Independence Day 2024: जब मरने के 3 दिन बाद फिर जिंदा हो गया करौली का जवान, सेना के अधिकारी भी रह गए थे भौचक्का

करीब 25 से 30 मिनट तक बर्फ में मौत और जिंदगी की लड़ाई लड़ने वाले दोनों सैनिकों में से एक सैनिक शहीद हो गया, लेकिन करौली वो हवलदार जिनका बचना भी नामुमकिन माना जा रहा था, तीन दिन बाद उनकी सांसे एक फिर चलने लग गईं.

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Rajasthan News: देशभर में आज 78वां  स्वतंत्रता दिवस धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. इस खास मौके पर आज हम आपको भारतीय सेना से रिटायर्ड करौली एक ऐसे हवलदार की कहानी बताने जा रहे हैं जो शायद ही आपने सुनी हो. यह कहानी लेह लद्दाख और कारगिल के बीच में बॉर्डर पर पेट्रोलिंग कर रही सेना की एक छोटी सी टुकड़ी की है, जो बर्फ की एक चट्टान अचानक गिरने के बाद भयानक हादसा का शिकार हो गई थी. सन 1990 में हुए इस हादसे में भारतीय सेना के दो सैनिक बर्फ में इस कदर दब गए कि जब रेस्क्यू अभियान के दौरान उनकी बॉडी बर्फ को खोदकर बाहर निकाला गया तो कारगिल के अस्पताल में उन्हें मृत घोषित कर दिया. लेकिन 3 दिन बाद जो इनके साथ हुआ, वह किसी चमत्कार से कम नहीं था. 

3 दिन बाद फिर चलने लगी सांसे

करीब 25 से 30 मिनट तक बर्फ में मौत और जिंदगी की लड़ाई लड़ने वाले दोनों सैनिकों में से एक सैनिक शहीद हो गया, लेकिन करौली वो हवलदार जिनका बचना भी नामुमकिन माना जा रहा था, तीन दिन बाद उनकी सांसे एक फिर चलने लग गईं. सेना के अधिकारियों के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था, क्योंकि उनकी हालत गंभीर थी. उस हालत को देखकर भी किसी भी तरह से संभव नहीं था कि वे जीवित रहेंगे. लेकिन रिटायर्ड हवलदार तेजेंद्र सिंह के 70% फेफड़े इस हादसे में खत्म हो गए. मगर, बॉर्डर पर  दुश्मनों का सामना करने का इनका जज्बा कुछ ऐसा था कि इन्होंने 1 साल में सेना के अस्पताल में इलाज लेकर फिर से अपनी पूरी बॉडी रिकवर कर ली. इस पूरे हादसे के बाद उनकी मेडिकल कैटिगरी भी डाउन हो गई. इसके बाद इन्हें सिर्फ सामान्य काम करने की सेना में अनुमति थी. फिर भी मेजर के मना करने के बाद और अपनी मेडिकल कैटिगरी डाउन होने के बाद भी इन्होंने सेना के कई बड़े ऑपरेशन में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए.

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'कुल 9 लोग हुए थे हादसे का शिकार'

करौली के रिटायर्ड हवलदार तेजेंद्र सिंह ने बताया कि यह घटना सन 1990 की है. उस वक्त मेरी पोस्टिंग कारगिल और लद्दाख के बीच थी. जिस वक्त ये हादसा हुआ उस वक्त मैं अपनी टीम के साथ बॉर्डर पर पेट्रोलिंग कर रहा था. तभी वहां तेज बर्फबारी होने लगी. हम लोग बर्फ पड़े हुए रास्तों पर ही ड्यूटी दे रहे थे. उस समय हमारी छोटी - सी सैनिक टुकड़ी धीरे-धीरे पेट्रोलिंग के दौरान आगे बढ़ रही थी. फिर अचानक से हमारे ऊपर की पहाड़ी से बर्फ स्लाइड हो गई. उसमें हम 9 सैनिक दब गए. मगर हम दो लोग बर्फ की एक बड़ी चट्टान गिरने से खड्डे मे गिर गए और हमारे ऊपर बर्फ पूरी तरह से जम गई.

