियाल में पहली बार बस्ती के भीतर घरेलू संरचनाओं के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं. उत्खनन में एक कुटी (झोपड़ी) की संरचना, उससे जुड़ा प्लेटफॉर्म और मिट्टी के बर्तनों पर बने हेंडल भी सामने आए हैं. यह खोज प्राचीन घरेलू वास्तुकला और बस्ती की संरचना को समझने में बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है. उन्नत प्राचीन तकनीक और सामाजिक जीवन के संकेत मिले हुए अवशेष बताते हैं कि यहां के लोग तांबे का उपयोग वस्तुओं बनाने में करते थे. हड्डी के औजार इस्तेमाल करते थे मनकों और आभूषणों का निर्माण करते थे. व्यवस्थित रूप से बने कच्चे-पक्के घरों में रहते थे.
इतिहासकारों का मानना है कि बांसियाल की यह खोज राजस्थान की प्राचीन सभ्यताओं के अध्ययन में नई दिशा देगी. आने वाले समय में यहां से और भी महत्वपूर्ण खोजें सामने आने की उम्मीद है.
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