'कलिकाल बिदाल रिए मनुजा, नहि मानत क्यों अनुजा तनुजा' यह रामचरितमानस की चौपाई किसी कथा के दौरान नहीं कही गई, बल्कि यह चौपाई पाक्सो एक्ट में रेप से सम्बंधित एक मामले को लेकर न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कही. दरअसल एक हवसी पिता के सात साल की नाबालिक बेटी के साथ दुष्कर्म करने के मामले में न्यायाधीश ने सुनवाई की और पिता को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.
7 साल की नाबालिग बेटी से दुष्कर्म करने वाले कलयुगी पिता को कोटा पॉक्सो कोर्ट ने सजा सुनाई है. कोर्ट ने आरोपी को अंतिम सांस तक कारावास की सजा और 20 हजार के अर्थदंड से दंडित किया है. साथ ही पीड़िता बेटी को पहुंची शारीरिक एवं मानसिक क्षति तथा उसके सामाजिक परिदृश्य के अनुरूप पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत 10 लाख रुपए की अतिरिक्त प्रतिक्रम स्कीम में देने अनुशंसा की है.
विशिष्ट लोक अभियोजक ललित कुमार शर्मा ने बताया कि न्यायाधीश दीपक दुबे ने 15 पेज के फैसले में रामचरित मानस की चौपाई लिखी है. 'रामचरितमानस में कलयुग के लक्ष्य को बताते हुए काग भुसुण्डि ने गरुड़ से कहा था
'कलिकाल बिदाल रिए मनुजा, नहि मानत क्यों अनुजा तनुजा' अर्थात कलयुग में मनुष्य बहिन बेटी का भी विचार नही करेगा.
क्या था मामला
पीड़िता की मां ने 8 अगस्त 2021 को एसपी बारां को परिवाद दिया था. इसके बाद एसपी से परिवाद महिला थाना बारां में बिना नंबर की एफआईआर दर्ज कर कोटा के थाना देवली मांझी को भेज दिया गया. परिवाद में आरोप था कि उसने 2 अगस्त 2021 से पहले करीब 15- 20 दिन की अवधि में अपनी 7 साल की मासूम बेटी के साथ एक खेत में बने कमरे में कई बार दुष्कर्म किया.
बेटी की मां ने अपने परिवाद में लिखा कि उसका पति खेत मे मजदूरी का काम करता है अक्सर मारपीट करता है बेटी के साथ दुष्कर्म करता है वो अपनी जान बचाकर बेटी और पुत्र को लेकर वहां से निकाल कर आ गई. पिता उसे तलाश कर रहा है. पिता उसके साथ कभी भी कभी किसी प्रकार की वारदात कर सकता है.
मामले को गंभीरता से लेते हुए देवली माझी थाना पुलिस ने दुष्कर्म की धारा एवं पोक्सो एक्ट की धाराओं में मामला दर्ज कर जांच शुरू की. आरोपी पिता के खिलाफ 25 अक्टूबर 2022 को न्यायालय में चालान पेश किया था. अभियोजन पक्ष की ओर से 15 गवाहों के बयान कराए गए थे जिसके बाद कोर्ट ने कठोर सजा सुनाई.
कोर्ट ने मां के हौसले का किया सम्मान
पिता द्वारा किया गया अपराध ने इस मर्यादा को भी भुला दिया गया कि पीड़िता उसकी पुत्री है. उसके साथ इस प्रकार का घृणित कृत्य करेगा तो उसकी बेटी को न केवल असहनीय शारीरिक पीड़ा होगी. बल्कि उसे पहुंचने वाली मानसिक पीड़ा को वह जिंदगी भर नहीं मिटा पाएगी. यदि पिता को कठोर दंड से दंडित नहीं किया गया तो यह पॉक्सो अधिनियम की अपेक्षा के अनुरूप नहीं होगा.
यह न्यायालय मुक्त कंठ से पीड़िता की मां के हौसले का सम्मान करता है. अत्यंत पिछड़ी जनजाति वर्ग के होने के बाद भी उसने अपनी मासूम की पीड़ा को न केवल समझा बल्कि तत्काल विरोध किया और कानूनी कार्रवाई कर आरोपी को दंड दिलाने में सहायता की.
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