आ गई इम्तिहान की घड़ी, 7 सीटों पर उपचुनाव से इन दिग्गजों के राजनीतिक भविष्य का होगा फैसला?

Rajasthan Politics: सलूंबर विधानसभा सीट को छोड़ दिया जाए तो पिछले विधानसभा चुनाव में अन्य 6 सीटें बीजेपी हार गई थी. इस चुनाव में बीजेपी भजनलाल सरकार के कामकाज को जनता के बीच लेकर जाएगी. वहीं, सरकार विरोधी मुद्दों के सहारे कांग्रेस वोट जुटाने की जुगत में रहेगी. साथ ही चौरासी और खींवसर पर भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दल आमने-सामने हो सकते हैं.

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Rajasthan By-election: राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का ऐलान हो चुका है. दौसा, झुंझुनूं, चौरासी, खींवसर, सलूंबर, रामगढ़ और देवली-उनियारा के लिए 13 नवंबर को वोटिंग होगी. चुनाव के परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे. विधानसभा चुनाव-2023 के 10 महीने के भीतर ही 7 सीटों पर उपचुनाव (By-election) के ऐलान के बाद प्रदेश की सियासत एक बार फिर गरमा गई है. सलूंबर विधानसभा सीट को छोड़ दिया जाए तो पिछले विधानसभा चुनाव (Assembly election) में अन्य 6 सीटें बीजेपी हार गई थी. ऐसे में बीजेपी विधानसभा में आंकड़ा बढ़ाने के लिए भजनलाल सरकार के कामकाज को जनता के बीच लेकर जाएगी. वहीं, सरकार विरोधी मुद्दों के सहारे कांग्रेस वोट जुटाने की जुगत में रहेगी. साथ ही चौरासी और खींवसर पर भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दल आमने-सामने हो सकते हैं. इस लिहाज से ये 2 सीटें भी काफी अहम होगी. 

'मुरारी या किरोड़ी', दौसा में किस करवट बैठेगा ऊंट?

दौसा में मीणा और गुर्जर को पॉलिटिक्स का केंद्र माना जाता है. कांग्रेस नेता सचिन पायलट के करीबी माने जाने वाले मुरारीलाल मीणा के दौसा से सांसद चुनाव जीते जाने के बाद यह सीट खाली हो गई. इस सीट से उनके परिवार के सदस्यों की दावेदारी की काफी चर्चा है, जिसमें पत्नी सविता मीणा और बेटी निहारिका का नाम सामने आ रहा है. सविता मीणा साल 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं. वहीं, दावेदारों की लिस्ट में जीआर खटाणा, नरेश मीणा और संदीप शर्मा समेत कई नाम भी शामिल है.

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जबकि बीजेपी से पिछला चुनाव हार चुके शंकरलाल शर्मा के नाम की एक बार फिर चर्चा है. दावेदारों की फेहरिस्त में एक नाम डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा का भी है. संभावित तौर पर जगमोहन मीणा के सामने मुरारीलाल मीणा के परिवार के किसी सदस्य को टिकट मिलने की स्थिति में यह मुकाबला काफी रोचक हो सकता है. क्योंकि ऐसे में यह चुनाव मुरारीलाल मीणा और किरोड़ीलाल मीणा की प्रतिष्ठा से भी जुड़ जाएगा. हालांकि टिकट के ऐलान के बाद ही यह स्थिति साफ हो पाएगी. 

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सलूंबर: बीजेपी के गढ़ में बीएपी-कांग्रेस के बीच समीकरण अहम

सूलंबर सीट से बीजेपी विधायक अमृतलाल मीणा के 8 अगस्त 2024 को निधन के बाद से यह ​सीट खाली हो गई थी. विधानसभा चुनाव-2023 में कांग्रेस की हार की वजह पहली बार चुनाव लड़ने वाली भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) रही. बीजेपी के अमृतलाल मीणा को 80 हजार 86 वोट मिले और 65395 वोट के साथ कांग्रेस के रघुवीर सिंह मीणा दूसरे नंबर पर रहे थे. जबकि बीएपी के जीतेश मीणा ने 51 हजार 691 वोट मिले थे. इस बार कांग्रेस और बीएपी के गठबंधन को लेकर कई तरह के सवाल बरकरार हैं. गठबंधन नहीं होने की स्थिति में बीएपी कांग्रेस के लिए एक बार फिर सिरदर्द साबित हो सकती है. कांग्रेस यहां से आखिरी बार साल 2008 में चुनाव जीती थी. तब कांग्रेस के रघुवीर मीणा ने 65 हजार 140 वोट मिलने के चलते 23 हजार 353 मतों से जीते थे. लेकिन उसके बाद से बीजेपी लगातार जीत हासिल करती आ रही है. ऐसे में यह उपचुनाव रघुवीर मीणा के लिए भी अहम है. क्योंकि पिछला चुनाव हारने के बाद वह निष्क्रिय नजर आ रहे थे.