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भारतीय सेना से रिटायर्ड हवलदार तेजेंद्र सिंह.
Photo Credit: NDTV Reporter

'30 मिनट तक बर्फ के नीचे दबा रहा'

इसके बाद आगे चल रहे 5-6 सैनिकों ने शोर मचा दिया. जैसे हादसे की सूचना ऊपर वाली टीम को लगी, तो तुरंत उन्होंने रेस्क्यू अभियान शुरू कर दिया. उस वक्त कुछ किलोमीटर आगे से एक कैंप था. उस लोगों ने भी शोर सुन लिया, जिसके बाद वो सभी मदद के लिए दौड़कर नीचे आ गए. उन्होंने मिलकर बर्फ को हटाया और एक-एक करके सभी सैनिकों को बाहर निकाल लिया. मगर, हम दो लोग गड्ढे में थे. बर्फ की चट्टान हमारे ऊपर थी. इसलिए हमें रेस्क्यू करने में ज्यादा समय लग गया. तकरीबन 30 मिनट तक हम बर्फ के नीचे दबे रहे. जब हमें बाहर निकाला गया तब तक मेरी सांसे रुक गई थीं. लेकिन रेस्क्यू टीम ने हमें तुरंत कारगिल अस्पताल पहुंचाया दिया.

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'पोस्टमार्टम करने से डॉक्टर का इनकार'

लेकिन बर्फ में ज्यादा देर रहने के कारण मेरी सांसें नहीं चल रही थीं. डॉक्टर ने जब हम दोनों को चेक किया तब तक हमारी सांसे थम चुकी थीं. इसके बाद डॉक्टरों ने हमारी यूनिट को दोनों सैनिकों की मौत का मैसेज दे दिया था. उस समय हमारे सीईओ साहब ने हेलीकॉप्टर मंगवाया और रात को ही हेलीकॉप्टर से हमें लद्दाख पहुंचा दिया. वहां सैनिकों के लिए आर्मी ने एक चेंबर बनाया है, जिसमें बर्फ में दबाने के बाद 24 घंटे तक सांस चलने की उम्मीद रहती है. लेकिन हालात कुछ ऐसी थी कि तेज बर्फबारी के कारण पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर भी चंडीगढ़ में फंसे हुए थे. फ्लाइट भी बंद थी. दो दिन उनके आने के इंतजार में बीत गए. जब दो दिन बाद डॉक्टर आए तो उन्होंने मेरी धामनिया थोड़ी बहुत चलने के कारण मेरा पोस्टपार्टम करने से इनकार कर दिया, और 24 घंटे के लिए मुझे दोबारा चेंबर में पहुंचा दिया गया. 

मेडिकल कैटेगरी-बी होने के बावजूद सेना को दिए 20 साल

फिर तीसरे दिन तो कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि असंभव भी संभव हो गया और मेरी सांसे दोबारा से चलना शुरू हो गईं. इस देवीय चमत्कार की किसी को उम्मीद तक नहीं थी. इसके बाद मुझे तो जीवनदान मिला गया, लेकिन मेरे साथ बर्फ में दबने वाला एक साथी शहीद हो गया. रिटायर्ड हवलदार तेजेंद्र सिंह ने बताया कि उन्होंने 20 साल मेडिकल कैटेगरी-बी होने के बावजूद भी भारतीय सेना को दिए और कई बड़े ऑपरेशन में दुश्मन का मुकाबला भी किया. उन्होंने बताया कि उनके चाचा भी भारतीय सेना में थे, जो 1962 की जंग में शहीद हो गई थे. उनकी शहादत के बाद मैंने भी मुझे फौज में होने का मकसद बना लिया था.

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