Achaleshwar Mahadev Mandir: सावन का महीना बस शुरू ही होने वाला है, 10 जुलाई 2025 से देशभर में शिव भक्ति का यह पावन माह धूमधाम से मनाया जाएगा. उत्तर भारत के शिव मंदिरों में तैयारियां जोरों पर हैं, और इसी कड़ी में राजस्थान के पश्चिमी जिले के माउंट आबू( Mount Abu) में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर(Achaleshwar Mahadev Mandir) भी भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तैयार है. ऋषि वशिष्ठ की यह तपस्थली माउंट आबू के अचलगढ़ में स्थापित है. इस मंदिर की अनोखी आस्था इसे खास बनाती है, और यही वजह है कि इसे 'अर्धकाशी' के नाम से भी जाना जाता है.
क्यों है यह 'अर्धकाशी'
अचलेश्वर महादेव मंदिर सिर्फ एक प्राचीन शिव मंदिर ही नहीं, बल्कि यह एक ऐसी जगह है जहां भगवान शिव के दाहिने पैर के अंगूठे के स्वरूप की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस पर्वत को स्वयं महादेव ने अपने दाहिने अंगूठे से थाम रखा है. स्कंद पुराण के अबुर्द खंड में भी इस मंदिर का जिक्र मिलता है. जिसके कारण ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के अंगूठे के कारण ही माउंट आबू के पहाड़ आज भी स्थिर खड़े हैं.
अर्बुद सर्प का घमंड किया था चूर
कहते हैं कि पौराणिक काल में माउंटआबू के अचलगढ़ में एक गहरी और विशाल ब्रह्म खाई हुआ करती थी. इस खाई में ऋषि वशिष्ठ की गाय गिर जाती थी.इस समस्या को लेकर ऋषियों ने देवताओं से इस खाई को पाटने की गुहार लगाई, ताकि ऋषि आश्रमों में पल रहीं गाय का जीवन बचाया जा सके.ऋषियों के आग्रह पर देवताओं ने नंदीवर्धन को उस ब्रह्म खाई को पाटने का आदेश दिया, जिसे अर्बुद नामक सांप ने अपनी पीठ पर रखकर खाई तक पहुंचाया था. लेकिन अर्बुद सांप को इस बात का अहंकार हो जता है कि उसने पूरा पर्वत अपनी पीठ पर उठा रखा है. इसलिए वह हिलने-डुलने लगता है जिसके कारण पर्वत डोलने लगता है.
जब महादेव के अंगूठे से स्थिर हुआ पर्वत
सावन में विशेष पूजा-अर्चना
सावन के महीने में अचलेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस दौरान भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान किए जाते हैं. माना जाता है कि सावन के पवित्र महीने में यहाँ दर्शन और पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं.