Rakamgarh Fort: राजसमंद से लगभग 10 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में मौजूद मशहूर रकमगढ़ किला एक छोटी पहाड़ी पर बना एक छोटा किला है. अभी यह खेड़ाना पंचायत में आता है. इस किले का इतिहास ऐतिहासिक राजसमंद झील से जुड़ा है, जो एशिया की दूसरी सबसे पुरानी मीठे पानी की कृत्रिम झीलों में से एक है.
45 दिन रकमगढ़ में छुपे थे तात्या टोपे
जानकारी के मुताबिक, इस किले को कोठारिया के उस समय के राव साहब ने बनवाया था. इस किले के बारे में कहा जाता है कि आजादी की लड़ाई के दौरान तात्या टोपे ने यहां 45 दिन छिपकर बिताए थे. जब अंग्रेजों को इसकी भनक लगी तो उन्होंने इस किले पर हमला कर दिया. उस समय तात्या टोपे ने एक दूत के जरिए कोठारिया राव जी को संदेश भिजवाकर उनसे मदद मांगी थी. इसके बाद जैसे ही अंग्रेज किले में पहुंचे, कोठारिया किला और रकमगढ़ के बीच तोपें दागी गईं. जिसकी गवाही आज भी रकमगढ़ किले की दीवारें सबूत दे रही हैं.
जब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को तात्या टोपे पर हमले की खबर मिली, तो वह उनकी मदद के लिए रकमगढ़ पहुंची. किले पर हमले के दौरान अंग्रेजों को भगाने के बाद तात्या टोपे ने यह जगह छोड़ दी थी. तब से यह किला आज भी अपनी वीरान दीवारों के साथ यहां खड़ा है, जो उनकी बहादुरी और पराक्रम का सबूत है.
भूतों के होने की भी कही जाती है बात
वीरता की कहानियों के अलावा, इस किले के बारे में कई किंवदंतियां भी प्रचलित हैं. आबादी वाले इलाके से दूर एक पहाड़ी पर होने की वजह से, आस-पास रहने वाले लोग यहां भूतों के होने की बात भी करते हैं. आस-पास के गांवों में रहने वाले कुछ लोगों का कहना है कि तात्या टोपे और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सुरक्षित खजाना इसी किले की ज़मीन में दबा दिया था. जिसके लालच में कुछ लोगों ने किले में 5 से 10 फीट गहरे गड्ढे खोद दिए हैं. करीब 50 साल पहले यहां सांप के काटने से कुछ लोगों की मौत हो चुकी है.
काला सांप हमेशा खजाने पर रखता है नजर
एक बुज़ुर्ग गांव वाले बताते हैं कि इस किले के आस-पास दो लोक देवताओं के मंदिर हैं जहां एक बहुत बड़ा काला सांप हमेशा खजाने पर नजर रखता है. इस सांप के सिर पर कुछ धार्मिक निशान भी बने हैं. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि जिसे सपने में माताजी दिखती हैं, वह किले से पैसे निकाल सकता है और यह सांप उसे किसी भी तरह से परेशान नहीं करता.
खंडहरनुमा हालत में भी दे रहा है अपने इतिहास की गवाही
बता दें कि आज भी यह अकेला कोठारिया राजपरिवार के अधीन है लेकिन निजी संपत्ति और उनके वारिसान मौजूद होने के कारण भले ही पुरातत्व विभाग के यह अंतर्गत आता है, लेकिन विभाग की तरफ से आज तक इसकी सुध नहीं ली गई है.इसको बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए. लेकिन आज भी यह किला खंडहरनुमा हालत में भी अपने इतिहास की गवाही दे रहा है.