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कभी कांग्रेस की सीडब्ल्यूसी कमेटी के सदस्य रहे रघुवीर मीणा के लिए इस बार विधानसभा चुनाव जीतना उनके राजनीतिक करियर के भी काफी अहम होगा. उनके समर्थक दबी जुबान में रघुवीर मीणा की प्रबल दावेदारी की बात जरूर कह रहे हैं, लेकिन पार्टी के भीतर दावेदारों की लिस्ट काफी लंबी है, जिसमें रघुवीर मीणा की पत्नी बसंती मीणा और पूर्व सराड़ा प्रधान रेशमा मीणा का नाम भी शामिल है. बीजेपी में दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता देवी, उनकी बेटी प्रियंका मीणा, उनके दोनों बेटे कपिल और अविनाश की काफी चर्चा है. हालांकि नरेंद्र मीणा को भी काफी प्रबल दावेदार माना जा रहा है. इसके साथ ही जया मीणा, दुर्गाप्रसाद मीणा या भगवतीलाल मीणा का नाम भी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर सामने आ सकता है. 

झुंझुनू: ओला परिवार के वर्चस्व वाली सीट पर राजेंद्र गुढ़ा का क्या होगा?

कांग्रेस की परंपरागत सीट झुंझुनू पर जाट-मुस्लिम समीकरण के बूते आजादी से लेकर अब तक कब्जा बरकरार है. बीते चार चुनावों से कांग्रेस लगातार यहां अपना परचम लहराती आ रही है. बृजेंद्र ओला के लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद इस सीट पर एक बार फिर उपचुनाव होना है. कांग्रेस के दिग्गज नेता और केंद्रीय मंत्री पिता शीशराम ओला की विरासत को आगे बढ़ाते हुए बृजेंद्र ओला ने वर्चस्व को कायम रखा. उनकी मजबूती राजनीतिक पकड़ को देखते हुए पार्टी के दावेदारों में ओला परिवार के सदस्यों का नाम भी आगे दिख रहा है. बृजेंद्र ओला के बेटे अमित ओला, बहू आकांक्षा ओला और पत्नी राजबाला ओला के अलावा इस लिस्ट में एक नाम दिनेश सूंडा का भी है.

वहीं, बीजेपी की ओर से विशंभर पुनिया, शुभकरण चौधरी, राजेंद्र भांबू, बबलू चौधरी, राजेश बाबल, हर्षीणी कुलहरी, संतोष अहलावत, बनवारी लाल सैनी और मुकेश दाधीच प्रमुख नाम है. इधर, राजेंद्र गुढ़ा के नाम की एक बार फिर चर्चा होने लगी है. उदयपुरवाटी के पूर्व विधायक और गहलोत सरकार में दो बार मंत्री रह चुके राजेन्द्र गुढ़ा ने लाल डायरी के किस्सों के जरिए काफी बवाल मचाया था. इसके बाद उन्होंने शिवसेना (शिंदे) को ज्वॉइन कर ली. लेकिन उदयपुरवाटी छोड़कर अब झुंझुनू में भी वह हलचल करते नजर आ रहे हैं. उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए बेटे का जन्मदिन झुंझुनूं में मनाकर समर्थकों को एकत्र किया था. हाल ही में उनके कार्यक्रमों के वीडियो भी वायरल हुए, जिससे उनके चुनाव लड़ने की संभावना तेज हो गई है.

चौरासी वागड़ अंचल में पैर पसार रही बीएपी, बीजेपी के लिए इम्तिहान कड़ा

संघ का आनुशांसिक संगठन वनवासी कल्याण आश्रम आदिवासी अंचल में काफी लंबे समय से काम कर रहा है. दक्षिण राजस्थान के मेवाड़-वागड़ अंचल में संघ इस संगठन के जरिए सांस्कृतिक प्रचार-प्रसार का काम करता आया है. जानकारों के मुताबिक संघ के तालमेल के बूते ही वागड़-मेवाड़ में बीजेपी की पकड़ मजबूत हुई है. लेकिन अब बीजेपी को भारत आदिवासी पार्टी से चुनौती मिलने लगी है. दूसरी ओर, इस क्षेत्र में कभी पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी और मोहनलाल सुखाड़िया जैसे दिग्गज नेताओं के सहारे कांग्रेस का वर्चस्व था. आज उसी क्षेत्र में कांग्रेस अस्तित्व के संकट से जूझ रही है.

साल 2023 के विधानसभा चुनाव में 3 सीटें जीतकर बीएपी ने धमाकेदार एंट्री की थी. जिसके बाद साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के बागी नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीया पर दांव खेला. लेकिन पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाले राजकुमार रोत ने इस दिग्गज नेता को 2.47 लाख के अंतर से हराया. ना सिर्फ मालवीया लोकसभा चुनाव हारे, बल्कि उनके गढ़ बागीदौरा विधानसभा सीट पर उपचुनाव में पार्टी ने जीत हासिल की. अब अगली लड़ाई चौरासी उपचुनाव में देखने को मिलेगी. इस सीट पर बीएपी के दावेदारों की बात करें तो कांतिलाल रोत और मोहनलाल रोत का नाम सबसे आगे है. जबकि कांग्रेस पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा और बीजेपी सुशील कटारा पर दांव लगा सकती है.  

