Rajasthan: अब वक्फ की संपत्ति नहीं रहेगी जयपुर के आमेर की अकबरी मस्जिद, नए कानून से हुआ ऐसा

Waqf Law Hearing In SC: जयपुर की अकबरी जामा मस्जिद 1965 में हुई वक़्फ़ संपत्ति घोषित, जबकि 1951 से वो संरक्षित इमारत थी.

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जयपुर की अकबरी जामा मस्जिद

Waqf Amendment Act 2025: वक़्फ़ संशोधन क़ानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. सुनवाई के दौरान कानून के अलग अलग पहलुओं पर बहस हो रही है. लेकिन एक पहलू जिसपर लोगों का ध्यान ज़्यादा नहीं गया है वो है ऐतिहासिक इमारतों पर वक़्फ़ बोर्डों का दावा है जिसे नए क़ानून में ख़त्म कर दिया गया है. दरअसल कुतुब मीनार, हुमायूं का मक़बरा, पुराना किला और उग्रसेन की बावली जैसी दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतें वक़्फ़ संपत्ति घोषित हैं. 

इतना ही नहीं, पिछले कुछ दिनों से विवादों में चल रहा औरंगज़ेब का मक़बरा, आगरा और जयपुर की अकबरी मस्जिद वक़्फ़ संपत्ति हैं. 1951 में औरंगज़ेब का मक़बरा संरक्षित इमारत घोषित हुआ लेकिन 1973 में वक़्फ़ संपत्ति घोषित हो गया. जयपुर की अकबरी जामा मस्जिद 1965 में हुई वक़्फ़ संपत्ति घोषित, जबकि 1951 से वो संरक्षित इमारत था.

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नए क़ानून के बाद वक़्फ़ बोर्ड का दावा ख़त्म 

क़ानून के हिसाब से अब इन इमारतों के ऊपर वक़्फ़ बोर्ड का दावा ख़त्म हो गया है क्योंकि हाल में अमल में आए वक़्फ़ संशोधन क़ानून की धारा 3 (D) ने पहले की ऐसी सभी घोषणाओं और अधिसूचनाओं को निरस्त और अमान्य करार दिया है जो पहले से चिन्हित संरक्षित इमारतों पर वक़्फ़ संपत्ति होने का दावा करता हो.

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आमेर नरेश भारमल ने बनवाई थी अकबरी मस्जिद 

अकबरी मस्जिद को 1968 में वक़्फ़ संपत्ति घोषित किया गया था. जयपुर के आमेर क्षेत्र की अकबरी मस्जिद और पास की कोस मीनार आज भी उस इतिहास की गवाही देती हैं, जब 1569 में मुग़ल सम्राट अकबर रणथंभौर विजय अभियान और अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत के लिए निकले थे और आमेर में कुछ समय रुके थे. आमेर नरेश भारमल ने उनके लिए मस्जिद का निर्माण करवाया था, जहां बादशाह ने नमाज अदा की थी. औरंगज़ेब के शासन काल में इस मस्जिद का विस्तार हुआ था.

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क्या कहते हैं मस्जिद के व्यस्थापक ? 

अकबरी मस्जिद के वर्तमान काज़ी सैयद मुज़फ्फर अली ने NDTV से बातचीत में बताया कि हमारा परिवार ढाई सौ साल से इस मस्जिद में नमाज़ पढ़वा रहा है. लेकिन आज भी मस्जिद को संरक्षण की आवश्यकता है. वक़्फ़ बोर्ड ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया. 1968 में दावा किया गया था, लेकिन आगे कोई कार्यवाही नहीं हुई. देवस्थान विभाग की ओर से मात्र 50 रुपए प्रति माह मिलता है, आप खुद सोचिए इससे मस्जिद कैसे चल सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि अब जबकि सरकार इस ऐतिहासिक धरोहर को उसके मूल स्वरूप में संरक्षित करेगी और इसकी जर्जर स्थिति सुधारी जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट में हो रही मामले की सुनवाई 

बुधवार को जब नए क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई तो क़ानून का विरोध कर रहे पक्षों ने धारा 3 (D) का ज़िक्र करते हुए इस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई. एनडीटीवी को मिली जानकारी के मुताबिक़ ASI इन संरक्षित इमारतों को दोबारा अपने कब्ज़े में लेने की प्रक्रिया शुरू करने की योजना पर काम कर रहा है . हालांकि उसकी नज़र कोर्ट में शुरू हुई सुनवाई पर भी है क्योंकि अगर कोर्ट किसी तरह का अंतरिम आदेश देता है तो उसका असर वक़्फ़ घोषित इन इमारतों पर भी पड़ सकता है. 

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