Exclusive: वो गायिका जिसने कम उम्र में राजस्थानी गीत संगीत को पहुंचाया बुलंदियों पर

जयपुर में स्टेज शो करते करते सीमा मिश्रा को पहला बिग ब्रेक वीणा कैसेट की तरफ से मिला. चांद चढ्यो गिगनार एल्बम के बाद सीमा मिश्रा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

विज्ञापन
Read Time: 13 mins
राजस्थानी गायक सीमा मिश्रा से बातचीत
चुरू:

गीत संगीत कि खुशबू पूरे विश्व में बिखरने वाली मरु कोकिला सीमा मिश्रा आज राजस्थान में काफी फेमस हो चुकी हैं. सीमा मिश्रा अब तक ढाई हजार से ज्यादा राजस्थानी गानों को गाकर राजस्थानी गीत संगीत को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं. सीमा मिश्रा ने एनडीटीवी राजस्थान से खास बातचीत करते हुए अपने कई सारे राज खोले. मिश्रा ने बताया कि गानों की ओर उनका रुझान कैसे बढ़ा? अब तक के सफर में क्या चुनौतियां आई और अब कैसा महसूस करती हैं?

11 वर्ष की उम्र में दी पहली प्रस्तुति

सीमा मिश्रा का जन्म झुंझुनूं के बिसाऊ में हुआ. सीमा का बचपन कोटा में बीता. वहां आठवीं तक शिक्षा ग्रहण करते-करते सीमा के गाने का कौशल स्कूल कार्यक्रमों में मंच पर दिखाई देने लगा. सीमा ने कोटा के स्कूल में 11 वर्ष की उम्र में अपने गीत की पहली प्रस्तुति दी. मिश्रा अपने ननिहाल रामगढ़ आने के बाद पहले स्कूल और फिर कॉलेज के कार्यक्रमों में प्रस्तुति देने लगी. इस दौरान सीमा की आवाज की मिठास श्रोताओं के कानों में मिश्री रस घोलने लगी.

सीमा की आवाज बिना अधूरे संगीत समारोह

चाहे स्कूल कॉलेज के सालाना कार्यक्रम हो या फिर विवाह उत्सव में संगीत संध्या, सभी नृत्य कार्यक्रम सीमा मिश्रा की आवाज के बिना अधूरे हैं. हर शादी विवाह में आपको सीमा मिश्रा के गाने सुनाए पड़ जाएंगे. सीमा के गाए हजारों लोक गीतों में चुनिंदा गीतों पर महिलाओं व युवतियों को थिरकते हुए देखा जा सकता है. 25 वर्ष तक मंच साझा कर चुकी सीमा की एक झलक पाने के लिए आज भी शेखावाटी सहित प्रवासी बंधु उत्साहित रहते हैं.

सीमा मिश्रा के सदाबहार गाने

सीमा मिश्रा ने एनडीटीवी राजस्थान से बातचीत में बताया उनके द्वारा गाया हर गाना उनके दिल के बेहद करीब है, लेकिन सबसे अच्छा उनको अपना गाना "खड़ी नीम के नीचे एकली" लगता है. इसके अलावा मिश्रा के हिट गानों की बात करें तो कुवे पर अकेली, घूमर, मिश्री को बाग़ लगा दे रसिया, चांद चढ्यो गिगरार, ओर रंग दे, बालम छोटो सो, मेंहदी रची म्हारे हाथा में, नखरालो देवरियो, कालो कूद पड़यो मेले में, धरती धोरा री, सहित अनेकों गीत रहे हैं.

Advertisement

मां की लोरी ने दिया दुलार

सीमा बचपन में अपनी मां लक्ष्मी मिश्रा की लोरी सुनकर तुतली जुबां में उसी गीत को फिर से गाने की कोशिश करती थी. उनकी मां बताती है कि भूख लगने पर वह कटोरी-चम्मच जैसे बर्तन हाथ से बजाते हुए गाने के अंदाज में खाने की डिमांड करती थी. मां ने कभी अपनी बेटी के हौंसले को कम नहीं होने दिया, फिर बड़े भाई राजीव बूंटोलिया ने बखूबी हिम्मत बढ़ाई. सीमा की बड़ी बहन वंदन शर्मा व छोटे भाई यश मिश्रा का कहना है कि जब लोग उन्हें सीमा के नाम से पहचानते हैं तो बहुत अच्छा लगता है.

चांद चढ्यो गिगरार एल्बम ने दिया ब्रेक

जयपुर में स्टेज शो करते करते सीमा मिश्रा को पहला बिग ब्रेक वीणा कैसेट की तरफ से मिला. चांद चढ्यो गिगनार एल्बम के बाद सीमा मिश्रा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. सन 2000 से 2007 तक सीमा मिश्रा ने लोक गीतों की झड़ी लगा दी. इस दौरान मिश्रा ने दर्जनों एल्बम के लिए अपनी आवाज दी. आज सालों बाद भी उनके गीत ताजा हवा के झोंके के समान लगते हैं. सिर चढ़कर बोलती इसी आवाज के दम पर सीमा को राजस्थान की लता मंगेशकर तक कहा गया है. उन्होंने लोकगीतों के अलावा हिन्दी भजन एवं गीत भी गाए हैं. खुद सीमा मानती है कि उनको आज इस मुकाम पर पहुंचाने में उनकी मां लक्ष्मी मिश्रा के बाद भाई राजीव का अहम योगदान रहा है. उन्होंने अपने भाई के साथ 1993 में फतेहपुर के दो जांटी बालाजी के यहां भजनों में प्रस्तुति दी. सन 1995 में दोनों भाई बहन जयपुर आ गए और वहां से एक नए सफर की शुरुआत हुई.

Advertisement
Topics mentioned in this article