कांग्रेस के गढ़ रामगढ़ में बीजेपी के लिए मुश्किल!

अलवर की रामगढ़ विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है. कांग्रेस जहां अपने गढ़ को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती तो वहीं भाजपा भी कांग्रेस के गढ़ को फतेह करने के लिए तमाम सिसायी दांव पेंच लगाने में जुटी है. विधायक जुबैर खान के निधन के बाद कांग्रेस का टिकट उनके परिवार के सदस्य को ही मिलना तय बताया जा रहा है. उनकी पत्नी साफिया खान पहले भी विधायक रह चुकी हैं.

दूसरी ओर, साल 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बागी नेता के चलते हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस के जुबेर खान ने 19 हजार 696 वोट के अंतर से आजाद समाज पार्टी के सुखवंत सिंह को हराया था. जबकि भाजपा के उम्मीदवार और ज्ञानदेव आहूजा के भतीजे जय आहूजा तीसरे नंबर पर रहे थे. दरअसल, सुखवंत सिंह को बीजेपी से टिकट नहीं मिलने पर वे बागी होकर आजाद समाज पार्टी से चुनाव लड़े थे. डेढ़ दशक से ज्यादा समय से सक्रिय रहे ज्ञानदेव आहूजा पर बीजेपी एक बार फिर दांव लगा सकती है.  

देवली-उनियारा: बीजेपी में गुर्जर नेता कौन? 

टोंक की देवली-उनियारा सीट के समीकरण की बात करें तो 46 हजार गुर्जर मतदाता और 55 हजार मीणा मतदाता हैं. कांग्रेस खेमे से मीणा और गुर्जर, दोनों समुदाय से नेताओं की उम्मीदवारी संभावित है. जिसमें सबसे पहला नाम कोटा-बूंदी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके प्रहलाद गुंजल का है. वहीं, धीरज गुर्जर, पूर्व विधायक रामनारायण मीणा और हरीश मीणा के बेटे हनुमंत मीणा का नाम भी चर्चाओं में हैं. 

बीजेपी इस सीट पर गुर्जर नेता पर ही दांव लगाती आई है. इस सीट पर गुर्जर नेताओं के नामों की फेहरिस्त लंबी है. लेकिन असल सवाल यह है कि बीजेपी किस गुर्जर नेता पर दांव लगाएगी. बीजेपी दावेदारों में प्रमुख नाम विजय बैंसला का है. साल 2023 के विधानसभा चुनाव में हरीश मीणा को कड़ी टक्कर देने वाले बैंसला के साथ उनके पिता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की विरासत जुड़े होने के चलते पार्टी को उन्हें नजरंदाज करना आसान नहीं है. तथ्य यह भी है कि वह चुनाव हारने के बावजूद भी वह पिछले 6 महीने से सक्रिय बने हुए हैं. इसी में प्रबल दावेदार के तौर एक नाम पूर्व विधायक राजेंद्र गुर्जर, पार्टी की राष्ट्रीय सचिव डॉ. अलका गुर्जर और लोकसभा सीट के संयोजक रहे नरेश बंसल का नाम भी चर्चाओं में है. हालांकि पूर्व विधायक राजेंद्र गुर्जर पर साल 2023 के चुनाव में बगावत के आरोप भी लगे थे. जिसके बाद चुनाव नतीजों के बाद केंद्रीय नेतृत्व को लिखे पत्र में बीजेपी के कई पदाधिकारियों ने निष्कासन की भी मांग की थी. ऐसे में उनकी दावेदारी पर खतरा हो सकता है.

खींवसर: ज्योति मिर्धा के लिए एक आखिरी दांव?

जाटलैंड में एक बार फिर सियासी घमासान तेज हो गया है. नागौर की खींवसर सीट से ज्योति मिर्धा का नाम एक बार फिर सुर्खियों में है. अगर बीजेपी की ओर से ज्योति मिर्धा चुनाव लड़ती हैं तो उनके लिए यह चुनाव काफी अहम होगा. क्योंकि साल 2014, 2019, 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद इस साल लोकसभा चुनाव में लगातार चौथी बार उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी. बीजेपी की ओर से दावेदार के तौर पर रेवत राम डांगा का नाम भी चल रहा है. दूसरी ओर, कांग्रेस अपनी गठबंधन सहयोगी आरएलपी को समर्थन देगी या नहीं, इस पर तस्वीर साफ नहीं है. जबकि आरएलपी से नारायण बेनीवाल या हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल की उम्मीदवारी को लेकर चर्चा हो रही है. 

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