RLP Foundation Day: 5 साल पूर्व बनी आरएलपी राजस्थान में बन रही तीसरा विकल्प, यहां जानें कैसा रहा सियासी सफर?

Rajasthan Election 2023: हनुमान बेनीवाल को इस बात का आभास है कि कांग्रेस और भाजपा में अंदरुनी गुटबाजी हावी है. भाजपा और कांग्रेस के असंतुष्ट नेता उनकी पार्टी में शामिल होते हैं तो बेनीवाल उन्हें उम्मीदवार भी बना देते हैं.

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आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल.

Rajasthan News: नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी आज अपना स्थापना दिवस (RLP Foundation Day) मना रही है. हनुमान बेनीवाल ने आज से ठीक 5 साल पहले 29 अक्टूबर 2018 को जयपुर में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया था. उस वक्त किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि 5 सालों में ही यह पार्टी इतनी तेजी से विस्तार करेगी और राजस्थान की परंपरागत राजनीति में तीसरे विकल्प के रूप में दस्तक देगी. बीते 5 सालों में ही आरएलपी के चुने हुए जनप्रतिनिधि देश की चारों लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में भागीदारी निभा रहे हैं. यानी संसद में आरएलपी सांसद के तौर पर खुद हनुमान बेनीवाल नागौर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तो वहीं राजस्थान विधानसभा में आरएलपी के तीन विधायक हैं. इसके अलावा नगर निकाय में आरएलपी का एक पालिकाध्यक्ष और पंचायती राज में आरएलपी के पांच प्रधान सहित दर्जनों सरपंच हैं. इसके अलावा आरएलपी के कार्यकर्ताओं की फौज है, जो सीधे तौर पर प्रदेश के राजनीतिक प्रभावित करते हैं. लेकिन हनुमान बेनीवाल को आखिर अपनी खुद की पार्टी क्यों बनानी पड़ी? और उन्हें तीसरे विकल्प के रूप में प्रदेश में क्यों उतरना पड़ा? आइए जानते हैं... 

राजे का विरोध करने पर हुए निष्कासित

दरअसल, हनुमान बेनीवाल को राजनीति विरासत में मिली थी. इनके पिता रामदेव भी विधायक रह चुके हैं. इसी के चलते हनुमान बेनीवाल राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान में छात्र राजनीति में उतर आए. यहीं से उन्होंने राजनीति की एबीसीडी सीखी. उन्हें यह भी समझ आ चुका था कि प्रदेश में जाट समुदाय बड़ा वोट बैंक है और उसे साधकर ही राजनीति में सफलता हासिल की जा सकती है. इसके अलावा उन्होंने अपना फोकस किसान व युवा पर रखते हुए अनेक आंदोलन और प्रदर्शन किए. सरकार के खिलाफ उन्होंने मुखर तरीके से आवाज उठाई, जिससे उनकी लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ. इसके बाद बेनीवाल ने जिस तरह भाजपा और कांग्रेस का विरोध किया, उससे उन्हें लोग पसंद करने लगे. खासकर युवाओं में बेनीवाल ज्यादा लोकप्रिय हुए. वर्ष 2003 में हनुमान बेनीवाल ने इनेलो की टिकट पर मूंडवा से विधानसभा चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे. वर्ष 2008 में बेनीवाल भाजपा की टिकट पर खींवसर से चुनाव लड़कर विधायक बने. बाद में वसुंधरा राजे का विरोध करने के चलते उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. लेकिन बेनीवाल नहीं रुके और 2013 में फिर निर्दलीय रूप में चुनाव जीता. 

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जयपुर रैली में मिला था पहला सुझाव

पिछले विधानसभा चुनाव से पहले बेनीवाल प्रदेश में तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में थे. इसके लिए उन्होंने अलग-अलग पार्टियों के असंतुष्ट नेताओं को तीसरे मोर्चे के लिए आमंत्रित भी किया था, लेकिन कोई भी नेता उनके साथ नहीं जुड़ा. इसके बावजूद हनुमान बेनीवाल ने किसान हुंकार रैली के नाम से प्रदेश के अलग-अलग जिलों में रैलियां निकाली, जिसमें लाखों की संख्या में लोग उनसे जुड़े. 29 अक्टूबर 2018 को यह रैली जयपुर पहुंची, तो बेनीवाल के कार्यकर्ताओं ने नई पार्टी बनाने का सुझाव दिया. तब हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नाम से अपनी नई पार्टी के गठन का ऐलान कर दिया. यह ऐलान उस वक्त किया गया, जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका था. इसके बाद हनुमान बेनीवाल ने अनेक सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे. हनुमान बेनीवाल की ताकत और उनकी राजनीतिक हैसियत का इसी बात से पता चल सकता है कि पहली ही बार में उन्होंने तीन सीटों पर जीत दर्ज की. खींवसर से हनुमान बेनीवाल खुद विधायक चुने गए, जबकि मेड़ता से इंदिरा बावरी और भोपालगढ़ से पुखराज गर्ग विधायक बने. इसके अलावा कई सीटों पर उनके उम्मीदवारों ने जबरदस्त वोट हासिल किए. जनता में भी उनके पार्टी बड़ा प्रभाव छोड़ने में सफल रही. कई सीटों पर तो उनके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर भी रहे.

