Bundi News: राजस्थान में दिवाली पर्व की धूम है. यहां दिवाली के हर दिन खास होते हैं. लेकिन बूंदी जिले में एक अनोखी परम्परा पिछले 400 सालों से निभाई जा रही है. देई कस्बे में बैलों को मदिरा पिलाई जाती है फिर एक दूसरे पर पटाखे चलाने की परम्परा शुरू होती है, जिसमें लोग अपने बैलों को जोतने के लिए होड़ लगाते हैं. पटाखों के शोर से चमकर बैल भीड़ में घुस जाते हैं, जिसके बाद लोगों का गिरना पड़ना हर पल रोमांच पैदा करता है. आज भी इस प्राचीन संस्कृति को देखने के लिए सवारी मार्ग की छतें, चबूतरियां भीड़ से अटी रहती हैं.
हम बात कर रहे हैं बूंदी के पटाखा मार दिवाली की, जहां बैलों को मदिरा पिलाने के बाद एक दूसरे पर पटाखे फेंके जाते हैं और यह परम्परा शुरू हो जाती है. इसे देखने के लिए सुबह 5 बजे जिले के देई इलाके में लोगों की भीड़ जुटना शुरू हो जाती है.
बैलों को मदिरा पिलाकर नशे में धुत किया जाता है
यहां बेल के रूप में घास भैरु को लाया जाता है फिर यहां उस बैल को सजाया जाता है और भगवान घास भैरु की पूजा करने के बाद बैलों को मदिरा पिलाकर नशे में धुत किया जाता है. उसके बाद कुछ युवक भी पूजा के साथ शराब के नशे में धुत हो जाते हैं. उसके बाद पटाखा मार दिवाली महोत्सव शुरू होता है. ग्रामीण बैलों को नशे में धुत करने के बाद छतों से पटाखे फेंकते हैं. जिससे बेल चमक जाता है और वह रास्ते पर भीड़ को कुचलते हुए भगता है तो नशे में धुत युवक उन पर चढ़कर रोकने के प्रयास करता है. फिर पटाखा फोड़ा जाता है और बेल आक्रमण करने पर मजबूर होता है.
ऐसे होती है महोत्सव की शुरुआत
सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार गांव के सभी समाज अपने बैलों की पूजा के बाद बाबा घास भैरू के स्थल पर पहुंचते हैं और उन्हें अपने अभूतपूर्व चमत्कारी और ग्रामवासियों की मनोकामना पूर्ति करने वाली यात्रा के लिए तैयार करते हैं. उन्हें स्नान करवाया जाता है.इस खेल में कई युवक और बुजुर्ग घायल भी जाते है. इस खेल को करने के लिए एक या दो युवक नहीं होते हजारों की संख्या में लोग होते हैं.
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