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1 महीने पहले बनी पार्टी ने 3 सीटे जीतीं

यह गौर करने वाली बात है कि मात्र एक महीने पहले बनी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन कर तीन सीटों पर जीत दर्ज कर ली. यही नहीं, बेनीवाल की ताकत को देखते हुए भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उनसे गठबंधन किया और उन्हें भाजपा व आरएलपी का संयुक्त उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में भी हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस की डॉ. ज्योति मिर्धा को पराजित किया और देश की संसद में भी आरएलपी प्रतिनिधि के तौर पर पहुंच गए. लेकिन बेनीवाल यही नहीं रुके.  खींवसर से उनके इस्तीफा देने के बाद जब उपचुनाव हुए तो उन्होंने अपने भाई नारायण बेनीवाल को उम्मीदवार बनाकर अपने भाई को भी जीत दिला दी. तत्पश्चात निकाय चुनाव और पंचायती राज चुनाव में भी हनुमान बेनीवाल ने अपने उम्मीदवार उतारे और आज उनकी पार्टी का एक पालिकाध्यक्ष अध्यक्ष और पांच प्रधान सहित अनेक सरपंच मौजूद हैं.

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दलित और मुस्लिम समाज में भी पकड़

हनुमान बेनीवाल संघर्षशील, जुझारू और दबंग छवि वाले नेता हैं. वे प्रदेश की जाट राजनीति को प्रभावित करते हैं. जाट समाज में हनुमान बेनीवाल की बेहद मजबूत पकड़ है. हालांकि भाजपा और कांग्रेस में भी जाट समाज के कई बड़े नेता मौजूद हैं, मगर हनुमान बेनीवाल की तरह कोई भी अन्य नेता अपने छवि नहीं बन सका है. जाट समाज के युवाओं में हनुमान बेनीवाल की जबरदस्त लोकप्रियता है. उनकी रैलियों में हजारों युवा पहुंचते हैं. इसके अलावा दलित समाज और मुस्लिम समाज भी हनुमान बेनीवाल से काफी प्रभावित है, क्योंकि हनुमान बेनीवाल जाटों के अलावा दलित और मुस्लिम वर्ग को भी साथ लेकर चलते हैं और उनके मुद्दों को भी समय-समय पर उठते रहते हैं. अपने तेजतर्रार और चर्चित बयानों को लेकर भी बेनीवाल अक्सर सुर्खियों में रहते हैं.

एक जयकारे से जाट वोटर्स को साधा

हनुमान बेनीवाल जब पहली बार संसद में पहुंचे थे तो उन्होंने लोक देवता तेजाजी महाराज का जयकारा लगाया था, जो सीधे जाट समाज को साधने के लिए था. संसद में भी उन्होंने किसानों और युवाओं को लेकर अनेक मुद्दे उठाए है. इस बार के विधानसभा चुनाव में भी हनुमान बेनीवाल पूरे दमखम के साथ उतरने का मन बना चुके हैं. पिछले दिनों ही उन्होंने अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है. वे खुद खींवसर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में देखना होगा कि इस बार बेनीवाल कितना सफल हो पाते हैं और अपने कितने उम्मीदवारों को जीत दिला पाते हैं?

हनुमान बेनीवाल को इस बात का आभास है कि कांग्रेस और भाजपा में अंदरुनी गुटबाजी हावी है. भाजपा और कांग्रेस के असंतुष्ट नेता उनकी पार्टी में शामिल होते हैं तो बेनीवाल उन्हें उम्मीदवार भी बना देते हैं. बेनीवाल को इस बात का भी पता है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों अपने बल पर सरकार नहीं बना सकती. इस परिस्थिति का लाभ आरएलपी उठा सकती है और उनकी पार्टी सरकार गठन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.